पुरुंगा में अंबुजा कोल माइंस के खिलाफ जनसुनवाई का व्यापक विरोध — हजारों ग्रामीणों की सभा में गूंजा नारा: “हमारी जमीन, हमारा हक़”

धरमजयगढ़/रायगढ़ | एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम | 11 नवम्बर 2025
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में प्रस्तावित मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड (अडानी समूह) की पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान परियोजना को लेकर जनसुनवाई के दिन आज पूरा इलाका आंदोलन के रंग में रंगा नज़र आया।
जनसुनवाई के विरोध में पुरुंगा, सामरसिंघा, तेंदुमुरी सहित 50 से अधिक ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों — महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों — ने आज भारी संख्या में एकजुट होकर विरोध सभा की शुरुआत की।
ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि वे किसी भी कीमत पर अपनी उपजाऊ जमीन, जंगल और जलस्रोत को उद्योगों के हवाले नहीं करेंगे।
जनसुनवाई स्थल से पहले ही विरोध की “जनसुनवाई”
सुबह से ही पुरुंगा पंचायत क्षेत्र में हजारों की भीड़ जुटने लगी थी। ग्रामीण महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में डंडा-झंडा लिए नारे लगा रही थीं —
> “कोल खदान नहीं चाहिए!”, “हमारी जमीन, हमारा जीवन!”, “जल-जंगल-जमीन पर हमारा हक़ रहेगा!”
सभा स्थल पर पहुंचे सामाजिक संगठनों, युवाओं और ग्राम प्रतिनिधियों ने कहा कि जनसुनवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है, जबकि वास्तविक प्रभावितों की आवाज़ को सुनने की कोई मंशा प्रशासन या कंपनी की ओर से दिखाई नहीं दे रही।
869 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रस्तावित है खदान परियोजना
जानकारी के अनुसार अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की यह पुरुंगा भूमिगत कोयला खदान परियोजना लगभग 869.025 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रस्तावित है, जिसमें कई राजस्व और वन ग्राम शामिल हैं।
इन इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि खदान खुलने से
खेती योग्य भूमि, जंगल की जैव विविधता, पेयजल स्रोत और पर्यावरणीय संतुलन पर गहरा असर पड़ेगा।
ग्रामीणों का आरोप — “बिना सहमति के जनसुनवाई थोपना अन्याय है”
ग्राम तेंदुमुरी के एक किसान प्रतिनिधि ने कहा —
> “हमसे कभी सही तरीके से राय नहीं ली गई। कंपनी और प्रशासन ने जनसुनवाई की तारीख तय कर दी, जबकि हमारे सवालों के जवाब किसी के पास नहीं हैं।”
ग्राम पुरुंगा की महिला कार्यकर्ता कु. कौशल्या पटेल ने कहा —
> “हमारे गाँव की नदियाँ, खेत और जंगल हमारी पहचान हैं।
खदान खुलेगी तो सबसे पहले महिलाएँ और बच्चे प्रभावित होंगे।
हम अपनी जमीन किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।”
युवा मोर्चा हुआ मुखर — “रोजगार नहीं, विस्थापन मिलेगा”
विरोध स्थल पर उपस्थित युवाओं ने भी प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठाए।
युवा नेता गजेन्द्र चौहान ने कहा —
> “अंबुजा और अडानी जैसी कंपनियाँ विकास के नाम पर धोखा दे रही हैं।
हमें रोजगार का सपना दिखाया जाता है, लेकिन हकीकत में हमारी जमीन छीनी जाती है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने जनसुनवाई को जबरन संपन्न कराया, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।
पुलिस और प्रशासन सतर्क
बढ़ती भीड़ को देखते हुए धरमजयगढ़ प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए हैं।
जनसुनवाई स्थल के आसपास बड़ी संख्या में पुलिस बल और राजस्व अधिकारी तैनात किए गए हैं।
हालांकि प्रशासन का कहना है कि वह “ग्रामीणों के अधिकारों का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण संवाद” की दिशा में काम कर रहा है।
आंदोलनकारियों का संदेश — “विकास चाहिए, विनाश नहीं”
सभा में उपस्थित विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक सुर में कहा कि
वे पर्यावरण-संवेदनशील विकास के पक्षधर हैं, लेकिन उद्योगों के नाम पर
जल-जंगल-जमीन की लूट को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
सभा के अंत में ग्रामीणों ने संकल्प लिया कि
> “जब तक सरकार और कंपनी हमारे मुद्दों पर स्पष्ट जवाब नहीं देती,
तब तक विरोध जारी रहेगा।”
गौरतलब है कि अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की यह परियोजना बीते एक वर्ष से विवादों में है।
धरमजयगढ़ क्षेत्र के दर्जनों ग्राम पंचायतों ने पहले भी लेखा परीक्षण, विस्थापन नीति और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट (EIA) को लेकर सवाल उठाए थे।
ग्रामीणों ने मांग की है कि किसी भी परियोजना की मंजूरी से पहले ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य रूप से ली जाए।
पुरुंगा जनसुनवाई के विरोध में उमड़ी यह भीड़ सिर्फ एक परियोजना का विरोध नहीं,
बल्कि आदिवासी और ग्रामीण समाज के स्वाभिमान की आवाज़ बन चुकी है।
यह आंदोलन बताता है कि विकास की परिभाषा अब लोगों पर नहीं थोपी जा सकती —
उसे जनता की सहमति और सहभागिता से ही अर्थपूर्ण बनाया जा सकता है।