नाबालिग से दुष्कर्म: घरघोड़ा कोर्ट ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई, पीड़िता को 5 लाख मुआवजे की सिफारिश

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा (रायगढ़), 15 नवंबर 2025 – छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक जघन्य दुष्कर्म मामले में विशेष न्यायालय ने कठोर रुख अपनाते हुए आरोपी यशवंत तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायाधीश शहाबुद्दीन कुरैशी की अदालत ने स्पष्ट किया कि यह ‘आजीवन कारावास’ आरोपी की अंतिम सांस तक की सजा होगी, जो भारतीय न्याय व्यवस्था में सबसे कड़ी दंडात्मक कार्रवाइयों में से एक है। साथ ही, अदालत ने पीड़िता – एक मात्र 8 वर्षीय बालिका – के परिवार को 5 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति दिलाने की मजबूत अनुशंसा की है, ताकि बच्ची के पुनर्वास, शिक्षा और मनोवैज्ञानिक उपचार में सहायता मिल सके।
यह मामला 22 जून 2020 का है, जब आरोपी यशवंत तिवारी ने पीड़िता के घर पहुंचकर उसे अंडा खिलाने का लालच दिया और मासूम बच्ची को अपने साथ ले गया। धरमजयगढ़ थाने में दर्ज अपराध क्रमांक 95/2020 के अनुसार, पीड़िता के पिता ने शिकायत की थी कि आरोपी बच्ची को मोटरसाइकिल पर लेकर सुनसान जगह पर गया और उसके साथ बलात्कार किया। पुलिस की त्वरित कार्रवाई से बच्ची को बरामद कर लिया गया, और उसकी प्रारंभिक पूछताछ में ही आरोपी की करतूत उजागर हो गई। चिकित्सीय परीक्षण ने भी दुष्कर्म की पुष्टि की, जिसके आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376(AB), पॉक्सो एक्ट की धारा 6, तथा अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(5) सहित अन्य प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) श्री शहाबुद्दीन कुरैशी की अदालत में चली लंबी सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने अकाट्य सबूत पेश किए। पीड़िता का बयान, मेडिकल रिपोर्ट, गवाहों के कथन और फॉरेंसिक साक्ष्य सभी आरोपी के खिलाफ गए। अभियोजन की ओर से विशेष लोक अभियोजक श्रीमती अर्चना मिश्रा ने मजबूत पैरवी की, जिसके चलते अदालत ने आरोपी को धारा 363 (अपहरण), 376(क) एवं (ख) आईपीसी, पॉक्सो एक्ट की धारा 4 व 6, तथा एससी-एसटी एक्ट की संबंधित धाराओं में दोषी ठहराया। सजा के तौर पर आजीवन कारावास के अलावा कुल 15,500 रुपये का अर्थदंड भी लगाया गया, जो डिफॉल्ट पर अतिरिक्त कारावास में बदलेगा।
यह फैसला न केवल अपराध की गंभीरता को रेखांकित करता है, बल्कि पॉक्सो जैसे विशेष कानूनों की प्रभावशीलता को भी दर्शाता है। न्यायालय ने पीड़िता की उम्र और अपराध की जघन्यता को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की अनुशंसा की, जो राज्य सरकार के पुनर्वास कोष से दिलाई जा सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में त्वरित न्याय और आर्थिक सहायता पीड़ित परिवारों को सामाजिक पुनरुत्थान का आधार प्रदान करती है।
रायगढ़ जिले में बाल यौन शोषण के बढ़ते मामलों के बीच यह सजा एक मजबूत संदेश है। पुलिस अधीक्षक ने मामले की जांच की सराहना की, जबकि सामाजिक संगठनों ने अदालत के फैसले को ‘नजीर’ बताया। पीड़िता की पहचान गोपनीय रखी गई है, लेकिन यह घटना समाज को बच्चों की सुरक्षा पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर रही है।
समाचार सहयोगी बालकृष्ण चौहान की रिपोर्ट