धर्मजयगढ़: SECL अधिग्रहण क्षेत्र में बढ़ते निर्माण पर विवाद तेज, ग्रामीणों ने सर्वे रोकने का किया विरोध

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम धर्मजयगढ़/दुर्गापुर।
खुली खदान परियोजना के लिए अधिग्रहित भूमि को लेकर एक बार फिर धर्मजयगढ़ क्षेत्र में विवाद गहरा गया है। SECL द्वारा फरवरी 2016 में केंद्र व राज्य सरकार की सहमति के साथ 7 गांवों की 4144 एकड़ भूमि नियमानुसार अधिग्रहित की गई थी। लेकिन अब खनन कार्य शुरू करने से पूर्व कराए जा रहे DGPS सर्वे को ग्रामीणों और स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
ग्रामवासियों ने रोका सर्वे, ग्रामसभा में खदान न देने का प्रस्ताव
दुर्गापुर और शाहपुर पंचायत के ग्रामीणों ने सर्वे टीम के पहुंचते ही आपत्ति दर्ज कराते हुए सर्वे कार्य रुकवा दिया। दोनों पंचायतों की ग्रामसभाओं ने “खदान न देने” का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया।
ग्रामीणों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण के शुरुआती चरण—विशेषकर धारा 4 के राजपत्र प्रकाशन (फरवरी 2014)—तब विरोध दर्ज नहीं किया गया, जिसकी वजह से अब प्रबंधन कागजों में सभी प्रक्रियाएं पूर्ण मान रहा है।
कंपनी का तर्क: कानूनी प्रक्रियाओं का पालन अनिवार्य
SECL प्रबंधन का कहना है कि खदान संचालन शुरू करने से पहले धारा 23 के तहत जरूरी प्रक्रियाओं का पालन और प्रभावित क्षेत्र का DGPS सर्वे अनिवार्य है।
लेकिन सर्वे दल के पहुंचते ही स्थानीय स्तर पर कुछ समूहों द्वारा विरोध बढ़ गया, जिसके चलते टीम को वापस लौटना पड़ा।
विरोध के पीछे स्वार्थी तत्व सक्रिय होने का आरोप
सूत्रों के अनुसार, सर्वे कार्य का विरोध केवल प्रभावित किसानों द्वारा नहीं, बल्कि कुछ ऐसे लोगों द्वारा भी किया जा रहा है जो:
रेत और कोयला अवैध उत्खनन से लाभान्वित होते हैं
खुद को प्रभावित दिखाकर 10 गुना मुआवजा पाने की कोशिश में हैं
अधिग्रहित क्षेत्र में धड़ल्ले से नए निर्माण कर मुआवजा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं
बिना टैक्स दिए जमीनों की खरीद-बिक्री कर रहे हैं
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि DGPS सर्वे की जानकारी मिलते ही ऐसे कई तत्व सक्रिय हो गए और ग्रामीणों को भड़काकर विरोध को तेज कर दिया।
कानूनी स्थिति: प्रस्ताव का समय बीत चुका
कानून विशेषज्ञों के अनुसार—
ग्रामसभा का विरोध प्रस्ताव धारा 4 के राजपत्र प्रकाशन के समय दिया जाना चाहिए था, जो 2014 में नहीं दिया गया।
भूमि दर राज्य सरकार भारतीय स्टाम्प अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित करती है।
यदि ग्रामीण असंतुष्ट हैं तो उन्हें राज्य सरकार से पुनर्विचार की मांग करनी चाहिए, न कि अधिनियम पालन कर रही सर्वे टीम से विवाद करना चाहिए।
ग्रामीणों में पुनर्वास और वास्तविक मुआवजे की चिंता
हालांकि एक बड़ा वर्ग यह भी मांग कर रहा है कि यदि खदान खुलती है, तो:
उचित दर पर मुआवजा मिले
परिवारों का सुनियोजित पुनर्वास किया जाए
रोजगार और आजीविका के वैकल्पिक साधन सुनिश्चित हों
कई ग्रामीणों का कहना है कि विरोध की दिशा भ्रमित है—मुख्य आपत्ति राज्य सरकार के निर्णयों पर होनी चाहिए, न कि अधीनस्थ कर्मचारियों या सर्वे टीम पर।
परिस्थिति बनी हुई है तनावपूर्ण
घटना के बाद क्षेत्र में खनन समर्थकों और विरोधियों के बीच माहौल तनावपूर्ण है।
प्रशासन ने स्थिति पर नजर रखते हुए शांति बनाए रखने की अपील की है।
कुल मिलाकर, अधिग्रहण के 9 वर्ष बाद भी यह परियोजना राजनीतिक, सामाजिक और स्थानीय हितों की जटिलताओं में उलझी हुई है।
डेस्क रिपोर्ट