महाजेनको खदान परियोजना से क्या बर्बाद हो जायेंगे जल, जंगल और जमीन ⁉️पढ़िए पूरी खबर..

सम्पादक अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़। महाराष्ट्र राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (महाजेनको) की गारे पेलमा 2 (जीपी 2) कोयला खदान परियोजना को लेकर एक नया विवाद सामने आया है। जहां एक और कंपनी , प्रशासन दावा कर रहे हैं कि परियोजना में पर्यावरण संरक्षण, स्थानीय सहभागिता और विधिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसके विपरीत गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि ग्राम सभा की सहमति ली ही नहीं गई है और परियोजना से पर्यावरणीय विनाश के साथ-साथ स्थानीय लोगों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। गौरतलब है की यह क्षेत्र पाँचवी अनुसूची क्षेत्र है जहाँ पेशा कानून लागु है।
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि 2018 और 2019 में हुई ग्राम सभा की बैठकों में उनकी वास्तविक राय को दरकिनार किया गया। कई लोगों ने दावा किया कि इन बैठकों में उनकी आपत्तियों को दर्ज नहीं किया गया। एक ग्रामीण नेता ने कहा, “हमें बताया गया कि यह परियोजना हमारे लिए रोजगार और विकास लाएगी, लेकिन अब हमारी जमीन छिन रही है और जंगल नष्ट हो रहे हैं।” इसके अलावा, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने वन स्वीकृति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने जल्दबाजी में फैसला लिया और वन्यजीवों पर प्रभाव का आकलन ठीक से नहीं किया गया।
हालांकि प्रशासन और कंपनी का कहना है कि परियोजना से रोजगार के अवसर बढ़े हैं और यह ऊर्जा संरक्षण के लिए जरूरी है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले भी क्षेत्र में कई खदान खुले, नौकरी के लुभावने वादे किये गए पर इन वादों का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। एक युवा ग्रामीण ने बताया, “हमें नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन ज्यादातर काम बाहरी लोगों को दिया जा रहा है।” इसके साथ ही, पर्यावरण स्वीकृति (ईसी) और जल दोहन की अनुमति पर भी सवाल उठ रहे हैं। कार्यकर्ताओं का दावा है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 15 जनवरी, 2024 के फैसले में कई तथ्यों को नजरअंदाज किया गया और प्रभावित समुदाय की आवाज को अनसुना कर दिया गया।
विरोध के बावजूद, परियोजना को जुलाई 2024 में राज्य सरकार से अंतिम मंजूरी मिल चुकी है, जिसके बाद खनन कार्य तेजी से शुरू होने की संभावना है। लेकिन स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठनों ने इसे एनजीटी और उच्च अदालत में चुनौती देने की बात कही है। उनका कहना है कि यह परियोजना सतत विकास के नाम पर पर्यावरण और आदिवासी समुदायों के हितों के साथ खिलवाड़ कर रही है। इस विरोधाभास के बीच सवाल उठता है कि क्या यह परियोजना वास्तव में विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी या यह क्षेत्र के लिए अब एक और संकट बनकर उभरेगी?
