भाजयुमो प्रदेशाध्यक्ष रवि भगत का दर्द: डीएमएफ फंड पर सवाल, सरकार की चुप्पी

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के लैलूंगा निवासी और भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के प्रदेशाध्यक्ष रवि भगत ने अपनी ही सरकार के खिलाफ एक मार्मिक अपील के जरिए जनता का ध्यान खींचा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक 4 मिनट के छत्तीसगढ़ी गीत के माध्यम से डीएमएफ (जिला खनिज न्यास) फंड के दुरुपयोग और स्थानीय लोगों के साथ हो रहे अन्याय को उजागर किया। रवि भगत का यह कदम न केवल साहसिक है, बल्कि यह सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है। लेकिन इसके जवाब में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर चुप कराने की कोशिश की है, जो यह दर्शाता है कि सरकार और पार्टी असल मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है।
डीएमएफ फंड का दुरुपयोग: जनता के हक पर डाका
रवि भगत ने अपने वीडियो में रायगढ़ क्षेत्र की खनन कंपनियों की मनमानी और डीएमएफ फंड के दुरुपयोग को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि खनन प्रभावित क्षेत्रों के लिए आवंटित हजारों करोड़ रुपये का फंड स्थानीय विकास, सड़क, जल और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए खर्च नहीं हो रहा। इसके बजाय, यह राशि कहीं और उपयोग की जा रही है, जिससे जनजाति समाज और स्थानीय लोग ठगे जा रहे हैं। भगत ने साफ कहा, “डीएमएफ और सीएसआर का पैसा खनन प्रभावित गांवों की बुनियादी जरूरतों के लिए है, लेकिन इसका उपयोग दूसरी जगह हो रहा है। यह जनजाति समाज के साथ अन्याय है।”
उन्होंने रायगढ़ के विधायक और छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी से इस मुद्दे पर स्पष्टता की मांग की थी। दो दिन पहले अपने सोशल मीडिया पोस्ट में भगत ने विनम्रता से आग्रह किया था कि चौधरी, जो अपनी अध्ययनशीलता और प्रशासनिक अनुभव के लिए जाने जाते हैं, डीएमएफ नीति के बारे में जनता को जानकारी दें। लेकिन जवाब में सवाल उठाने वाले की आवाज दबाने के लिए नोटिस थमा दिया गया।
पार्टी का नोटिस: सवाल दबाने की कोशिश?
बीजेपी ने रवि भगत को अनुशासनहीनता और सोशल मीडिया पर वित्त मंत्री की कार्यशैली पर सवाल उठाने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है। नोटिस में सात दिन के भीतर जवाब मांगा गया है, जिसमें यह भी पूछा गया है कि उनकी प्राथमिक सदस्यता क्यों न रद्द की जाए। यह कदम न केवल रवि भगत के साहस को दबाने की कोशिश है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अपने ही नेताओं की आवाज को सुनने के बजाय चुप कराने को प्राथमिकता दे रही है।
सवाल यह है कि क्या रवि भगत ने गलत सवाल उठाया? डीएमएफ फंड का उपयोग अगर प्रभावित क्षेत्रों में नहीं हो रहा, तो यह जनता के साथ धोखा नहीं है? क्या सरकार को यह जवाब देना चाहिए कि हजारों करोड़ रुपये कहां खर्च हो रहे हैं? इसके बजाय, एक युवा नेता को नोटिस देकर यह संदेश दिया जा रहा है कि सच्चाई उजागर करने की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सोशल मीडिया पर छिड़ा घमासान
रवि भगत के वीडियो और पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। जहां कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसे मौके के रूप में इस्तेमाल कर बीजेपी सरकार की खामियों को उजागर किया, वहीं बीजेपी के कुछ कार्यकर्ताओं ने भगत की इस हरकत को अनुशासनहीनता करार दिया। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या अपनी ही सरकार की जवाबदेही मांगना अनुशासनहीनता है? क्या स्थानीय लोगों के हक के लिए आवाज उठाना गलत है?
सरकार को आत्ममंथन की जरूरत
रायगढ़ में खनन कंपनियों की मनमानी और डीएमएफ फंड के दुरुपयोग का मुद्दा कोई नया नहीं है। स्थानीय लोग लंबे समय से रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। रवि भगत ने जो सवाल उठाए, वे न केवल रायगढ़ बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के खनन प्रभावित क्षेत्रों की जनता की आवाज हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर पारदर्शिता लाए और फंड के उपयोग की जांच करे। इसके बजाय, सवाल उठाने वाले को चुप कराने की कोशिश न केवल अलोकतांत्रिक है, बल्कि यह जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही की कमी को भी उजागर करती है।
आगे क्या?
1. पारदर्शिता सुनिश्चित करें: सरकार को डीएमएफ और सीएसआर फंड के उपयोग का हिसाब जनता के सामने रखना चाहिए।
2. स्थानीय हितों को प्राथमिकता: खनन प्रभावित क्षेत्रों में सड़क, पानी, शिक्षा और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं पर फंड खर्च करना सुनिश्चित करें।
3. आवाज को सम्मान: रवि भगत जैसे नेताओं की आवाज को दबाने के बजाय, उनकी बातों को गंभीरता से लें और समाधान की दिशा में काम करें।
4. पार्टी में एकजुटता: बीजेपी को अपने आंतरिक मतभेदों को सुलझाने और गुटबाजी को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, ताकि सरकार और संगठन में विश्वास बना रहे।
रवि भगत का साहसिक कदम छत्तीसगढ़ की जनता की वास्तविक समस्याओं को सामने लाता है। डीएमएफ फंड का दुरुपयोग और खनन कंपनियों की मनमानी न केवल स्थानीय लोगों के साथ अन्याय है, बल्कि यह सरकार की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। बीजेपी को इस नोटिस के जरिए सवाल दबाने के बजाय, जवाब देने की दिशा में काम करना चाहिए। अगर सरकार और पार्टी समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देती, तो यह न केवल जनता के बीच असंतोष को बढ़ाएगा, बल्कि पार्टी के भीतर भी उथल-पुथल का कारण बन सकता है। यह समय है कि सरकार अपनी गलतियों का अहसास करे और जनता के हक के लिए ठोस कदम उठाए।