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बजरमुड़ा भू-अर्जन घोटाला: कागजों में चल रही जांच, जमीन पर पसरा सन्नाटा! अब भी दूर कार्रवाई

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम
रायगढ़ | 22 दिसंबर 2025

छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े और चर्चित भू-अर्जन मामलों में शुमार बजरमुड़ा घोटाला एक बार फिर विधानसभा में गूंजा, लेकिन सवालों के शोर में जवाबों की धार कुंद नजर आई। विधायक पुरंदर मिश्रा द्वारा उठाए गए प्रश्न पर राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने भले ही यह स्वीकार किया कि आरोपी अधिकारियों व कर्मचारियों से पूछताछ की अनुमति एसीबी-ईओडब्ल्यू को दे दी गई है, पर जमीनी हकीकत यह है कि आज तक एक भी अधिकारी से विधिवत पूछताछ नहीं हो सकी है।

यह पूरा मामला छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल ब्लॉक के भू-अर्जन से जुड़ा है। रायगढ़ जिले के बजरमुड़ा, मिलूपारा, करवाही, खम्हरिया और ढोलनारा गांवों में कुल 449.166 हेक्टेयर भूमि पर लीज स्वीकृत की गई। इसमें 362.719 हेक्टेयर भूमि लीज क्षेत्र के भीतर और 38.623 हेक्टेयर भूमि लीज क्षेत्र से बाहर सरफेस राइट के तहत अधिग्रहित की गई थी।

मुआवजे में खुली लूट, सरकारी खजाने पर भारी चोट

राज्य स्तरीय जांच टीम की रिपोर्ट ने मुआवजा वितरण की पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। असिंचित जमीन को सिंचित बताना, पेड़ों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाना, टिन शेड को पक्का मकान बताना, बरामदे, कुएं, पोल्ट्री फार्म जैसी संरचनाओं का मनमाना और बढ़ा हुआ मूल्यांकन—रिपोर्ट में एक-एक कर तमाम गड़बड़ियां दर्ज हैं। जांच में तत्कालीन एसडीएम घरघोड़ा अशोक मार्बल की भूमिका भी स्पष्ट रूप से सामने आई है।

जुलाई 2020 में प्रारंभिक अधिसूचना जारी होने के बाद 22 जनवरी 2021 को अवार्ड पारित किया गया। केवल बजरमुड़ा गांव की लगभग 170 हेक्टेयर भूमि के एवज में 415.69 करोड़ रुपये का मुआवजा बांट दिया गया। जांच एजेंसियों का मानना है कि यह भुगतान सुनियोजित तरीके से किया गया, जिससे न केवल सरकारी कंपनी को करोड़ों का नुकसान हुआ, बल्कि कोयला खनन की लागत भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई।

निलंबन की खानापूर्ति, कार्रवाई ठंडे बस्ते में

रायगढ़ निवासी दुर्गेश शर्मा की शिकायत पर गठित जांच टीम ने दोषियों के खिलाफ अपराध दर्ज करने की अनुशंसा की थी। इसके बावजूद सरकार ने प्रकरण को एसीबी-ईओडब्ल्यू के हवाले कर दिया। तत्कालीन एसडीएम अशोक मार्बल और पटवारी जितेंद्र पन्ना को निलंबित जरूर किया गया, लेकिन इसके बाद जांच की रफ्तार लगभग थम सी गई।

जिन अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की अनुमति दी गई है, उनमें तत्कालीन तहसीलदार बंदेराम भगत, आरआई मूलचंद कुर्रे, वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी संजय भगत, पीएचई के सहायक अभियंता देवप्रकाश वर्मा और आरके टंडन शामिल हैं। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी एसडीओ केपी राठौर, सब इंजीनियर धर्मेंद्र त्रिपाठी, तहसीलदार टीआर कश्यप, बीटगार्ड रामसेवक महंत और तमनार के वन परिक्षेत्र अधिकारी चितराम राठिया को नोटिस जारी किए जा चुके हैं। इन सभी के जवाब एसीबी को भेजे जाने की बात कही जा रही है, लेकिन जांच की प्रगति पर अब भी धुंध छाई हुई है।

108 हेक्टेयर पर संशोधित गणना, बाकी अब भी अधर में

राजस्व मंत्री के अनुसार बजरमुड़ा की 167 हेक्टेयर निजी भूमि में से 108 हेक्टेयर का संशोधित मुआवजा गणना पत्रक तैयार कर लिया गया है, जबकि शेष 58 हेक्टेयर भूमि पर कार्रवाई अभी लंबित है। एसीबी-ईओडब्ल्यू ने औपचारिक तौर पर जांच शुरू करने की बात कही है और संकेत दिए गए हैं कि बजरमुड़ा के बाद अन्य गांवों में भी जांच का दायरा बढ़ सकता है।

मनी लॉन्ड्रिंग की बू

सबसे बड़ा और अहम सवाल आज भी अनुत्तरित है—कार्यवाई कब होगी? मंत्री के जवाब में कहा गया कि एसडीएम घरघोड़ा से प्रतिवेदन आने के बाद ही प्रकरण दर्ज किया जाएगा। अभी तक यह भी साफ नहीं हो पाया है कि किस-किस व्यक्ति ने कितनी राशि का अवैध मुआवजा उठाया। जानकारों का मानना है कि यह मामला केवल भू-अर्जन घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मनी लॉन्ड्रिंग की गंभीर आशंका भी निहित है।

क्षेत्र में फिर खड़े हो गए ‘मुआवजा भवन’, महाजेनको को भी नुकसान की आशंका

नई बात यह भी है कि क्षेत्र में एक बार फिर मुआवजा भवन खड़े हो गए हैं, जिससे यह आशंका गहराने लगी है कि कहीं महाराष्ट्र सरकार की पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी को भी करोड़ों का नुकसान न उठाना पड़े। सवाल यह है कि क्या प्रशासन ने पिछली गलतियों से कोई सबक लिया है या इतिहास खुद को दोहराने की तैयारी में है।

बजरमुड़ा घोटाले में अनुमति और बयान तो लगातार आ रहे हैं, लेकिन जमीन पर कार्रवाई का नामोनिशान नहीं है। जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच यह सवाल अब जोर पकड़ने लगा है कि यह मामला सचमुच कानून की कसौटी तक पहुंचेगा भी या फिर फाइलों में उलझकर हमेशा की तरह दफन हो जाएगा।

समाचार सहयोगी वीरेंद्र डहरिया

Amar Chouhan

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