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रायगढ़ की मितानिन बहनों का संघर्ष: पुलिस की रोक के बीच फूटा गुस्सा, रायपुर का सफर अधर में

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 4 सितंबर। छत्तीसगढ़ की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली मितानिन बहनें इन दिनों अपनी जायज मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। 7 अगस्त से शुरू हुई उनकी अनिश्चितकालीन हड़ताल अब प्रदेशव्यापी आंदोलन का रूप ले चुकी है, लेकिन सत्ता के गलियारों में अभी तक कोई ठोस हलचल नहीं दिख रही। रायगढ़ जिले से रायपुर के तूता धरना स्थल पर प्रदर्शन में शामिल होने निकली हजारों मितानिनों को पुलिस ने कोडातराई पुसौर चौक पर रोक लिया, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई। बहनों का आरोप है कि यह रोकटोक न सिर्फ उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है, बल्कि उनकी लंबित समस्याओं को दबाने की साजिश भी। मैंने खुद कई ऐसे आंदोलनों को कवर किया है, जहां ग्रामीण महिलाओं की आवाज को इसी तरह कुचलने की कोशिश की गई, लेकिन इस बार मामला स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा होने के कारण ज्यादा गंभीर लगता है।

बात शुरू करते हैं पृष्ठभूमि से। छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य मितानिन संघ के बैनर तले ये बहनें पिछले करीब एक महीने से तीन प्रमुख मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं: पहला, उनका नियमितीकरण यानी स्थायी नौकरी में तब्दील किया जाना; दूसरा, वेतन में पर्याप्त वृद्धि, क्योंकि मौजूदा मानदेय से गुजारा मुश्किल हो रहा है; और तीसरा, पेंशन और अन्य लाभों की गारंटी। प्रदेश में करीब 72 हजार मितानिनें काम करती हैं, जो गांव-गांव जाकर टीकाकरण, मातृ-शिशु स्वास्थ्य, मलेरिया नियंत्रण जैसी सेवाएं देती हैं। ये वो महिलाएं हैं जो कोरोना काल में जान जोखिम में डालकर घर-घर पहुंचीं, लेकिन आज उनकी अपनी जिंदगी की सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। संघ की ओर से बताया गया कि 7 अगस्त से रायपुर संभाग से शुरू हुआ यह आंदोलन अब हर जिले में फैल चुका है, और तूता धरना स्थल पर रोजाना हजारों बहनें जुट रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी हाल ही में धरना स्थल पहुंचकर अपना समर्थन दिया था, लेकिन सत्ताधारी पक्ष की ओर से अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं।

अब आते हैं रायगढ़ की इस ताजा घटना पर। 27 अगस्त से हड़ताल में शामिल रायगढ़ की मितानिन बहनें मंगलवार को बसों और अन्य साधनों से रायपुर रवाना हुईं। उनका इरादा था कि वे तूता धरना स्थल पर पहुंचकर अपनी आवाज को और बुलंद करें। लेकिन कोडातराई पुसौर चौक पर पुलिस की भारी तैनाती ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। बहनों का कहना है कि पुलिस ने कोई ठोस वजह नहीं बताई, सिर्फ ऊपर से आदेश का हवाला दिया। इससे आक्रोशित होकर उन्होंने सड़क पर ही बैठकर नारे लगाने शुरू कर दिए। “हमारी मांगें मानो, हमें रायपुर जाने दो” जैसे नारे गूंजते रहे, और कुछ देर के लिए यातायात भी प्रभावित हुआ। एक मितानिन ने मुझे बताया, “हम तो शांतिपूर्ण तरीके से जा रही थीं, लेकिन रोककर हमें अपमानित किया जा रहा है। क्या हमारी समस्याएं सुनने का हक भी नहीं है?” यह दृश्य मुझे उन पुराने दिनों की याद दिलाता है जब मजदूर आंदोलनों को इसी तरह दबाया जाता था।

यह रोकटोक सिर्फ रायगढ़ तक सीमित नहीं है। प्रदेश के कई जिलों जैसे गरियाबंद, धमतरी, बालोद और पांडुका में भी मितानिनों को रायपुर पहुंचने से रोका गया। गरियाबंद से आ रही बहनों को प्रशासन ने बीच रास्ते में रोक दिया, तो उन्होंने राजिम-गरियाबंद मार्ग पर चक्का जाम कर दिया। धमतरी में NHM कर्मियों ने जहां रोका गया, वहीं धरने पर बैठ गईं, और कई जगहों पर नेशनल हाईवे जाम हो गए। पांडुका में तो हंगामा इतना बढ़ा कि NH-130 ठप हो गया। आंदोलनकारी बहनों का कहना है कि यह सब सरकार की मिलीभगत से हो रहा है, ताकि उनका प्रदर्शन कमजोर पड़े। पुलिस का पक्ष सुनने की कोशिश की, लेकिन आधिकारिक बयान में सिर्फ “शांति व्यवस्था बनाए रखने” का जिक्र था, कोई स्पष्ट वजह नहीं।

इस हड़ताल का असर अब स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने लगा है। ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण अभियान रुक गए हैं, गर्भवती महिलाओं की जांच प्रभावित हो रही है, और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। रक्षाबंधन जैसे त्योहार पर भी बहनें धरने से नहीं हटीं, जो उनकी दृढ़ता को दिखाता है। संघ ने चेतावनी दी है कि अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन और तेज होगा, जिसमें केंद्र सरकार को भी घेरा जा सकता है।
सवाल यह है कि आखिर सरकार कब जागेगी? मितानिनें प्रदेश की स्वास्थ्य प्रणाली का आधार हैं, उनकी अनदेखी से आम जनता को नुकसान हो रहा है। मैंने अपने करियर में देखा है कि ऐसे आंदोलन तभी सफल होते हैं जब जनता का समर्थन मिले। उम्मीद है कि जल्द ही कोई सकारात्मक समाधान निकलेगा, वरना यह संघर्ष लंबा खिंच सकता है।

Amar Chouhan

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