मितानिनो की दो महीने की राशि लटकी, रायगढ़ सीएमएचओ पर सियासत का सवाल

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 16 अक्टूबर 2025
छत्तीसगढ़ की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली मितानिन बहनों का आक्रोश आज रायगढ़ के सिविल अस्पताल परिसर में देखने को मिला। यहाँ रायगढ़ जिले की सैकड़ों मितानिनों और उनके प्रशिक्षकों ने सीएमएचओ कार्यालय जाकर अपनी पीड़ा जगजाहिर की। विगत दो माह से लंबित प्रोत्साहन राशि और क्षतिपूर्ति भत्ते की मांग को लेकर उठी यह आवाज न केवल इन बहनों की आर्थिक तंगहाली को उजागर करती है, बल्कि राज्य सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं में व्याप्त विलंब और लापरवाही पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे जिला सचिव केशव प्रसाद चौहान ने मीडिया को दिए विशेष बयान में कहा, “आज रायगढ़ जिले के सभी मितानिन एवं मितानिन प्रशिक्षक अपने मितानिन प्रोत्साहन राशि एवं क्षतिपूर्ति राशि की मांग हेतु सीएमएचओ ऑफिस रायगढ़ गए थे। जिसमें विगत दो माह का राशि नहीं मिला है। इनकी नवरात्रि भी जहां फीकी फीकी रही वहीं आने वाले दिवाली त्योहार के लिए इन कार्यकर्ताओं को बहुत सारी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा। अगर शासन प्रशासन हमारी मांगों को पूरा नहीं करते हैं तो दिवाली त्योहार हमारे लिए फीका पड़ जाएगा।” चौहान के शब्दों में निहित यह निराशा केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि पूरे जिले की हजारों मितानिन बहनों की सामूहिक पीड़ा का प्रतीक है।

मितानिन योजना, जो 2002 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार द्वारा शुरू की गई थी, राज्य की ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने और स्वास्थ्य सेवाओं को घर-घर पहुंचाने का एक अनूठा मॉडल है। आज प्रदेश में करीब 70 हजार मितानिन बहनें सक्रिय हैं, जो टीकाकरण से लेकर पोषण जागरूकता तक हर मोर्चे पर अग्रिम भूमिका निभाती हैं। इनकी प्रोत्साहन राशि—मासिक औसतन 7-8 हजार रुपये—और क्षतिपूर्ति भत्ता (जो क्षेत्रीय कार्य के दौरान होने वाले खर्चों की भरपाई करता है) इनकी आजीविका का आधार हैं। लेकिन पिछले कुछ माह से रायगढ़ जैसे जिले में यह राशि लटकी हुई है। एक मितानिन बहन, नाम न बताने की शर्त पर, ने बताया, “हमारा काम कभी रुकता नहीं। गर्भवती महिलाओं की जांच से लेकर महामारी के समय घर-घर दवा बांटने तक, हम सब कुछ करती हैं। लेकिन दो माह की 15-16 हजार रुपये की राशि न आने से घर का चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है। नवरात्रि में तो मां के सामने मन ही मांगा, लेकिन दिवाली पर पटाखे फोड़ने के बजाय कर्ज चुकाने की चिंता सता रही है।”
यह समस्या रायगढ़ तक सीमित नहीं। राज्य स्तर पर मितानिनों की राशि भुगतान प्रक्रिया में विलंब की शिकायतें बढ़ रही हैं। जुलाई 2024 में वर्तमान विष्णु देव साय सरकार ने एक बड़ी सौगात देते हुए 70 हजार मितानिनों के खातों में 90 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि सीधे ट्रांसफर की थी, जो राज्य स्तर से ब्लॉक-स्तरीय विलंब को दूर करने का प्रयास था। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, ऑनलाइन पोर्टल पर तकनीकी खराबियां और दस्तावेज सत्यापन में देरी के कारण जमीनी स्तर पर समस्या बरकरार है। जिला प्रशासन स्तर पर शीघ्र समाधान के लिए उच्चाधिकारियों को अवगत कराया गया है। मितानिन बहनों का योगदान अतुलनीय है, उनकी परेशानी को प्राथमिकता देनी चाहिए।

सही नजरिए से देखें तो यह घटना छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य नीतियों में एक गहरी दरार को उजागर करती है। मितानिनें, जो संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में ग्रामीण स्वास्थ्य सशक्तिकरण का प्रतीक हैं, आज अपनी ही सरकार के हितैषी बनने को मजबूर हैं। पिछले वर्षों में कोविड महामारी के दौरान इन बहनों ने जो जोखिम उठाया, उसके बदले में मिली यह उपेक्षा न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर भी प्रहार है। दिवाली से पहले सभी लंबित राशियां वितरण सुनिश्चित करना चाहिए जिसके लिए आश्वासनों से आगे बढ़कर ठोस कदमों की जरूरत है।
अगर शासन ने इनकी मांगों को प्राथमिकता नहीं दी, तो न केवल दिवाली फीकी पड़ेगी, बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी गहरा असर पड़ेगा। मितानिन बहनें राज्य की धड़कन हैं—उनकी मुस्कान लौटाना सरकार की जिम्मेदारी है। क्या विष्णु देव साय सरकार यह संदेश देगी कि ‘नारी शक्ति’ को केवल चुनावी मौसम में याद किया जाता है, या फिर यह त्योहार इन बहनों के लिए रोशनी का प्रतीक बनेगा? समय और कार्रवाई ही जवाब देगी।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान की रिपोर्ट