रायगढ़ का औद्योगिक काला अध्याय: ऊंचाई से गिरे युवा मजदूर की मौत ने फिर खोली सुरक्षा की पोल, सवालों का सैलाब

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 15 अक्टूबर 2025 – छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के कोतरलिया इलाके में स्थित इंड सिनर्जी पावर प्लांट एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार एक दर्दनाक हादसे की वजह से। सोमवार दोपहर वहां 45 फीट की ऊंचाई से गिरे 21 वर्षीय युवा मजदूर श्रीकांत कुमार सिंह की मौत ने न सिर्फ एक परिवार को विपदा में झोंक दिया है, बल्कि पूरे जिले के औद्योगिक परिदृश्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ठेकेदारी फर्म ए.जी. कंस्ट्रक्शन के अधीन काम करने वाले इस बिहार के औरंगाबाद निवासी युवक की मौत ऊंचाई पर काम के दौरान सुरक्षा उपकरणों की कमी और लापरवाही का जीता-जागता प्रमाण बन गई है। लेकिन यह कोई पहला हादसा नहीं। रायगढ़, जो कभी जूट मिलों और स्टील प्लांट्स की चमक से चमकता था, आज लगातार हो रहे ऐसे हादसों से ‘मौत का जिला’ बनता जा रहा है। आंकड़े चीख-चीखकर बता रहे हैं कि यहां मजदूरों की जानें सस्ती हो चली हैं।
घटना दोपहर करीब 2 बजे की है। श्रीकांत स्टॉक हॉपर के ऊपर वेल्डिंग का काम कर रहे थे। ऊंचाई पर पहुंचते ही अचानक पैर फिसला, संतुलन बिगड़ा, और वे सीधे से नीचे गिर पड़े। चीखें गूंजीं, लेकिन देर हो चुकी थी। गंभीर चोटों से जूझते हुए उन्हें सहकर्मियों ने मेट्रो अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। स्थानीय पुलिस ने तुरंत घटनास्थल का मुआयना किया। शव को पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज रायगढ़ भेजा गया, और चक्रधर नगर थाने की टीम ने जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक आंकड़ों से पता चलता है कि हेलमेट और सेफ्टी हार्नेस जैसे बुनियादी उपकरणों की कमी इस हादसे की मुख्य वजह हो सकती है। साथी मजदूरों का आरोप है कि ठेकेदार फर्में सस्ते में काम निकालने के चक्कर में सुरक्षा मानकों की अनदेखी करती रहती हैं।
श्रीकांत का परिवार – अभी भी बिहार के औरंगाबाद में अज्ञान में जी रहा होगा। दूरदराज के इस प्रवासी मजदूर की मौत ने एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों की उस कड़वी हकीकत को उजागर कर दिया है, जहां सपनों के पीछे भागते हुए जान पर खेलना पड़ता है। भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन काउंसिल के जिला अध्यक्ष विमल चौधरी और युवा मोर्चा के चिरंजीव राय ने अस्पताल और पोस्टमार्टम हाउस पहुंचकर परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने ठेकेदार और प्लांट प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए तत्काल मुआवजे की मांग की। चौधरी ने कहा, “यह मौत नहीं, हत्या है। अगर उचित मुआवजा और स्थायी सहायता नहीं मिली, तो हम सड़कों पर उतरेंगे।” यूनियन ने जांच में पारदर्शिता और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की भी मांग उठाई है। जिले भर के मजदूर समुदाय में शोक के साथ आक्रोश फैल गया है। एक सहकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “ऊंचाई पर काम करते वक्त हार्नेस बांधना तो दूर, हेलमेट तक उपलब्ध नहीं होता। प्रबंधन सिर्फ उत्पादन देखता है, मजदूरों की जान नहीं।”
लेकिन रायगढ़ के लिए यह हादसा कोई नई बात नहीं। यह जिला, जो कोयला खदानों, स्टील प्लांट्स और पावर प्रोजेक्ट्स का केंद्र है, पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक हादसों का केंद्रबिंदु बन चुका है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2024 से जनवरी 2025 तक छत्तीसगढ़ में औद्योगिक इकाइयों में 171 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 124 मजदूरों की मौत हुई और 86 घायल हुए।
इनमें रायगढ़ जिले का हिस्सा कम नहीं। याद कीजिए, अक्टूबर 2025 की शुरुआत में ही उच्छपिंडा गांव के पास एक पावर प्लांट में लिफ्ट के अचानक गिरने से चार मजदूर मारे गए और छह घायल हो गए। ज्यादातर उत्तर प्रदेश और झारखंड के प्रवासी थे, जिन्हें रायगढ़ के जिंदल फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तीन तो पहुंचते ही मर चुके थे।
शक्ति एसपी अंकिता शर्मा ने बताया कि लिफ्ट मिड-एयर में क्रैश हो गई, लेकिन जांच में सुरक्षा प्रोटोकॉल की कमी साफ नजर आई।
समस्या सिर्फ तकनीकी लापरवाही की नहीं। यह एक सिस्टमिक फेलियर है। ठेकेदार फर्में सस्ते श्रम पर निर्भर हैं, जहां सुरक्षा ट्रेनिंग और उपकरणों पर खर्च टाला जाता है। राज्य सरकार की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि मृतक परिवारों के लिए कोई पुनर्वास प्रावधान ही नहीं है।
रायगढ़ जैसे जिलों में, जहां 70 फीसदी आबादी ग्रामीण और आदिवासी है, प्रवासी मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वे सस्ते श्रम के रूप में आकर्षक हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा? केंद्र और राज्य सरकारों को अब कड़े कदम उठाने होंगे – जैसे अनिवार्य सेफ्टी ऑडिट, मुआवजे का त्वरित वितरण, और ठेकेदारों पर ब्लैकलिस्टिंग। अन्यथा, ऐसे हादसे रुकेंगे नहीं, बल्कि बढ़ेंगे।
जांच पूरी होने तक सभी की नजरें प्रशासन पर टिकी हैं। लेकिन श्रीकांत की मौत हमें याद दिलाती है कि विकास की होड़ में इंसानियत को कहीं पीछे न छोड़ दें। क्या रायगढ़ का यह काला अध्याय आखिरी होगा? समय ही बताएगा।