मैनपाट की हरियाली पर मंडरा रहा संकट: बैक्साइट खदान के विरोध में उफना जनाक्रोश, ग्रामीणों ने कहा—“यह हमारी जमीन, हमारी मां… इसे कोई नहीं छीन सकता”

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
अंबिकापुर/सुरगुजा।
सुरगुजा के मैन्पाट क्षेत्र में प्रस्तावित बैक्साइट खदान और उससे जुड़ी स्टील प्लांट परियोजना को लेकर स्थानीय लोगों का रोष लगातार बढ़ता जा रहा है। कश्मीर और हिमालय की सुंदरता से तुलना पाने वाले मैन्पाट की धरती पर जबरन खनन की आशंका ने ग्रामीणों से लेकर पर्यावरणविदों तक सभी को एकजुट कर दिया है।
मां कुदर्रागी स्टील प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आयोजित पर्यावरण जनसुनवाई के दूसरे दिन सैकड़ों ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी भारी संख्या में पहुंचे और खनन प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया। पूरा जनसुनवाई परिसर घंटों तक नारों से गूंजता रहा।
ग्रामीणों का स्पष्ट संदेश: “मैन्पाट हमारी मां है—इसे कोई नहीं बेचेगा”
जनसुनवाई में सबसे अधिक ध्यान उस वक्त खींचा जब विशेष पिछड़ी जनजाति (मांजी समाज) की जिला पंचायत सदस्य रत्नी मांझी मंच पर आईं। इस आंदोलन की सबसे प्रभावशाली आवाज बन चुकी रत्नी ने कहा—
“मैन्पाट हमारी मां है, हमारी संस्कृति है, हमारा जीवन है।
कुछ मुठ्ठीभर लोगों की लालच के लिए हम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बर्बाद नहीं होने देंगे।”
रत्नी मांझी के ये शब्द सुनते ही पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। वे लंबे समय से मैन्पाट की प्राकृतिक धरोहर—जल स्रोत, जंगल और जैव-विविधता को बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं।
स्थानीय BJP नेता पर ‘सेटिंग’ के आरोप—ग्रामीणों में उबाल
जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों ने खुलकर आरोप लगाया कि स्थानीय स्तर पर कुछ भाजपा नेता कंपनी के साथ मिलकर “सेटिंग” में जुटे हुए हैं।
ग्रामवासियों ने मंच से उन नेताओं के नाम लेते हुए कहा—
“जनता सब देख रही है… समय आने पर हिसाब लिया जाएगा।”
इस आरोप ने माहौल को और गरमा दिया। प्रशासन व पुलिस मौके पर मौजूद थे, लेकिन आक्रोश की तीव्रता कम नहीं हुई।
“मैं मैन्पाट का हिड़मा बनूंगा”—युवा की गूंजती चेतावनी
जनसुनवाई का सबसे चौंकाने वाला क्षण तब आया जब एक गुस्साए युवक ने मंच पर पहुंचकर बस्तर के विद्रोही चिह्न हिड़मा का हवाला देते हुए कहा—
**“बस्तर में हिड़मा है, अब मैन्पाट का हिड़मा भी पैदा हो जाएगा।
अगर सरकार और कंपनी नहीं मानेगी, तो हम हथियार उठाने को मजबूर हो जाएंगे।
यह हमारी जमीन है, हमारी मैन्पाट है—इसे कोई नहीं छीन सकता।”**
युवक की इस तीखी चेतावनी पर पूरा पंडाल तालियों और नारों से गूंज उठा।
इसके बाद माहौल और उग्र हो गया, हालांकि पुलिस व प्रशासन ने संयम बनाए रखा।
कंपनी मौन, ग्रामीणों ने बहिष्कार की अपील
कंपनी के प्रतिनिधि जनसुनवाई में मौजूद थे, लेकिन भारी विरोध के कारण कोई भी मंच पर आकर अपनी बात रख नहीं पाया।
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा—
खदान प्रस्ताव पूरी तरह खारिज
कंपनी का गांवों में बहिष्कार
आने वाले जनसंपर्क कार्यक्रमों में भाग न लेने की अपील
कई सामाजिक संगठनों ने भी ग्रामीणों के साथ कंधे से कंधा मिलाते हुए इस प्रस्ताव को “विनाश की शुरुआत” बताया।
“मैन्पाट बचाओ अभियान” को मिला राज्य भर में समर्थन
मैन्पाट बचाओ अभियान अब सिर्फ सुरगुजा तक सीमित नहीं रहा।
छत्तीसगढ़ के विभिन्न आदिवासी, सामाजिक और पर्यावरण संगठन अब एकजुट होकर इसे राज्यव्यापी आंदोलन में बदलने की तैयारी में हैं।
इस अभियान को—
युवा संगठनों
महिला मंडलों
आदिवासी समाज
पर्यावरणविदों
से व्यापक समर्थन मिल रहा है।
हर कोई एक ही बात कह रहा है—
“मैन्पाट की हरियाली—हमारी पहचान। खनन नहीं, संरक्षण चाहिए।”
पहाड़ की गोद में पलता मैन्पाट आज नए ‘सत्यमेव जयते’ की मांग कर रहा है
सुरगुजा के इस पर्यावरणीय स्वर्ग पर संकट के बादल छाए हुए हैं।
खनन की आसन्न शुरुआत ने पहाड़ों, जंगलों और झरनों के बीच रहने वाले लोगों को असमंजस, गुस्से और चिंता में डाल दिया है।
जनसुनवाई ने साबित कर दिया है कि—
मैन्पाट सिर्फ जमीन नहीं, यहां के लोगों की आत्मा है।
और इस आत्मा को बेचने की इजाजत जनता किसी कीमत पर देने को तैयार नहीं।
समाचार सहयोगी विष्णु (निरंजन) गुप्ता