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लाइमस्टोन खदान की जनसुनवाई का विरोध

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम लाल धुर्वा जुगनी पाली क्षेत्र में प्रस्तावित लाइमस्टोन ब्लॉक खनन परियोजना की आगामी जनसुनवाई, 24 सितंबर 2025 को आयोजित होने वाली है। इस परियोजना की स्थानीय स्तर पर जबरदस्त विरोध हो रहा है। जन चेतना रायगढ़ संस्था के राजेश त्रिपाठी ने पर्यावरण संरक्षण मंडल को पत्र लिखकर जनसुनवाई की प्रक्रिया और पर्यावरणीय प्रभावों पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

नियमानुसार जनसुनवाई क्यों नहीं?
परियोजना के विरोध का मुख्य आधार केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना (14 सितंबर 2006) है, जिसके अनुसार आवेदन के 45 दिन के भीतर जनसुनवाई होनी चाहिए। यदि ऐसा संभव नहीं, तो केंद्र द्वारा समिति बनाकर जनसुनवाई कराना अनिवार्य है। मौजूदा जनसुनवाई की समय प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

स्वास्थ्य संबंधी चिंता
पत्र में कहा गया है कि लाइनस्टोन खदानों के डस्ट से टीबी, दमा, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां स्थानीय लोगों में फैल सकती हैं। कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में न इलाज की व्यवस्था बताई न ही प्रभावितों के संरक्षण की योजना साझा की।

बच्चों और स्कूलों पर खतरा
प्रभावित क्षेत्र के आंगनबाड़ी, प्राइमरी, मिडिल और हायर सेकंडरी स्कूलों के बच्चों पर डस्ट और प्रदूषण का सीधा खतरा है। रिपोर्ट में बच्चों एवं बुजुर्गों के स्वास्थ्य परीक्षण की कोई ठोस जानकारी नहीं दी गई।

जल स्रोत और भूजल संकट
परियोजना से 5-10 किलोमीटर क्षेत्र में भूजल स्तर गिरने एवं जल प्रदूषण की आशंका है। पानी की कमी और प्रदूषित जल से गंभीर बीमारियों के फैलने का डर है, मगर कंपनी ने इसका समाधान नहीं बताया।

नदियों-कृषि एवं अस्पतालों पर दुष्प्रभाव
लाख-लाख नाल, घुंघरू नाल, महानदी जैसी नदियों के प्रदूषण से कृषि पर व्यापक असर पड़ सकता है। 10 किलोमीटर के दायरे की स्वास्थ्य संस्थाओं को खदान की धूल से नुकसान पहुंचने की आशंका जताई गई है।

सड़क और परिवहन खतरा
खनन क्षेत्र के आसपास सड़कों की कमी के कारण भारी वाहनों के चलने से दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी की संभावना है, जिसका कंपनी ने जिक्र भी नहीं किया।

भूजल दोहन और स्थानीय रोजगार पर संकट
कंपनी द्वारा भूजल के अत्यधिक दोहन से 10 किलोमीटर क्षेत्र में जल संकट बढ़ सकता है। खनन के कारण कृषि आधारित स्थानीय युवकों और ग्रामीणों के रोजगार पर भी गंभीर संकट उत्पन्न होगा।

जनसुनवाई का व्यापक विरोध
जन चेतना रायगढ़ समेत कई संगठन और ग्रामीण जनसुनवाई में उक्त पर्यावरणीय, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं। स्थानीय निवासियों ने मांग की है कि परियोजना से होने वाले दुष्प्रभावों को नजरअंदाज न किया जाए और जनहित में पारदर्शिता से सभी पक्षों की सुनवाई सुनिश्चित की जाए।

संपादकीय

“प्रकृति और स्वास्थ्य की सुरक्षा के नाम पर एक नया संघर्ष खड़ा हो रहा है, जहां विकास और मुनाफे के लालच में स्थानीय जनजीवन और पर्यावरण को भारी खतरा मंडरा रहा है। छत्तीसगढ़ में प्रस्तावित लाल धुर्वा जुगनी पाली लाइमस्टोन खदान के खिलाफ उठ रही आवाज़ें केवल environmental concern ही नहीं बल्कि मानव हिफाजत की पुकार हैं। जब सरकारी नियमों और प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं होता, और जनता की सुरक्षा की अनदेखी की जाती है, तो ऐसे विकास के नाम पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ऐसे में स्थानीय निवासियों द्वारा उठाए गए यह विरोध पत्र हमें सचेत करते हैं कि प्रकृति और मानवता के संतुलन को बनाए रखना ही स्थायी विकास की असली मंशा है।”

Amar Chouhan

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