पंचायतों की ‘बिजली-पानी’ पर ब्रेक, अधिकारों पर कैंची—पुसौर जनपद के सरपंचों ने कलेक्टर को सौंपी शिकायत

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़। जनपद पंचायत पुसौर के सरपंचों ने आखिर वह कदम उठा ही लिया जिसकी चर्चा महीनों से गांवों के चौपालों में थी। बकाया 15वें वित्त की राशि, ठप मनरेगा मजदूरीमूलक कार्य और पंचायतों से धीरे-धीरे अधिकार छीने जाने के आरोपों को लेकर सरपंचों ने सामूहिक रूप से कलेक्टर रायगढ़ को ज्ञापन सौंपा है। शिकायतों में न सिर्फ वित्तीय अव्यवस्था का जिक्र है बल्कि जिला स्तर की व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं।
15वें वित्त की राशि एक साल से अटकी—गांवों में पानी, बिजली और स्वच्छता चरमराई
सरपंचों का कहना है कि पिछले एक वर्ष से 15वें वित्त आयोग की राशि पंचायतों को जारी नहीं की गई, जिसका सीधा असर गांवों में मूलभूत सेवाओं पर पड़ रहा है।
बिजली बिल बकाया
पेयजल योजनाएँ रुक-रुक कर चल रही
स्वच्छता कार्य ठप
छोटे मरम्मत व रखरखाव के कार्य बंद
गांवों में शिकायतें बढ़ रही हैं, और सरपंचों का तर्क है कि बिना राशि के वे “नाम के जनप्रतिनिधि” बनकर रह गए हैं।

मनरेगा में मजदूरीमूलक कार्य बंद—ग्रामीण बेरोजगारी में उछाल
ज्ञापन में यह भी आरोप है कि मनरेगा योजना के तहत मजदूरीमूलक कार्य लंबे समय से पंचायतों को नहीं मिल रहे, जिससे ग्रामीण मजदूर रोज़गार से वंचित हो रहे हैं।
कई पंचायतों में स्थिति इतनी खराब बताई गई है कि
कार्यस्थलों पर महीनों तक एक भी मस्टर खुला नहीं।
50 लाख तक के कार्यों को ठेकेदारों के हाथ—सरपंचों ने कहा, “हमारे अधिकारों पर सीधा प्रहार”
सरपंचों की सबसे बड़ी आपत्ति इस बात पर है कि
पंचायत स्तर पर स्वीकृत 50 लाख तक के कार्यों को विभागीय टेंडर के माध्यम से ठेकेदारों को दिया जा रहा है।

सरपंचों का आरोप है कि—
> “पंचायतों के अधिकारों को धीरे-धीरे दरकिनार किया जा रहा है। जो काम गांव की जरूरत देखकर स्थानीय स्तर पर किये जाने थे, उन्हें ठेकेदारों के हवाले कर दिया गया है। इससे पारदर्शिता भी घटी और पंचायतें महज दिखावटी संस्थान बनकर रह गई हैं।”
CSR फंड भी ‘गायब’—प्रभावित गांवों में खर्च नहीं होने की शिकायत
ज्ञापन में कहा गया है कि कंपनियों द्वारा दिए जा रहे CSR मद के धन का उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में नहीं हो रहा, बल्कि राशि अन्य जगह खर्च किए जाने के संकेत मिल रहे हैं।
प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों का कहना है कि
जहां खदानें, उद्योग या परियोजनाओं के कारण दिक्कतें बढ़ी हैं, वहीं CSR का लाभ कहीं और जा रहा है।
जल जीवन मिशन के अधूरे काम—मशीनें खड़ी, पाइपें सूखी
सरपंचों ने बताया कि कई गांवों में जल जीवन मिशन के कार्य अधूरे पड़े हैं—कहीं पाइपलाइन लटक रही है, कहीं हाउस कनेक्शन अधूरे, और कभी-कभी टैंकर ही विकल्प बचता है।
उन्होंने कलेक्टर से इन कार्यों को तुरंत पूरा करवाने की मांग की।

कुल मिलाकर… पंचायतें सवालों के घेरे में नहीं, बल्कि ‘संकट’ के घेरे में
कलेक्टर को सौंपे गए इस ज्ञापन के जरिए सरपंचों ने साफ कर दिया है कि
अगर स्थिति नहीं सुधरी तो गांवों की बुनियादी सेवाएँ बुरी तरह प्रभावित होंगी और पंचायतों का अस्तित्व केवल कागजों में रह जाएगा।
अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इन शिकायतों को कितनी गंभीरता से लेता है और सरपंचों की यह सामूहिक आवाज़ प्रशासनिक दफ्तरों की बंद फाइलों में खो जाती है या किसी फैसले का रूप लेती है।