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धरमजयगढ़ में अडानी कोल ब्लॉक के खिलाफ उबाल: पुरुंगा में उमड़ा जनसैलाब, महिलाओं ने संभाली आंदोलन की कमान

“हमारी ज़मीन नहीं देंगे” की गूंज से गूंजी पहाड़ियां

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम धरमजयगढ़ (रायगढ़)।
धरमजयगढ़ ब्लॉक के घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरे ग्राम पुरुंगा में इन दिनों माहौल उबाल पर है। अडानी समूह की सहयोगी कंपनी मेसर्स अंबुजा सीमेंट्स लिमिटेड की प्रस्तावित 869.025 हेक्टेयर भूमिगत कोयला खदान परियोजना के विरोध में ग्रामीणों का आंदोलन लगातार तेज होता जा रहा है। विरोध की कमान अब गांव की महिलाओं ने अपने हाथ में ले ली है, जो संविधान और पेसा कानून का हवाला देते हुए सरकार से परियोजना निरस्त करने की मांग कर रही हैं।



🔸 जनसुनवाई के खिलाफ गांव-गांव में उबाल

11 नवंबर को प्रस्तावित जनसुनवाई से पहले पुरुंगा, तेंदुमुरी और सामरसिंघा ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों ने पेसा कानून के तहत विशेष ग्राम सभा आयोजित कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि यह जनसुनवाई “ग्रामसभा की सहमति के बिना अवैध” है और इसे तत्काल रद्द किया जाए।
ग्रामसभा के इस फैसले के बाद, 22 अक्टूबर को हजारों ग्रामीण—जिनमें महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थी—रायगढ़ जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे। हाथों में तख्तियां, संविधान की प्रति और नारों के बीच ग्रामीणों ने साफ कहा—

> “यह ज़मीन हमारी मां है, इसे हम किसी कंपनी को नहीं देंगे।”





🔸 प्रशासनिक बैठक ने बढ़ाया विवाद

विरोध प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने 24 घंटे का समय लेकर विचार का आश्वासन दिया, लेकिन 23 अक्टूबर को धरमजयगढ़ जनपद पंचायत सभाकक्ष में एसडीएम प्रवीण भगत की अध्यक्षता में हुई बैठक ने हालात और बिगाड़ दिए।
बैठक में अडानी समूह के अधिकारी, पंचायत प्रतिनिधि और बीडीसी सदस्य शामिल हुए, जिसके बाद प्रशासन की जनसंपर्क शाखा से जारी खबर में दावा किया गया कि “ग्रामीण अब जनसुनवाई के लिए तैयार हैं।”
यह खबर जैसे ही फैली, तीनों प्रभावित गांवों में भारी आक्रोश फैल गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने जनमत को तोड़-मरोड़कर पेश किया है।



🔸 संविधान की प्रति लेकर उतरे लोग

प्रशासन की इस कार्यवाही के खिलाफ 29 अक्टूबर को ग्रामीणों ने मौन रैली निकाली। पुरुषों के साथ सैकड़ों महिलाएं संविधान की प्रति और तख्तियां लेकर निकलीं। रैली के अंत में उन्होंने एसडीएम कार्यालय, वन विभाग और जनपद पंचायत में ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि—

> “पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून के तहत ग्रामसभा की अनुमति के बिना किसी परियोजना को मंजूरी नहीं दी जा सकती।”

🔸 राजनीतिक समर्थन से मिला आंदोलन को बल

पुरुंगा में आयोजित बड़ी सभा में क्षेत्रीय विधायक लालजीत सिंह राठिया और रामपुर विधायक फूल सिंह राठिया भी पहुंचे। दोनों ने एक स्वर में कहा—

> “हम अपने लोगों के साथ हैं। किसी भी कीमत पर 11 नवंबर की जनसुनवाई नहीं होने देंगे।”



सभा में उपस्थित जनपद सदस्य, सरपंच, पंच और हजारों ग्रामीणों ने गांधीवादी तरीके से आंदोलन जारी रखने का संकल्प लिया और आगे की रणनीति तय की।



🔸 हाथियों का घर, जंगलों का जीवन और आदिवासियों की चिंता

पुरुंगा, तेंदुमुरी और सामरसिंघा का यह पूरा इलाका पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आता है और पेसा कानून के प्रावधानों से संरक्षित है। यह इलाका हाथी प्रभावित जोन में भी आता है।
ग्रामीणों का कहना है कि कोयला खदान खुलने से घने जंगल उजड़ जाएंगे, हाथियों का प्राकृतिक आवास खत्म होगा, और स्थानीय आदिवासी संस्कृति तथा आजीविका पर सीधा खतरा पैदा होगा।

> “हमें कोयला नहीं चाहिए, हमें जंगल चाहिए, हमें जल-जमीन-जंगल से ही जीवन मिला है”—
ऐसा कहते हुए कई महिलाओं ने मंच से अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।





🔸 अब नज़रें प्रशासन पर

अब सवाल यह है कि जब ग्रामसभाओं ने सर्वसम्मति से जनसुनवाई निरस्त करने का प्रस्ताव पारित किया है, और आंदोलन को स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी समर्थन मिल चुका है, तो क्या प्रशासन 11 नवंबर को जनसुनवाई कराएगा या इसे स्थगित करेगा?
धरमजयगढ़ का यह आंदोलन अब सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह आदिवासी अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण और विकास मॉडल के टकराव का प्रतीक बन चुका है।



आने वाले कुछ दिन तय करेंगे कि धरमजयगढ़ की धरती पर लोकतंत्र की आवाज़ कितनी बुलंद होती है — और क्या ‘जन की सुनी जाएगी या उद्योग की।’

समाचार सहयोगी नीरज विश्वास की रिपोर्ट

Amar Chouhan

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