पत्नी की हत्या करने वाले अपराधी अनिल बेहरा को आजीवन कारावास: रायगढ़ कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ के घरघोड़ा क्षेत्र में एक ऐसी घटना ने समाज को झकझोर दिया, जो पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते पर सवाल उठाती है। अपर सत्र न्यायाधीश श्री अभिषेक शर्मा ने तमनार के चिर्रामुड़ा गांव निवासी अनिल कुमार बेहरा को अपनी पत्नी खुशबू बेहरा की निर्मम हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। यह मामला न केवल एक अपराध की कहानी है, बल्कि एक ऐसी विकृत मानसिकता को उजागर करता है, जो विश्वास और प्रेम के रिश्ते को तार-तार कर देती है।
घटना का खौफनाक सच
29 अप्रैल 2022 की रात, अनिल कुमार बेहरा ने अपनी पत्नी खुशबू बेहरा के साथ चरित्र पर संदेह के चलते झगड़ा किया। इस झगड़े में उसकी क्रूर मानसिकता तब सामने आई, जब उसने गुस्से में आकर तकिए से खुशबू का मुंह और नाक दबाकर उसकी हत्या कर दी। यह वह क्षण था, जब एक पति, जो सात जन्मों का साथी बनने की कसम खाता है, अपनी पत्नी का हत्यारा बन गया। अपनी कुत्सित सोच को छिपाने के लिए उसने हत्या को दुर्घटना का रूप देने की साजिश रची। उसने खुशबू के शव को तमनार अस्पताल ले जाकर दावा किया कि वह पलंग से गिरने के कारण घायल हो गई। लेकिन सच को ज्यादा देर तक छिपाया नहीं जा सका।
पोस्टमॉर्टम ने खोली पोल
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने अनिल की साजिश को बेनकाब कर दिया, जिसमें खुशबू की मृत्यु का कारण हत्या बताया गया। तमनार पुलिस ने इस आधार पर जांच शुरू की और अनिल ने अंततः अपना अपराध कबूल कर लिया। थाना प्रभारी जी.पी. बंजारे ने धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (सबूत मिटाने) के तहत चालान तैयार कर न्यायालय में पेश किया।
न्यायालय का कड़ा रुख
अपर सत्र न्यायाधीश श्री अभिषेक शर्मा ने साक्ष्यों, गवाहों के बयानों और दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद अनिल को दोषी ठहराया। उसे धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और 1000 रुपये जुर्माने की सजा, साथ ही धारा 201 के तहत 5 वर्ष के सश्रम कारावास और 1000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई। इस फैसले ने न केवल खुशबू के परिवार को न्याय दिलाया, बल्कि समाज में ऐसी हिंसक और संदिग्ध मानसिकता के खिलाफ कड़ा संदेश दिया।
हत्यारे की मानसिकता: एक सामाजिक चेतावनी
अनिल कुमार बेहरा की यह हरकत उस विकृत सोच को दर्शाती है, जो बिना सबूत के संदेह को हथियार बनाकर हिंसा का रास्ता चुन लेती है। खुशबू, जो अपने सपनों और नई जिंदगी की उम्मीदों के साथ वैवाहिक जीवन में कदम रखी थी, को अपने पति की क्रूरता का शिकार होना पड़ा। यह घटना समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर ऐसी मानसिकता क्यों पनपती है, जो प्रेम और विश्वास को हिंसा और हत्या में बदल देती है।
न्याय से मिली राहत, लेकिन सवाल बाकी
खुशबू के परिवार की आंखों में फैसले के बाद खुशी के आंसू छलक आए, लेकिन यह सजा खुशबू को वापस नहीं ला सकती। यह मामला समाज से सवाल पूछता है कि हम अपने बच्चों को कैसी शिक्षा और संस्कार दे रहे हैं? क्या संदेह और गुस्से को नियंत्रित करने की समझ विकसित करने की जरूरत नहीं है? यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए न केवल कानून, बल्कि सामाजिक जागरूकता और संवेदनशीलता की भी जरूरत है।
रायगढ़ कोर्ट का यह फैसला एक मिसाल है, जो ऐसी क्रूर मानसिकता वालों को चेतावनी देता है कि कानून का शिकंजा किसी को नहीं बख्शता।
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