14 साल पुराने मामले में तीन सामाजिक कार्यकर्ता बरी — जनचेतना की सच्चाई पर लगी मोहर

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ जिले के तमनार क्षेत्र में *जल-जंगल-जमीन बचाने के संघर्ष* से जुड़े तीन सामाजिक कार्यकर्ता — **राजेश त्रिपाठी, हरिहर प्रसाद पटेल और रमेश अग्रवाल** — को लगभग **14 वर्ष पुराने एक प्रकरण में सम्मानपूर्वक बरी** कर दिया गया है। यह ऐतिहासिक फैसला **10 अक्टूबर 2025** को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी **प्रतीक टेंभुरकर** की अदालत से आया, जिसमें अदालत ने तीनों अभियुक्तों को *सभी आरोपों से दोषमुक्त घोषित* किया। यह मामला न्याय प्रक्रिया की लंबी अवधि और जनसंगठनों की सतत लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
जनसुनवाई से शुरू हुआ संघर्ष
मामले की जड़ें **8 मई 2011** को आयोजित पर्यावरणीय स्वीकृति की *जनसुनवाई* से जुड़ी हैं। यह जनसुनवाई **जिंदल पावर लिमिटेड (JPL)** द्वारा प्रस्तावित **2400 मेगावाट तमनार पावर प्लांट** को लेकर थी। इस मौके पर तीनों कार्यकर्ताओं — त्रिपाठी, अग्रवाल और पटेल — ने गांव कुंजेमुरा के हाई स्कूल परिसर में सैकड़ों ग्रामीणों और आदिवासियों के साथ मिलकर परियोजना के विरुद्ध **संगठित विरोध** दर्ज करवाया। उन्होंने *पर्यावरणीय असंतुलन और भूमि अधिग्रहण से ग्रामवासियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों* को लेकर ठोस तर्क रखे।

जनचेतना मंच की इस मुखर भागीदारी से कंपनी प्रबंधन विशेष रूप से **जिंदल पावर लिमिटेड के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (मानव संसाधन) आर. एस. तंवर** नाराज़ हो गए। जनसुनवाई के तुरंत बाद उन्होंने स्थानीय **तमनार थाने में रिपोर्ट दर्ज़ करवाई**, जिसमें तीनों कार्यकर्ताओं पर *मानहानि*, *अशांति फैलाने*, और *सार्वजनिक शांति भंग करने* के कई आरोप लगाए गए।
14 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई
रिपोर्ट के आधार पर 20 जुलाई 2011 को **अपराध क्रमांक 115/2010** दर्ज हुआ। पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की *छह से अधिक धाराओं* में आरोप स्थापित किए और मामला अदालत में विचाराधीन रहा। इस दौरान कई गवाहों के बयान दर्ज़ हुए, तमाम सुनवाई टलती रही, और अंततः लगभग 14 वर्षों के बाद, अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष अपने आरोप *साबित करने में पूरी तरह विफल* रहा।
वरिष्ठ **अधिवक्ता अभिजीत मल्लिक** की तथ्याधारित और तर्कसंगत पैरवी ने अभियुक्तों को न्याय दिलाया। अदालत ने कहा कि *विरोध प्रदर्शन किसी भी नागरिक का संवैधानिक अधिकार है*, और इसे अपराध नहीं कहा जा सकता जब तक कि कोई ठोस साक्ष्य शांति भंग का प्रमाण न दे।

संवेदनशील मुद्दों पर सरकार और उद्योग के विरुद्ध आवाज़
यह मामला उस दौर की याद दिलाता है जब *रायगढ़ और तमनार क्षेत्र में औद्योगिक विस्तार के खिलाफ कई जन आंदोलन उभरे थे*। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लगातार आरोप लगाया था कि जनसुनवाई की प्रक्रिया *एकतरफ़ा और औद्योगिक पक्षधर* थी। इस विरोध की वजह से कई स्थानीय नेताओं, जिनमें रमेश अग्रवाल और हरिहर पटेल शामिल थे, को *धमकियों और हमलों* का सामना करना पड़ा।
अदालत के इस फैसले को सामाजिक संगठनों ने **“जनसंघर्ष की जीत”** बताया है। ‘जनचेतना’ समूह ने कहा कि यह फैसला सिर्फ तीन व्यक्तियों के लिए नहीं, बल्कि *उन सभी आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा* है जो विकास के नाम पर पर्यावरण विनाश और जनविस्थापन के खिलाफ लड़ रहे हैं।
‘विकास के नाम पर अराजकता स्वीकार नहीं’
फैसले के बाद तीनों कार्यकर्ताओं — राजेश त्रिपाठी, रमेश अग्रवाल और हरिहर पटेल — ने संयुक्त रूप से कहा कि वे “**विकास के नाम पर सत्ता द्वारा पोसी जा रही औद्योगिक अराजकता**” के खिलाफ संघर्ष जारी रखेंगे। उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि *जनहित और पर्यावरणीय न्याय* की लड़ाई को वे किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं पड़ने देंगे।
इस ऐतिहासिक निर्णय ने न केवल तीन निर्दोष कार्यकर्ताओं को न्याय दिलाया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि **लोकतंत्र में असहमति अपराध नहीं, साहस है**।