मिलूपारा में अटकी रेल लाइन: ढाई किमी हिस्से पर शेड बने ‘दीवार’, मुआवजा को लेकर अड़ा विवाद

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 26 अक्टूबर।
कोयला परिवहन को सुगम बनाने के लिए बनाई जा रही खरसिया–धरमजयगढ़ रेल लाइन का काम एक बार फिर रुक गया है।
रेल मंत्रालय के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का ढाई किलोमीटर हिस्सा मिलूपारा में अटका हुआ है, जहां स्थानीय लोगों ने जमीन पर बने शेड और परिसंपत्तियों के उचित मुआवजे की मांग करते हुए आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता न्यायाधिकरण) में मामला दर्ज किया है।
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🔹 दो माह से ठप पड़ा काम, इरकॉन ने बैठक में मानी बात
प्रोजेक्ट की निर्माण एजेंसी इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड ने खुद मंत्रालय की हालिया समीक्षा बैठक में स्वीकार किया कि मिलूपारा के हिस्से में दो महीने से कोई काम नहीं हुआ है।
दरअसल, इस हिस्से में निजी जमीनों और बने हुए निर्माणों को लेकर विवाद चल रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने जमीन तो अधिग्रहित कर ली, लेकिन उनके घर, गोदाम और शेड जैसी परिसंपत्तियों का संतोषजनक मुआवजा अब तक नहीं दिया गया।
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🔹 ढाई किमी में बने शेड बने ‘दीवार’
मिलूपारा क्षेत्र में ढाई किलोमीटर लंबा ट्रैक हिस्सा ऐसा है, जहां ग्रामीणों ने अपनी जमीन पर शेड और कुछ कच्चे निर्माण कर रखे हैं।
यही निर्माण अब रेलवे ट्रैक बिछाने में सबसे बड़ी बाधा बन गए हैं।
परियोजना अधिकारी बताते हैं कि जब तक मुआवजे को लेकर मामला निपट नहीं जाता, भूमि पर किसी तरह की निर्माण गतिविधि शुरू नहीं की जा सकती।
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🔹 मुआवजे के लिए लोगों की अपील, न्याय की उम्मीद
मिलूपारा के ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने परियोजना का विरोध नहीं किया है, बल्कि वे चाहते हैं कि
जमीन के साथ-साथ उनकी परिसंपत्तियों का भी न्यायसंगत मूल्यांकन हो।
उन्होंने कहा — “रेल लाइन राष्ट्रीय परियोजना है, हमें उस पर गर्व है, लेकिन हमारी मेहनत और निवेश का मूल्य मिलना चाहिए।”
ग्रामीणों ने प्रशासन से मुआवजा निर्धारण में पारदर्शिता और निष्पक्ष सर्वे की मांग की है।
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🔹 फॉरेस्ट क्लियरेंस और डायवर्जन की भी अड़चन
रेल लाइन के इस हिस्से में लगभग ढाई हेक्टेयर वनभूमि भी आती है, जिसकी फॉरेस्ट क्लियरेंस और भूमि डायवर्जन प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई है।
यह देरी भी परियोजना के आगे बढ़ने में तकनीकी बाधा बनी हुई है।
सूत्रों का कहना है कि पर्यावरण स्वीकृति (EAC) की नई शर्तें पूरी होने तक निर्माण एजेंसी को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं मिलेगी।
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🔹 कोल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर की रीढ़ है यह रूट
खरसिया–धरमजयगढ़ रेल लाइन कोयला परिवहन कॉरिडोर की प्रमुख कड़ी है।
इससे महाजेंको, एनटीपीसी, एनएमडीसी और अन्य औद्योगिक संयंत्रों को कोयले की सप्लाई सीधे रेल नेटवर्क से होनी है।
रायगढ़, कोरबा और सरगुजा जिलों को जोड़ने वाला यह रूट कोयला परिवहन के लिए वृत्ताकार रेल मार्ग (Circular Coal Corridor) का हिस्सा है।
महाजेंको को आवंटित गारे–पेलमा सेक्टर 2 कोल ब्लॉक से भी यही रेल लाइन होकर गुजर रही है।
यानी मिलूपारा का यह छोटा हिस्सा अब पूरे प्रोजेक्ट की प्रगति पर बड़ा असर डाल रहा है।
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🔹 प्रशासन की चुनौती — मुआवजा पहले या निर्माण पहले?
अब प्रशासन के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि
पहले मुआवजा दिया जाए या पहले अतिक्रमण हटाया जाए।
यदि परिसंपत्तियों को हटाया जाता है तो सामाजिक तनाव की संभावना है, और अगर मुआवजा दिए बिना निर्माण किया गया, तो मामला अदालत में उलझ सकता है।
परियोजना सूत्रों का कहना है कि रेलवे, जिला प्रशासन और भूमि स्वामियों के बीच तीन-स्तरीय वार्ता की तैयारी चल रही है ताकि समझौते के रास्ते पर समाधान निकल सके।
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🔹 सारांश
मिलूपारा में अटकी रेल लाइन केवल एक ढाई किलोमीटर की दूरी की कहानी नहीं है,
बल्कि यह जमीन अधिग्रहण, मुआवजा नीति और प्रशासनिक पारदर्शिता की जटिल तस्वीर भी पेश करती है।
जब तक ग्रामीणों की मांगों का समाधान नहीं होता, खरसिया–धरमजयगढ़ रेल प्रोजेक्ट की रफ्तार धीमी ही रहेगी।
समाचार सहयोगी रोशन डनसेना की रिपोर्ट