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रायगढ़ में महाजेंको कोल ब्लॉक घोटाला: फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज, आदिवासियों की अनदेखी, और प्रशासन की लापरवाही

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/amarkhabar.com रायगढ़, 15 जुलाई 2025। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी (महाजेंको) को आवंटित गारे-पेलमा सेक्टर-2 कोल ब्लॉक के लिए जंगल कटाई और भू-अर्जन के नाम पर आदिवासी समुदाय के अधिकारों का हनन और प्रशासन की लापरवाही का एक और मामला सामने आया है। प्रभावित गांवों के ग्रामीणों ने फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों के आधार पर जंगल कटाई की अनापत्ति स्वीकृति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग को लेकर कलेक्टर से मुलाकात की। लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन ने न केवल उनकी मांगों को अनसुना किया, बल्कि उन्हें जिला मुख्यालय पहुंचने से रोकने के लिए डराया-धमकाया और चालान काटने की धमकी तक दी। यह घटना रायगढ़ को “दूसरा हसदेव” बनाने की ओर इशारा करती है, जहां आदिवासियों के हक और पेसा कानून की खुलेआम अनदेखी हो रही है।

फर्जी ग्राम सभा दस्तावेज: आदिवासी अधिकारों पर हमला
महाजेंको कोल ब्लॉक के लिए गारे, खम्हरिया, मुड़ागांव, सराईटोला, पाता, ढोलनारा, और बजरमुड़ा जैसे गांवों में जंगल कटाई की अनुमति फर्जी ग्राम सभा प्रस्तावों के आधार पर दी गई। ग्रामीणों का आरोप है कि इन प्रस्तावों की अध्यक्षता एक काल्पनिक व्यक्ति रविशंकर राठिया के नाम पर की गई, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। अनुसूची 5 और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (पेसा) 1996 के तहत ग्राम सभाओं को जंगल और जमीन से संबंधित निर्णय लेने का विशेष अधिकार है। लेकिन प्रशासन और कंपनी ने मिलकर इन अधिकारों का उल्लंघन करते हुए कूट रचित दस्तावेज तैयार किए, जो एक गंभीर अपराध है।

ग्रामीणों ने बताया कि बिना उनकी सहमति या जनसुनवाई के, घरघोड़ा एसडीएम ने महाजेंको को पेड़ कटाई की अनुमति दे दी, जबकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस परियोजना की पर्यावरणीय स्वीकृति पहले ही खारिज कर दी थी। यह फर्जीवाड़ा न केवल पेसा कानून का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासी समुदाय की आजीविका और पर्यावरण को भी खतरे में डाल रहा है.

कलेक्टर से मुलाकात: ग्रामीणों की अनसुनी मांगें
प्रभावित गांवों के सैकड़ों ग्रामीण, सरपंच संघ के प्रतिनिधियों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं राधेश्याम शर्मा, राजेश त्रिपाठी, जयंत बोहीदार, और कांग्रेसी नेता अनिल चीकू के नेतृत्व में जिला मुख्यालय पहुंचे। उन्होंने कलेक्टर मयंक चतुर्वेदी से मुलाकात कर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जंगल कटाई की अनुमति देने वाले अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की। लेकिन कलेक्टर ने केवल यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वे “शासन स्तर से प्राप्त आदेशों का पालन कर रहे हैं।” ग्रामीणों का कहना है कि उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया, और प्रशासन ने उनकी मांगों को अनसुना कर दिया।

प्रतिनिधि मंडल ने मीडिया को बताया कि जिला मुख्यालय पहुंचने के दौरान प्रशासन ने ग्रामीणों को रास्ते में रोका, डराया-धमकाया, और चालान काटने की धमकी दी। इसके चलते कई ग्रामीण वापस लौट गए, लेकिन करीब 100 से अधिक लोग विभिन्न रास्तों से कलेक्ट्रेट पहुंचने में सफल रहे। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी कि यदि एफआईआर दर्ज नहीं हुई, तो वे न्यायालय का रुख करेंगे।

आदिवासियों की प्रताड़ना: रायगढ़ बन रहा दूसरा हसदेव
रायगढ़ का यह मामला हसदेव अरण्य की तर्ज पर आदिवासी समुदाय के साथ हो रहे अन्याय को उजागर करता है। हसदेव में भी फर्जी ग्राम सभा प्रस्तावों के आधार पर जंगल कटाई की गई थी, और ग्रामीणों को पुलिस द्वारा नजरबंद या हिरासत में लिया गया था। रायगढ़ में भी आदिवासियों को उनकी जमीन और जंगल से बेदखल करने के लिए प्रशासन और कंपनियों की मिलीभगत सामने आ रही है। पेसा कानून, जो आदिवासी समुदायों को उनकी जमीन और संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देता है, पूरी तरह निष्प्रभावी साबित हो रहा है.

ग्रामीणों का कहना है, “जंगल हमारी आजीविका का आधार हैं। इन्हें काटने की अनुमति फर्जी दस्तावेजों से दी गई, और हमारी आवाज दबाई जा रही है। शासन और प्रशासन ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ की तर्ज पर काम कर रहे हैं।” सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा, “यह आदिवासियों के साथ अन्याय और उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे और इस अन्याय को बेनकाब करेंगे।”

प्रशासन और शासन की लापरवाही
यह पहली बार नहीं है जब रायगढ़ में भू-अर्जन और जंगल कटाई के नाम पर अनियमितताएं सामने आई हैं। बजरमुड़ा भू-अर्जन घोटाले में भी मुआवजे में अरबों रुपये की हेराफेरी की गई थी, और जांच के बावजूद बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। महाजेंको मामले में भी प्रशासन की एकतरफा कार्यप्रणाली और ग्रामीणों की अनदेखी ने सवाल खड़े किए हैं। ग्राम सभाओं की सहमति के बिना जंगल कटाई की अनुमति देना न केवल पेसा कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह पर्यावरणीय क्षति और आदिवासी समुदाय की आजीविका पर हमला है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों का संकल्प
प्रभावित गांवों के सरपंचों और ग्रामीणों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर जंगल बचाने और फर्जी दस्तावेजों के खिलाफ सामूहिक संघर्ष का संकल्प लिया है। सामाजिक कार्यकर्ता जयंत बोहीदार ने कहा, “हमारी लड़ाई केवल जंगल बचाने की नहीं, बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों और सम्मान की भी है। प्रशासन की मिलीभगत और कंपनी के दबाव में ग्रामीणों को कुचला जा रहा है।” कांग्रेसी नेता अनिल चीकू ने भी ग्रामीणों को कानूनी सहायता का आश्वासन दिया और कहा कि यह मामला विधानसभा से लेकर न्यायालय तक उठाया जाएगा।

पेसा कानून की अनदेखी और प्रशासन की जवाबदेही का सवाल
रायगढ़ में महाजेंको कोल ब्लॉक के लिए फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों का मामला शासन और प्रशासन की लापरवाही और आदिवासी समुदाय के प्रति उदासीनता को उजागर करता है। पेसा कानून, जो आदिवासियों को उनकी जमीन और संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देता है, कागजों तक सीमित हो गया है। ग्रामीणों को डराने-धमकाने और उनकी आवाज दबाने की कोशिशें लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल उठाती हैं।

सरकार को चाहिए कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दी गई अनुमतियों की सीबीआई जांच कराए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई करे। साथ ही, पेसा कानून को प्रभावी ढंग से लागू कर ग्राम सभाओं की सहमति को अनिवार्य बनाया जाए। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो रायगढ़ में बढ़ता आक्रोश एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकता है, जो न केवल प्रशासन, बल्कि शासन की विश्वसनीयता को भी कटघरे में खड़ा करेगा।

Amar Chouhan

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