राख का साम्राज्य, ज़हर का व्यापार: सोहनपुर में फ्लाई ऐश माफिया बेनकाब

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
रायगढ़ | 24 दिसंबर
काग़ज़ों में ‘विकास’ और ज़मीन पर ज़हर—यही हकीकत बन चुकी है जिले के औद्योगिक इलाकों की। ग्राम सोहनपुर में अवैध फ्लाई ऐश डंपिंग पर लैलूंगा पुलिस की कार्रवाई ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पर्यावरण कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने का खेल अब भी पूरी बेशर्मी से जारी है।
पुलिस अधीक्षक श्री दिव्यांग पटेल के स्पष्ट निर्देश, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री आकाश मरकाम एवं एसडीओपी धरमजयगढ़ श्री सिद्दांत तिवारी के मार्गदर्शन में लैलूंगा पुलिस ने जिस तत्परता से कार्रवाई की, उसने फ्लाई ऐश के इस काले कारोबार की परतें उधेड़ दीं। थाना प्रभारी उप निरीक्षक गिरधारी साव को मिली पुख्ता सूचना के बाद पुलिस टीम जब ग्राम सोहनपुर पहुंची, तो दृश्य चौंकाने वाला था—प्लांट से निकली राख को मानो कचरे की तरह खुले मैदानों में उड़ेला जा रहा था।
मौके से 7 हाइवा और 2 ट्रेलर, कुल 9 भारी वाहन, फ्लाई ऐश से भरे हुए पकड़े गए। पूछताछ में वाहन चालकों के पास न तो परिवहन की अनुमति थी, न डंपिंग की। साफ था—यह कोई चूक नहीं, बल्कि सुनियोजित अपराध था। पुलिस ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 106 के तहत तत्काल कार्रवाई करते हुए सभी वाहनों को जप्त किया। जब्त संपत्ति की अनुमानित कीमत करीब 6 करोड़ रुपये आंकी गई है।
फ्लाई ऐश: विकास की राख या मौत का धुआँ?
फ्लाई ऐश कोई मामूली अपशिष्ट नहीं है। यह वही महीन ज़हरीला कण है जो हवा में घुलकर सांसों के साथ शरीर में उतरता है और चुपचाप बीमारियों की नींव रखता है। मिट्टी में मिलकर यह उसकी उर्वरता खत्म करता है, फसलों को ज़हर देता है और भूजल को दूषित करता है।
चिकित्सकों और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, फ्लाई ऐश में मौजूद भारी धातुएँ—सीसा, पारा, आर्सेनिक—त्वचा रोग, दमा, फेफड़ों की बीमारी, आंखों में जलन और दीर्घकाल में कैंसर जैसी घातक बीमारियों का कारण बन सकती हैं। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर सबसे तेज़ और खतरनाक होता है।
प्लांट एरिया से बाहर फैला संकट
अब तक फ्लाई ऐश की समस्या को प्लांट परिसरों तक सीमित बताकर टाल दिया जाता रहा, लेकिन सोहनपुर की यह घटना बताती है कि राख का यह ज़हर अब गांवों की देहरी तक पहुंच चुका है। खेत, जंगल, नाले—सब इसकी चपेट में हैं। यह केवल पर्यावरण का सवाल नहीं, बल्कि सीधे-सीधे ग्रामीणों के जीवन और अस्तित्व पर हमला है।
बड़ा सवाल अब भी कायम
पुलिस ने अपनी भूमिका निभाई है और मामले की पूरी जानकारी पर्यावरण विभाग को भेज दी गई है। लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं होते।
यह अवैध डंपिंग किसके इशारे पर हो रही थी?
किस प्लांट से यह फ्लाई ऐश निकली?
अब तक कितने गांव इसकी चपेट में आ चुके हैं?
अगर इन सवालों के जवाब नहीं मिले और जिम्मेदारों पर कठोर कार्रवाई नहीं हुई, तो सोहनपुर केवल एक उदाहरण बनकर रह जाएगा—और राख का यह कारोबार किसी दूसरे गांव में, किसी दूसरी जमीन पर फिर शुरू हो जाएगा।
यह कार्रवाई चेतावनी है—लेकिन क्या यह अंत है, या सिर्फ एक शुरुआत?
नज़र अब प्रशासन और पर्यावरण विभाग पर है।