“बनेकेला में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध—ग्रामवासियों ने उठाया वह कदम, जो सरकार सालों से उठाने में नाकाम रही”

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम लैलूंगा।
लैलूंगा क्षेत्र के ग्राम बनेकेला ने शराबखोरी से टूटते परिवारों और बिगड़ते सामाजिक ढांचे से परेशान होकर एक ऐसा साहसिक फैसला लिया है, जिसे शासन-प्रशासन की नाकामी पर सीधा सवाल माना जा रहा है। ग्रामसभा ने सर्वसम्मति से गांव में शराब की बिक्री, निर्माण और भंडारण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।
अगर सरकार शराबबंदी और नशा-नियंत्रण को लेकर अपनी जिम्मेदारी निभाती, तो शायद एक पूरे गांव को खुद खड़ा होकर इतना कठोर निर्णय लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
सरकार पर सवाल : क्या नशामुक्ति सिर्फ कागजों में?
बनेकेला के ग्रामीणों का कहना है कि
वे कई वर्षों से गांव के पास स्थित अवैध शराब बनाने वालों, बिक्री करने वालों और शराब माफियाओं की शिकायतें प्रशासन तक पहुंचा रहे थे,
लेकिन सरकार और स्थानीय प्रशासन ने न तो कोई सख्त कार्रवाई की, न ही स्थायी समाधान दिया।
ग्रामीणों के शब्दों में—
“जब सरकार हमारी रक्षा नहीं कर सकी, तो हमें खुद अपनी रक्षा के लिए नियम बनाने पड़े।”
यह टिप्पणी शराब नीति और जमीनी स्तर पर उसकी कमजोर लागू व्यवस्था पर तीखा सवाल खड़ा करती है।
सरकार की शराब नीति पर कटाक्ष :
राजस्व बड़ा या समाज?
बनेकेला के बुजुर्गों ने साफ कहा—
शराब से घर टूट रहे थे,
आय नष्ट हो रही थी,
बच्चे गलत आदतों में फंस रहे थे,
लेकिन अनियमित निगरानी के कारण यह बीमारी गांव में गहरी जड़ें जमा रही थी।
ग्रामीणों का आरोप है कि सरकार केवल “राजस्व और दुकानें खोलने” पर सक्रिय दिखती है, लेकिन
नशामुक्ति, स्वास्थ्य, महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक शांति—इन सब पर सरकार की चुप्पी समझ से परे है।
ग्राम सभा की ऐतिहासिक घोषणा : ‘अब दारू नहीं, और सरकार चाहे तो नाराज़ हो जाए’
ग्रामसभा के प्रस्ताव में स्पष्ट लिखा गया—
गांव में शराब बनाते, बेचते या छिपाकर रखते पकड़े जाने पर
10,000 रुपये का जुर्माना लगेगा।
दोबारा पकड़े जाने पर कठोर सामाजिक दंड और पुलिस कार्रवाई दोनों लागू होंगे।
ग्राम प्रधान ने मंच से बयान दिया—
“अगर सरकार नहीं रोक सकती तो हम खुद रोकेंगे। हमारे गांव की शांति किसी भी आय से ज्यादा कीमती है।”
महिलाओं की कड़ी टिप्पणी :
“सरकार ने हमें शराब से नहीं, हमने अपने दम पर अपने घरों को बचाया”
महिलाएं इस फैसले की सबसे बड़ी ताकत रहीं। उन्होंने कहा—
बच्चों की फीस शराब में उड़ती थी,
रात-रात भर झगड़े होते थे,
पुलिस को बुलाने के बावजूद कोई स्थायी कार्रवाई नहीं होती थी।
एक महिला ने तीखा सवाल पूछा—
“सरकार शराब बेचकर पैसा कमाती है, लेकिन क्या टूटे हुए परिवारों का दर्द भी गिनेगी?”
युवाओं ने भी सरकार को घेरा
युवाओं ने कहा कि सरकार
खेल मैदान,
रोजगार,
स्किल डेवलपमेंट
जैसी योजनाओं पर बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन शराब ने युवाओं को अंधेरी राह पर धकेल दिया और सरकार की तरफ से रोकथाम के नाम पर सिर्फ बयानबाज़ी हुई।
युवा बोले—
“सरकार ने हमें नशे से बचाने की कोशिश नहीं की, इसलिए हमने खुद बचने का रास्ता चुना।”
बनेकेला की शराबबंदी—सरकार के लिए करारा संदेश
गांव की यह एकमात्र पहल नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है।
यह कहती है कि
जब सरकारें सामाजिक सुधार में असफल होती हैं,
जब नशे का व्यापार सरकारी संरक्षण में पनपता है,
जब परिवार बर्बाद होते हैं और प्रशासन आँखें बंद कर लेता है,
तो गांव खुद कानून बनाता है, खुद लागू करता है और खुद समाज को बचाता है।
बनेकेला ने वो कर दिखाया जो सरकार वर्षों से टालती रही**
गाँव का यह निर्णय न सिर्फ साहसिक है बल्कि शासन–प्रशासन के लिए एक आईना भी है।
बनेकेला ने साबित किया है कि—
सामाजिक सुधार जनता करती है, सरकार केवल भाषण।
यह गांव अब ‘नशामुक्त गांव’ बनने की राह पर है,
और सरकार के पास अब दो ही विकल्प हैं—
या तो जागकर इस पहल से सीख ले,
या फिर ऐसे और गांव उठकर उसकी नीतियों को चुनौती दें।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान की रिपोर्ट