बजरमुड़ा भू-अर्जन घोटाला: कछुआ गति से कार्रवाई, एसीबी-ईओडब्ल्यू को जांच, प्रशासन की लापरवाही उजागर

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 15 जुलाई 2025। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े भू-अर्जन घोटालों में से एक, बजरमुड़ा मुआवजा घोटाला, विधानसभा में चर्चा का केंद्र रहा। इस मामले में राजस्व विभाग और प्रशासन की लापरवाही और सुस्ती ने सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल ब्लॉक के लिए बजरमुड़ा में हुए भू-अर्जन में 415 करोड़ रुपये का मुआवजा पारित किया गया, जबकि वास्तविक मुआवजा 100 करोड़ रुपये से भी कम होना चाहिए था। इस घोटाले की जांच अब एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को सौंपी गई है, लेकिन कार्रवाई की धीमी गति और प्रशासनिक लापरवाही ने ग्रामीणों और जनता के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है।
घोटाले का खुलासा: सुनियोजित साजिश और मुआवजे में हेराफेरी
बजरमुड़ा में गारे पेलमा सेक्टर-3 कोल ब्लॉक के लिए 449.166 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया, जिसमें से 170 हेक्टेयर केवल बजरमुड़ा की थी। जुलाई 2020 में प्रारंभिक सूचना प्रकाशित होने के बाद 22 जनवरी 2021 को 478.68 करोड़ रुपये का मुआवजा अवार्ड पारित किया गया। जांच में पाया गया कि असिंचित भूमि को सिंचित बताकर, टिन शेड को पक्का निर्माण, घास के मैदानों में 2000 पेड़ दिखाकर, और बरामदे, कुएं, पोल्ट्री फार्म आदि का मनमाना मूल्यांकन कर मुआवजे की राशि को 20 लाख से बढ़ाकर 20 करोड़ तक कर दिया गया। इस सुनियोजित घोटाले में राजस्व अधिकारियों, कर्मचारियों और दलालों की मिलीभगत सामने आई है।
रायगढ़ निवासी दुर्गेश शर्मा की शिकायत पर 15 जून 2023 को राज्य सरकार ने आईएएस रमेश शर्मा की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी। 31 मई 2024 को जांच रिपोर्ट में मुआवजा पत्रक में गंभीर अनियमितताओं की पुष्टि हुई। इसके बावजूद, कार्रवाई में देरी ने प्रशासन की गंभीरता पर सवाल उठाए हैं।
विधानसभा में उठा मुद्दा: राजस्व मंत्री का जवाब
छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र 2025 में विधायक धरमलाल कौशिक ने बजरमुड़ा घोटाले पर सवाल उठाया। जवाब में राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने बताया कि 20 जून 2025 को सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिखकर मामले की जांच एसीबी-ईओडब्ल्यू को सौंपने का आदेश दिया गया है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मुआवजा वितरण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुईं, जिसमें राजस्व अभिलेखों में हेरफेर और संपत्तियों का गलत मूल्यांकन शामिल है।
मंत्री ने सदन में कुछ अतिरिक्त अधिकारियों के नाम भी गिनाए, जिनमें चितराम राठिया (रेंजर, वन विभाग), केपी राठौर (एसडीओ, पीडब्ल्यूडी), देवप्रकाश वर्मा (सहायक अभियंता, पीएचई), बलराम प्रसाद पडिहारी (परिक्षेत्र सहायक, खम्हरिया वृत्त, वन विभाग), आरके टंडन (सहायक अभियंता, पीएचई), तिरिथ राम कश्यप (तहसीलदार, तमनार), सीआर सिदार (पटवारी), और मालिक राम राठिया (पटवारी) शामिल हैं। हालांकि, पूर्व में जारी एफआईआर आदेश में इनके नाम शामिल नहीं थे, जिससे प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं।
प्रशासन की सुस्ती और सिस्टम की नाकामी
बजरमुड़ा घोटाले में कार्रवाई की गति बेहद धीमी रही है। जांच शुरू करने में दो साल, एफआईआर के आदेश में एक साल, और ईओडब्ल्यू को मामला सौंपने में एक और साल का समय लग गया। पूर्व कलेक्टर कार्तिकेया गोयल ने अपने तबादले से पहले तत्कालीन एसडीएम अशोक कुमार मार्बल, तहसीलदार बंदेराम भगत, आरआई मूलचंद कुर्रे, पटवारी जितेंद्र पन्ना, पीडब्ल्यूडी सब इंजीनियर धर्मेंद्र त्रिपाठी, वरिष्ठ उद्यानिकी अधिकारी संजय भगत, और बीटगार्ड रामसेवक महंत के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। लेकिन इनमें से केवल दो पटवारियों को निलंबित कर प्रशासन अपनी पीठ थपथपा रहा है, जबकि बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई अब तक नहीं हुई।
इस मामले में सीएसपीजीसीएल ने मुआवजा राशि पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद ब्याज को 32 माह से घटाकर 6 माह कर मुआवजा 415.69 करोड़ रुपये कर दिया गया। फिर भी, यह राशि वास्तविक मूल्य से कई गुना अधिक है, जिससे सरकार को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
सिस्टम की लापरवाही: घोटालों का सिलसिला
बजरमुड़ा घोटाला रायगढ़ जिले में लारा कांड के बाद दूसरा सबसे बड़ा सुनियोजित घपला माना जा रहा है। जांच में सामने आया कि भू-माफिया, दलाल, उद्योगपति, और राजस्व अधिकारियों का एक गिरोह इस घोटाले में शामिल है। रायगढ़ में भू-अर्जन घोटालों पर सख्ती से न निपटने के कारण यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है।
नए रेल लाइन प्रोजेक्ट में भी इसी तरह की हेराफेरी की आशंका जताई जा रही है। चितवाही, भालूमुड़ा, रोड़ोपाली, ढोलनारा, खम्हरिया, मिलूपारा, खर्रा, और सक्ता गांवों में भू-अर्जन के लिए ड्रोन से सत्यापन किया गया, जिसमें टिन शेड को पोल्ट्री फार्म बताकर मुआवजा बढ़ाने की साजिश रची गई।
ग्रामीणों का आक्रोश: सरकार और प्रशासन पर सवाल
बजरमुड़ा घोटाले की सुस्त जांच और कार्रवाई की कमी ने स्थानीय लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार और प्रशासन की मिलीभगत के कारण ही ऐसे घोटाले बार-बार हो रहे हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “जब बड़े अधिकारी बच निकलते हैं और छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाया जाता है, तो भरोसा कैसे रहे? यह घोटाला सरकार के साथ-साथ आम जनता को भी नुकसान पहुंचा रहा है।”
बजरमुड़ा घोटाले की जांच अब एसीबी-ईओडब्ल्यू के पास है, लेकिन कार्रवाई की गति को देखते हुए यह सवाल बना हुआ है कि क्या दोषियों को सजा मिलेगी? विधानसभा में इस मुद्दे को उठाने और जांच के आदेश देने के बावजूद, बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई में देरी और कुछ नामों को एफआईआर से बाहर रखने से प्रशासन की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं।
सख्त कार्रवाई और पारदर्शिता की जरूरत
बजरमुड़ा भू-अर्जन घोटाला न केवल राजस्व विभाग की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे सिस्टम की खामियां और अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी खजाने को अरबों रुपये का नुकसान हो रहा है। सरकार को चाहिए कि इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश दे और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करे। साथ ही, भविष्य में ऐसे घोटालों को रोकने के लिए भू-अर्जन प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो बजरमुड़ा जैसे घोटाले छत्तीसगढ़ के विकास और जनता के विश्वास को और ठेस पहुंचाएंगे।