रायगढ़ RTO में बड़ा फर्जीवाड़ा : उड़ीसा के लोगों को मिल रहे छत्तीसगढ़ के ड्राइविंग लाइसेंस, जांच के घेरे में पूरा नेटवर्क

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ RTO में एक गंभीर और संगठित फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ है। खुलासा हुआ है कि उड़ीसा के निवासियों को रायगढ़ से ड्राइविंग लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं, वह भी बिना किसी स्थायी पते या स्थानीय सत्यापन के।
यह मामला न केवल प्रशासनिक लापरवाही का उदाहरण है, बल्कि विभागीय भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को भी उजागर करता है।
कैसे खुला फर्जीवाड़े का राज
एक आवेदक किरण (परिवर्तित नाम) ने बताया कि वह उड़ीसा का निवासी है और रायगढ़ में न तो काम करता है और न ही रहता है।
फिर भी, उसे रायगढ़ RTO से स्थानीय पते पर आधारित ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर दिया गया।
जांच में यह सामने आया कि जिस कॉलोनी का पता उसने दिया था, वहाँ न तो वह और न ही उसके परिजन रहते हैं।
स्थानीय सूत्रों ने पुष्टि की कि उस पते पर कभी कोई “किरण” नामक व्यक्ति नहीं रहा।
बिना सत्यापन के जारी हुए लाइसेंस
नियमों के अनुसार, किसी भी ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आवेदनकर्ता का
स्थायी या अस्थायी पता स्थानीय क्षेत्र में होना अनिवार्य है,
और पुलिस सत्यापन के बाद ही लाइसेंस जारी किया जा सकता है।
लेकिन रायगढ़ RTO में यह प्रक्रिया कागजों पर ही पूरी दिखा दी गई।
कई मामलों में तो जाली निवास प्रमाण-पत्र और आधार कार्ड की स्कैन कॉपियाँ लगाकर लाइसेंस बनवाए गए।
कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं
इस तरह की गतिविधियाँ न केवल मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 182-A (फर्जी लाइसेंस) का उल्लंघन हैं, बल्कि अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 336 (धोखाधड़ी और सरकारी अभिलेखों में फर्जीवाड़ा) तथा धारा 419/420 (छल और ठगी) के अंतर्गत भी गंभीर अपराध मानी जाती हैं।
यदि अधिकारी या कर्मचारी की संलिप्तता साबित होती है, तो उन पर धारा 174 (सरकारी पद का दुरुपयोग) के तहत तीन से सात वर्ष तक की सजा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
संगठित रैकेट की आशंका
सूत्रों के अनुसार, यह कोई एक-दो आवेदकों तक सीमित नहीं, बल्कि एक संगठित रैकेट की ओर इशारा करता है।
इस नेटवर्क में
दलाल,
RTO के कुछ अंदरूनी कर्मचारी,
और बाहरी एजेंटों की मिलीभगत
होने की संभावना जताई जा रही है।
ऐसा भी संदेह है कि इन फर्जी लाइसेंसों के ज़रिए असली अपराधी तत्व, जिनके खिलाफ अन्य जिलों या राज्यों में केस दर्ज हैं, वे फर्जी पहचान से वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त कर रहे हैं।
अधिकारियों की चुप्पी बढ़ा रही शंका
जब मीडिया ने RTO अधिकारी अमित कश्यप से संपर्क कर इस पूरे मामले पर उनका पक्ष जानना चाहा, तो उन्होंने ना कॉल रिसीव किया, ना स्पष्टीकरण दिया।
सूत्र बताते हैं कि विभाग के भीतर भी कुछ कर्मचारी इस फर्जीवाड़े की जानकारी रखते हैं, लेकिन ऊपरी दबाव के कारण मौन हैं।
जनता और सामाजिक संगठनों की नाराजगी
स्थानीय नागरिकों ने प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग की है।
सामाजिक कार्यकर्ता विपिन मिश्रा का कहना है –
> “जब दूसरे राज्यों के लोगों को बिना सत्यापन के लाइसेंस मिल रहे हैं, तो यह न सिर्फ कानून का अपमान है, बल्कि सड़क पर हर आम नागरिक की सुरक्षा को खतरे में डालना है।”
जनता की यह भी मांग है कि इस मामले की EOW या एंटी-करप्शन ब्यूरो से जांच कराई जाए, ताकि असली दोषियों तक पहुँचा जा सके।
प्रशासनिक स्तर पर संभावित कार्रवाई
परिवहन विभाग के सूत्रों के अनुसार,
रायगढ़ RTO की आंतरिक ऑडिट टीम गठित की जा सकती है।
साथ ही राज्य परिवहन आयुक्त कार्यालय से भी फॉरेंसिक वेरिफिकेशन के लिए निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
अगर रिकॉर्ड में हेराफेरी पाई गई, तो जिम्मेदार अधिकारियों के निलंबन और FIR दर्ज करने की कार्यवाही संभव है।
पारदर्शिता की परीक्षा
यह पूरा मामला सिर्फ एक विभागीय गलती नहीं, बल्कि प्रणालीगत विफलता की ओर संकेत करता है।
फर्जी लाइसेंस केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भविष्य के सड़क हादसों की नींव हैं।
जब जांच की बात आती है, तो यही सबसे बड़ी परीक्षा होती है —
क्या प्रशासन वास्तव में दोषियों तक पहुँचेगा, या यह मामला भी “जांच जारी है” की फाइल में दफन हो जाएगा?
“कैसे बनता है फर्जी ड्राइविंग लाइसेंस?”
चरणवार विवरण:
1️⃣ बाहरी राज्य का व्यक्ति एजेंट के ज़रिए संपर्क करता है।
2️⃣ एजेंट स्थानीय पते का जाली दस्तावेज़ (किराए का घर या कॉलोनी पता) लगवाता है।
3️⃣ फर्जी निवास प्रमाण-पत्र और पहचान पत्र की स्कैन कॉपी जमा होती है।
4️⃣ अंदरूनी कर्मचारी सत्यापन प्रक्रिया को “पूरा दिखाकर” सिस्टम में अप्रूव कर देता है।
5️⃣ ड्राइविंग लाइसेंस प्रिंट होकर जारी हो जाता है — कानून की आंखों के सामने फर्जी पहचान के साथ।
रायगढ़ RTO फर्जीवाड़ा अब पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन चुका है।
जनता को उम्मीद है कि शासन इस पर तत्काल और पारदर्शी जांच कराएगा, ताकि छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक जवाबदेही और ईमानदारी पर जनता का भरोसा कायम रह सके।

एडिटर कमैंट्स:
> “फर्जी लाइसेंस सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं — यह सड़क पर संभावित जानलेवा जोखिम है। जब सरकारी सत्यापन सिर्फ औपचारिकता बन जाए, तब कानून कमजोर नहीं, व्यवस्था बीमार होती है।”