बरौद कोल माइंस के विस्थापितों की हुंकार: रायगढ़ में हक की लड़ाई, “अब और बर्दाश्त नहीं”

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा, रायगढ़। साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की बरौद कोल माइंस के विस्थापित परिवारों का गुस्सा अब सड़कों पर उबाल मार रहा है। सोमवार को रायगढ़ की सड़कों पर हजारों की तादाद में विस्थापितों का जनसैलाब उमड़ा, जिसमें महिलाएं, बुजुर्ग, युवा और यहां तक कि बच्चे भी शामिल थे। यह नजारा किसी सामान्य प्रदर्शन का नहीं, बल्कि दशकों से दबे-कुचले हक और अधिकारों की लड़ाई का था। हाथों में तख्तियां, सिर पर लाल पट्टियां, झंडे और बैनर लिए विस्थापितों की आवाज एक ही थी – “हमारा हक लौटाओ, बरौद विस्थापित जाग चुके हैं!”
रायगढ़ का कलेक्टोरेट परिसर इस दिन एक अभूतपूर्व जनांदोलन का गवाह बना। धरना स्थल पर डटे लोगों का जोश और जुनून देखते ही बन रहा था। महिलाएं ढोलक की थाप पर अपने दर्द को गीतों में बयां कर रही थीं, तो बच्चे हाथों में पोस्टर लिए “एसईसीएल होश में आओ”, “बरौद का हक लौटाओ”, “भीख नहीं, अधिकार चाहिए” जैसे नारे लगा रहे थे। पूरा माहौल आंदोलनकारी हो गया था, और यह साफ था कि यह लड़ाई अब सिर्फ कुछ परिवारों की नहीं, बल्कि पूरे बरौद गांव के अस्तित्व की है।

वक्ताओं ने मंच से एक के बाद एक एसईसीएल प्रबंधन और जिला प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बरौद गांव के लोगों ने अपनी पुश्तैनी जमीन, घर और आजीविका को विकास के नाम पर कुर्बान कर दिया, लेकिन बदले में उन्हें न तो उचित मुआवजा मिला, न रोजगार, न ही पुनर्वास की मूलभूत सुविधाएं जैसे घर, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं। एक वक्ता ने गुस्से में कहा, “हमारी जमीन पर कोयला निकाला जा रहा है, मुनाफा कमाया जा रहा है, लेकिन हमारी जिंदगी बद से बदतर हो रही है। यह अन्याय अब और नहीं सहेगा।”

आंदोलन में युवाओं की भागीदारी ने इस प्रदर्शन को और भी तीखा बना दिया। युवाओं ने मंच से हुंकार भरी कि 18 साल पूरे होने के बाद भी विस्थापित परिवारों के बच्चों को अलग से लाभ नहीं दिया जा रहा। एक युवा वक्ता ने सवाल उठाया, “क्या हमारी पीढ़ी का कोई अस्तित्व नहीं? क्या हमें सिर्फ मजदूर बनाकर छोड़ देना है? हमारी जमीन पर खनन हो रहा है, लेकिन हमारी नई पीढ़ी को रोजगार और सम्मान क्यों नहीं मिल रहा?” इस सवाल ने पूरे माहौल को और उग्र कर दिया।

महिलाओं ने भी अपनी आवाज बुलंद की। एक बुजुर्ग महिला ने मंच से कहा, “हमने अपनी जमीन दी, अपने घर छोड़े, लेकिन बदले में हमें सिर्फ वादे मिले। हमारे बच्चे बेरोजगार हैं, हमारे गांव में स्कूल और अस्पताल तक नहीं। क्या यही है विकास?” उनके शब्दों में दर्द और आक्रोश साफ झलक रहा था।

विस्थापितों ने एसईसीएल प्रबंधन पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया। उनका कहना था कि कोल बेयरिंग एक्ट 1957 के तहत उनकी जमीन का अधिग्रहण किया गया, लेकिन पुनर्वास और रोजगार के वादे आज तक पूरे नहीं हुए। कई वक्ताओं ने बताया कि 2004 से ही बरौद कोल माइंस के प्रभावित लोग अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन हर बार उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिले।

प्रशासन पर भी विस्थापितों का गुस्सा साफ दिखा। धरना स्थल पर “हक दो, न्याय दो” के नारे गूंजते रहे, और पुलिस बल की भारी मौजूदगी के बावजूद लोगों के तेवर ठंडे नहीं पड़े। एक वक्ता ने चेतावनी दी, “अब और इंतजार नहीं। या तो हमारी मांगें पूरी हों, वरना रायगढ़ की सड़कें हर दिन हमारे आक्रोश का गवाह बनेंगी।”

विस्थापितों की प्रमुख मांगों में शामिल हैं:
– **उचित पुनर्वास**: विस्थापित परिवारों के लिए घर, स्कूल, अस्पताल और अन्य बुनियादी सुविधाएं।
– **रोजगार**: प्रत्येक प्रभावित परिवार के लिए कम से कम एक स्थायी नौकरी।
– **मुआवजा**: भूमि अधिग्रहण के लिए उचित और समयबद्ध मुआवजा।
– **नई पीढ़ी के लिए लाभ**: 18 साल से अधिक उम्र के युवाओं को परिवार से अलग मानकर रोजगार और अन्य लाभ देना।
वक्ताओं ने साफ कहा कि अगर ये मांगें जल्द पूरी नहीं हुईं, तो आंदोलन और तेज होगा। कुछ ने तो कोल माइंस के उत्पादन और डिस्पैच को बंद करने की चेतावनी भी दी।
बरौद कोल माइंस के विस्थापितों का यह आंदोलन रायगढ़ की फिजा में एक सशक्त संदेश छोड़ गया। यह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि दशकों से चले आ रहे अन्याय और छलावे के खिलाफ एक जंग है। विस्थापितों ने साफ कर दिया कि अब वे पीछे नहीं हटेंगे। “अबकी बार, अधिकार लेकर रहेंगे” का नारा सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
एसईसीएल प्रबंधन और जिला प्रशासन के लिए यह आंदोलन एक बड़ा अलार्म है। अगर मांगें जल्द पूरी नहीं हुईं, तो यह जनसैलाब और बड़ा रूप ले सकता है। रायगढ़ की सड़कों पर गूंज रही यह हुंकार अब सिर्फ बरौद की नहीं, बल्कि हर उस विस्थापित की आवाज बन चुकी है, जो अपने हक के लिए लड़ रहा है।