बरौद कोल माइंस में मुआवजा का ‘महालूट’: बजरमुड़ा की स्याही सूखी नहीं, रायगढ़ में फिर खेला करोड़ों का काला खेल!

छत्तीसगढ़ का रायगढ़ बना मुआवजा महाघोटाले का गढ़
एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 14 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ का रायगढ़ अब कोयले की खदानों से ज्यादा मुआवजा घोटालों का अड्डा बन चुका है। बजरमुड़ा कांड की कालिख अभी धुली भी नहीं थी कि बरौद कोल माइंस विस्तार प्रोजेक्ट में एक और सनसनीखेज घोटाला सामने आया है – एक ऐसा सुनियोजित डाका, जिसमें फर्जी निर्माण, झूठा मूल्यांकन और सरकारी तंत्र की नाक के नीचे करोड़ों की लूट का खुला खेल चल रहा है। यह घोटाला बजरमुड़ा की कार्बन कॉपी नहीं, बल्कि उससे कहीं ज्यादा शातिर और बेशर्म है। ग्रामीण, जमीन दलाल और राजस्व अधिकारियों का गठजोड़ इस काले कारनामे का केंद्र है, और सवाल यह कि क्या सरकार इसे भी फाइलों में दफन कर देगी?
घोटाले की शुरुआत: बजरमुड़ा की ‘काली’ नकल
बजरमुड़ा में मुआवजा लूट का फॉर्मूला सरल था – अधिग्रहण की खबर मिलते ही टीन शेड, झोपड़ियां और कच्चे मकान रातोंरात खड़े कर मुआवजा राशि को कई गुना बढ़ा लिया गया। सरकार इसे दबाने में जुटी थी, लेकिन बरौद कोल माइंस विस्तार में वही नाटक और धूर्तता के साथ दोहराया गया। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने कोयला उत्पादन बढ़ाने के लिए इस प्रोजेक्ट को शुरू किया, जिसके लिए पर्यावरण स्वीकृति पहले ही हासिल हो चुकी है। पोरडा, पोरडी, कुर्मीभौना, चिमटापानी समेत छह गांवों की करीब 1000 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई। लेकिन परिसंपत्ति मूल्यांकन का सर्वे शुरू होते ही लूट का पर्दा खुल गया।
एसईसीएल ने बार-बार नोटिस, मीटिंग्स और जागरूकता अभियानों के जरिए ग्रामीणों को अधिग्रहण की जानकारी दी थी। फिर भी, रातोंरात टीन शेड ‘पक्के मकानों’ में तब्दील हो गए। असिंचित खेतों में बोरवेल खोदे गए ताकि उन्हें सिंचित बताकर मुआवजा दस गुना बढ़ाया जा सके। एक सूत्र ने खुलासा किया, “ग्रामीणों को सलाह दी गई – बोरवेल खोद लो, सर्वे में सब ‘फिक्स’ कर देंगे। कमीशन दो, मुआवजा लो।” यह सब कुछ सरकारी नाक के नीचे हुआ, और अब सवाल यह है – आंखें थीं बंद, या जानबूझकर मूंद ली गईं?
सरकारी तंत्र का ‘काला’ चेहरा
इस घोटाले का सबसे घिनौना पहलू है राजस्व विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों की मिलीभगत। सर्वेक्षण में शामिल एक अधिकारी पर आरोप है कि उसने लाभार्थियों के साथ साठगांठ कर फर्जी मूल्यांकन करवाया। कच्चे मकानों को पक्का, असिंचित जमीन को सिंचित दिखाकर मुआवजा राशि को आसमान पर पहुंचा दिया गया। कुर्मीभौना में एक रिटायर्ड शिक्षक इस खेल का ‘सूत्रधार’ बना – वह ग्रामीणों और सर्वे टीम के बीच दलाल बनकर हर कदम पर मौजूद रहा, यह सुनिश्चित करते हुए कि गलत आंकड़े दर्ज हों।
एसईसीएल ने जब यह गोरखधंधा पकड़ा, तो एसडीएम घरघोड़ा को पत्र लिखकर निर्माण पर रोक लगाने की मांग की। आदेश तो जारी हुए, लेकिन तब तक फर्जी निर्माणों की बाढ़ आ चुकी थी। हैरानी की बात – इन अवैध निर्माणों को बाद में ‘वैध’ कैसे ठहराया गया? यह सवाल प्रशासन की मंशा को कठघरे में खड़ा करता है।
भारतमाला से बड़ा: रायगढ़ का ‘महालूट’
जानकारों का कहना है कि तमनार और घरघोड़ा का यह घोटाला भारतमाला प्रोजेक्ट की लूट को भी मात देता है। जहां भारतमाला में लाखों का खेल था, यहां करोड़ों की लूट का अंदेशा है। अगर समय पर जांच न हुई, तो एसईसीएल को अतिरिक्त मुआवजा देना पड़ेगा, जिसका बोझ अंततः जनता की जेब से जाएगा। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब तक न तो दोषियों की शिनाख्त हुई, न ही किसी अधिकारी पर कार्रवाई। क्या यह सरकारी संरक्षण का नमूना नहीं?
रायगढ़ में यह कोई नया पैटर्न नहीं। बड़ी परियोजनाएं आती हैं, अधिग्रहण होता है, और फिर मुआवजा लूट का बाजार गर्म हो जाता है। ‘कोयले के खदान में सब काले’ वाली कहावत यहां शब्दशः सही साबित हो रही है। दलालों का जाल, ग्रामीणों का लालच और प्रशासन की चुप्पी – यह तिकड़ी रायगढ़ को मुआवजा घोटालों का ‘हब’ बना चुकी है।
सवाल और मांग: कब टूटेगा लूट का जाल?
यह घोटाला सिर्फ आर्थिक लूट का नहीं, बल्कि विकास परियोजनाओं की साख पर धब्बा है। मुख्यमंत्री कार्यालय, लोकायुक्त और केंद्रीय जांच एजेंसियों को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। सवाल कई हैं:
– क्या एसईसीएल की शिकायत पर सख्त जांच होगी?
– क्या रिटायर्ड शिक्षक जैसे दलालों और भ्रष्ट अधिकारियों को सलाखों के पीछे भेजा जाएगा?
– क्या यह ‘महालूट’ बजरमुड़ा की तरह कागजों में दब जाएगा?
रायगढ़ की जनता की नजरें अब सरकार पर हैं। अगर इस बार भी कार्रवाई नहीं हुई, तो छत्तीसगढ़ की कोयला अर्थव्यवस्था पर यह काला दाग स्थायी हो जाएगा। समय है कि इस लूट के जाल को तोड़ा जाए, वरना रायगढ़ का ‘मुआवजा महाघोटाला’ इतिहास में एक और काले अध्याय के रूप में दर्ज हो जाएगा।
(कोयले की खदान में सब काले)