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लगातार विरोध की आंच में फिर झुलसी जनसुनवाई: पाँच गांवों में भूमि अधिग्रहण पर आज की सुनवाई भी निरस्त

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम सारंगढ़–बिलाईगढ़।

जिले में प्रस्तावित औद्योगिक परियोजनाओं को लेकर चल रहा विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है। ग्रामीणों के तीखे प्रतिरोध के बीच ग्रीन कॉन्स्टेबल मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड द्वारा पांच गांवों में लगभग 500 एकड़ भूमि अधिग्रहण हेतु निर्धारित जनसुनवाई को सोमवार को प्रशासन ने निरस्त कर दिया।

यह सिर्फ एक दिन की घटना नहीं, बल्कि पिछले कुछ महीनों में सारंगढ़–बिलाईगढ़ में जनसुनवाई के लगातार टलने और रद्द होने की श्रृंखला का एक और अध्याय है। हर बार ग्रामीणों के भारी विरोध के चलते सुनवाई को या तो स्थगित करना पड़ा है या पूरी तरह रद्द करना पड़ा है।

ग्रामीणों का रात–दिन डटा आंदोलन

16 नवंबर से ग्रामीण—महिला, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग—लगातार साइट पर डटे रहे। अपनी जमीन और अस्तित्व की लड़ाई को वे किसी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं दिखे।
आज सुबह जैसे ही प्रशासनिक अमला जनसुनवाई के लिए पहुंचा, ग्रामीणों ने उग्र विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

जनपद अध्यक्ष, सारंगढ़

एसडीएम ने लिखित आदेश जारी किया

मौके पर मौजूद एसडीएम वर्षा बंसल ने ग्रामीणों को लिखित सूचना देते हुए स्पष्ट किया कि आज की जनसुनवाई को आदेशानुसार निरस्त कर दिया गया है।
मौके पर एसडीएम, तहसीलदार, पर्यावरण विभाग के अधिकारी, तथा भारी पुलिस बल तैनात रहा, ताकि स्थिति नियंत्रण में बनी रहे।

लोगों की मांग—“पहले स्पष्ट जानकारी, फिर कोई प्रक्रिया”

जनसुनवाई विरोध

ग्रामीणों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है। न तो मुआवजे की स्पष्ट जानकारी दी गई है, न विस्थापन के विकल्प।
जनपद अध्यक्ष और अन्य स्थानीय प्रतिनिधियों ने भी ग्रामीणों के पक्ष में बोलते हुए कहा कि जब तक सभी संदेह दूर नहीं होते और गांवों की सहमति नहीं बनती, तब तक किसी भी तरह की सुनवाई बेमानी है।

जिले में ‘जनसुनवाई संस्कृति’ सवालों के घेरे में

सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिले में यह कोई पहला मामला नहीं है। पिछले कुछ महीनों में विभिन्न औद्योगिक परियोजनाओं से जुड़ी तीन से अधिक जनसुनवाई विरोध के चलते रद्द हो चुकी हैं।
यह स्थिति साफ दर्शाती है कि प्रशासन और उद्योगों को जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में अब नए तरीके और संवाद की जरूरत है, क्योंकि ग्रामीण अब पहले जैसी चुपचाप स्वीकृति देने को तैयार नहीं।

Amar Chouhan

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