मनरेगा की जगह नई ग्रामीण रोजगार योजना की तैयारी, नाम बदलेगा, नियम सख्त होंगे, राज्यों की जिम्मेदारी बढ़ेगी

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
नई दिल्ली | 17 दिसंबर 2025
देश की ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को मौजूदा स्वरूप में समाप्त कर उसकी जगह एक नई ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना लाने की तैयारी में है। इसके लिए लोकसभा में नया विधेयक पेश किया जाने वाला है। सरकार इसे ग्रामीण विकास और किसानों के हित में एक बड़ा सुधार बता रही है, जबकि विपक्ष इसे महात्मा गांधी के नाम और विरासत से जोड़कर देख रहा है।
सरकार द्वारा प्रस्तावित नए कानून का नाम ‘विकसित भारत – रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ रखा गया है। अंग्रेज़ी में इसे Viksit Bharat – Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission (Gramin) कहा जाएगा। संसदीय हलकों में यह विधेयक VB-G RAM G Bill, 2025 के नाम से चर्चा में है। गौरतलब है कि मनरेगा वर्ष 2005 से लागू है और पिछले करीब 20 वर्षों से यह ग्रामीण गरीबों के लिए रोजगार का सबसे बड़ा सहारा रहा है।
राज्यों की भूमिका होगी मजबूत
नए विधेयक में राज्य सरकारों को पहले से कहीं अधिक अधिकार दिए गए हैं। अब यह तय करने की स्वतंत्रता राज्यों को होगी कि स्थानीय जरूरतों के अनुसार श्रमिकों से कौन-कौन से कार्य कराए जाएं। योजना को प्रधानमंत्री गति शक्ति कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा, जिससे विकास कार्यों में पारदर्शिता आए और एक ही काम को बार-बार दोहराने की स्थिति न बने। इसके तहत हर ग्राम पंचायत के लिए विस्तृत विकसित ग्राम पंचायत योजना तैयार की जाएगी, ताकि गांव भी ‘विकसित भारत @2047’ के लक्ष्य में सहभागी बन सकें।
केंद्र और राज्य दोनों होंगे जवाबदेह
जहां अब तक मनरेगा का अधिकांश खर्च केंद्र सरकार उठाती थी, वहीं नई योजना में लागत साझा करने का मॉडल अपनाया जाएगा। सामान्य राज्यों में खर्च का अनुपात केंद्र और राज्य के बीच 60:40 रहेगा, जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए यह 90:10 होगा। इससे राज्यों की जिम्मेदारी बढ़ेगी और फंड के इस्तेमाल पर निगरानी भी सख्त होगी।
खेती-किसानी को ध्यान में रखकर बदलाव
सरकार का तर्क है कि मनरेगा के चलते खेती के मौसम में खेतों में मजदूरों की कमी की शिकायतें आती रही हैं। नई योजना में इस समस्या के समाधान की कोशिश की गई है। रोजगार की गारंटी 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है। साथ ही मजदूरों को खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों में, यहां तक कि अपने स्वयं के खेतों पर भी काम करने की अनुमति दी जाएगी।
राज्यों को यह अधिकार भी मिलेगा कि वे बुवाई और कटाई जैसे अहम कृषि कार्यों के दौरान एक साल में अधिकतम 60 दिन तक सार्वजनिक कार्यों को अस्थायी रूप से रोक सकें। हालांकि यह रोक लगातार नहीं होगी, बल्कि 10 से 15 दिन के चरणों में लागू की जाएगी, ताकि विकास कार्य पूरी तरह ठप न हों।
विकसित ग्राम पंचायत पर विशेष जोर
नई व्यवस्था में डिजिटल उपस्थिति, आधार आधारित सत्यापन और सीधे बैंक खाते में भुगतान को अनिवार्य किया जाएगा। तय समय पर रोजगार उपलब्ध न कराने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देना राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी होगा। फिलहाल करीब 40 लाख ग्रामीण परिवार 100 दिन की रोजगार योजना का लाभ ले रहे हैं, जिसे बढ़ाकर 125 दिन किया जाएगा।
ग्राम पंचायतों की जरूरत के अनुसार आंगनबाड़ी भवन, सामुदायिक भवन और अन्य बुनियादी ढांचे के कार्य तय किए जाएंगे और उसी आधार पर धन आवंटन होगा।
आपदा के समय भी मिलेगा काम
सरकार ने स्पष्ट किया है कि बाढ़, सूखा या अन्य राष्ट्रीय आपदाओं के दौरान भी इस योजना के तहत ग्रामीणों को रोजगार दिया जाएगा। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए इस योजना का प्रस्तावित बजट 1,51,282 करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले साल के 86,000 करोड़ रुपये से काफी अधिक है।
पंचायतों की होगी ग्रेडिंग
कामकाज के आधार पर ग्राम पंचायतों को A, B और C ग्रेड में बांटा जाएगा। जिन पंचायतों में विकास कार्य कम हुए हैं या जहां जरूरत ज्यादा है, वहां इस योजना के तहत विशेष प्राथमिकता दी जाएगी।
ग्रामीण विकास के चार प्रमुख क्षेत्र
नई योजना के तहत जल सुरक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, अत्यधिक मौसमीय घटनाओं से निपटने की परियोजनाएं और आजीविका से जुड़ी अवसंरचना को प्राथमिकता दी जाएगी। इन सभी परिसंपत्तियों को राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक से जोड़ा जाएगा।
नाम बदलने पर विपक्ष का तीखा विरोध
मनरेगा का नाम बदलने और नया कानून लाने को लेकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोला है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सवाल उठाया कि नाम बदलने से सरकारी कागजों और व्यवस्थाओं में बदलाव पर भारी खर्च होगा, लेकिन जनता को इससे क्या फायदा मिलेगा। उन्होंने महात्मा गांधी का नाम हटाए जाने पर नाराजगी जताई। वहीं तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने इसे गांधी जी का अपमान बताया।
कुल मिलाकर सरकार इस नई योजना को ग्रामीण भारत के लिए सुधारात्मक कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे प्रतीकों और विरासत से जोड़कर देख रहा है। अब निगाहें संसद पर टिकी हैं, जहां इस विधेयक पर जोरदार बहस तय मानी जा रही है।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान