बेटी_बनी_मिसाल : पिता की अंतिम इच्छा पूरी कर समाज को दिया नया संदेश

जया_चौहान_ने_निभाया बेटे_का_फर्ज, पिंडदान_कर_रच_दिया_इतिहास
अपने_पिता_के_लिए_यह_संस्कार_करने_वाली देश_की_पहली_महिला
सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम बरमकेला। भारतीय समाज में पिंडदान और अंतिम संस्कार जैसी परंपराएँ सदियों से बेटों से जुड़ी रही हैं। लेकिन सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला ब्लॉक के ग्राम बोरे की रहने वाली कु_जया_चौहान ने इस सोच को बदलते हुए एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए बेटे की तरह पिंडदान की सारी रस्में निभाकर समाज को नया दृष्टिकोण दिया है।
पिता_की_अंतिम_इच्छा, बेटी_ने_की_पूरी…
जया अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। 12 अगस्त 2025 को ग्राम बोरे निवासी विद्याधर_चौहान का 58 वर्ष की आयु में निधन हुआ। जीवन के अंतिम क्षणों में उन्होंने अपनी बेटी जया से कहा था कि उनकी अस्थि विसर्जन और पिंडदान की जिम्मेदारी वही निभाए। जया ने पिता के आदेश को ही अपना कर्तव्य मानकर साहस और श्रद्धा से सारी रस्में पूरी कीं।
बेटी_ने_तोड़े_परंपरा_के_बंधन….
जया ने पूरे विधि-विधान से सिर मुंडवाकर पिंडदान किया। यह देखकर हर कोई भावुक हो उठा। पंडित जी ने गर्व से कहा – “बेटी, आज तुमने बेटे से भी बढ़कर फर्ज निभाया है। तुम जैसी संतानें ही समाज की सच्ची धरोहर हैं।” वहीं नाई ने भी सिर झुकाकर कहा – “बिटिया, मैं भाग्यशाली हूँ कि तुम्हारे पिता की यह रस्म निभाने में मेरी भूमिका बनी। तुम्हारे पापा सचमुच महान थे कि उन्हें तुम जैसी बेटी मिली।”
ऐतिहासिक_क्षण….
इतिहास में ऐसे मामले विरले ही हुए हैं। वर्ष 2023 में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर की एक बेटी ने अपनी माँ का पिंडदान कर समाज में चर्चा बटोरी थी। लेकिन पिता का पिंडदान कर मुंडन करने वाली प्रथम महिला के रूप में जया चौहान ने नया इतिहास रच दिया है। इस तरह वे पूरे भारत में ऐसी मिसाल पेश करने वाली दूसरी बेटी बनीं, परंतु अपने पिता के लिए यह संस्कार करने वाली पहली महिला हैं।
बेटी_का_भावुक_संदेश….
जया चौहान ने कहा –
“मेरे पापा ने मुझ पर बेटे से बढ़कर विश्वास किया था। उनकी अंतिम इच्छा पूरी कर मैं खुद को धन्य महसूस कर रही हूँ। मेरी यही प्रार्थना है कि लोग बेटियों को बोझ न समझें, उन्हें आशीर्वाद मानें। भ्रूण हत्या बंद हो और हर बेटी को जीने और आगे बढ़ने का अवसर मिले।”
समाज_के_लिए_प्रेरणा….
जया का यह कदम समाज के लिए गहरा संदेश है। उन्होंने साबित कर दिया कि बेटियाँ हर जिम्मेदारी निभाने में सक्षम हैं। यह मिसाल उन परिवारों के लिए प्रेरणा है, जो आज भी बेटे-बेटी में भेदभाव करते हैं। जया चौहान ने न सिर्फ पिता की अंतिम इच्छा पूरी की, बल्कि पूरे समाज को यह सिखाया कि —
“बेटियाँ बेटे से कम नहीं, बल्कि उनसे बढ़कर भी हो सकती हैं।”