“तमनार SBI ग्रामीण शाखा का तुगलकी फरमान : पति नहीं करवा सकता पत्नी का पासबुक प्रिंट—ग्राहकों में भारी रोष, बैंक प्रबंधन कटघरे में”

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम तमनार।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तमनार ग्रामीण शाखा एक बार फिर विवादों में है। बैंक कर्मियों के रूखे व्यवहार, मनमानी नीति और ग्राहक सेवा के नाम पर तुगलकी नियम बनाए जाने को लेकर ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है। ताज़ा मामला एक खाताधारक का है, जिसे सिर्फ इसलिए सेवा से वंचित कर दिया गया क्योंकि उसने अपनी पत्नी का पासबुक प्रिंट करवाने की कोशिश करी।
बैंक कर्मचारियों ने साफ शब्दों में कह दिया—
“खातेदार खुद उपस्थित नहीं है, इसलिए पति भी पासबुक प्रिंट नहीं करवा सकता।”
ग्रामीणों ने इस फरमान को “अनुचित, असंवैधानिक और बैंकिंग नियमों की गलत व्याख्या” बताया है।
ग्राहक सेवा या ग्राहक अपमान?—SBI तमनार शाखा फिर सवालों में
जानकारी के अनुसार खाताधारक अपनी पत्नी का पासबुक अपडेट कराने बैंक पहुंचा था। उसने अपनी पत्नी की पासबुक और अन्य आवश्यक जानकारी प्रस्तुत की, लेकिन बैंक कर्मचारियों ने बिना किसी वैकल्पिक सत्यापन या प्रक्रिया के सीधे सेवा देने से मना कर दिया।
ग्रामवासियों का आरोप है कि
कर्मचारियों का व्यवहार अत्यंत रूखा था,
ग्राहकों को ऐसे टालने का यह नया तरीका है,
और तमनार बैंक स्टाफ का रवैया सहयोगात्मक होने के बजाय “डांट–डपट वाला” हो गया है।
खातेदार ने कहा—
“सरकारी बैंक में आकर ऐसा लगता है जैसे मदद मांगने नहीं, अपराध करने आए हैं।”
बैंक के तुगलकी फरमान पर सवाल :
क्या SBI नियमों में पति-पत्नी को अलग पहचान से दुश्मन बना दिया गया है?
ग्रामीणों का कहना है कि बैंक कर्मियों ने यह कहकर सेवा से मना किया कि
“पत्नी का अकाउंट है तो वही आएगी। पति का कोई अधिकार नहीं।”
लोगों ने इसे बैंक की गलत समझ और मनमानी का उदाहरण बताया।
ग्राहकों का तर्क है—
पासबुक प्रिंट सिर्फ लेनदेन की जानकारी है,
इसे अपडेट करने के लिए खातेदार की उपस्थिति अनिवार्य नहीं,
कई बैंक परिवार के सदस्यों को भी पासबुक प्रिंट की अनुमति देते हैं,
SBI का ऐसा कोई आधिकारिक आदेश नहीं है जो पति-पत्नी को पासबुक जानकारी से वंचित करे।
ग्रामीणों ने कहा कि यह फैसला “झुंझलाहट से पैदा किया गया नियम” है, बैंकिंग प्रक्रिया से कोई संबंध नहीं।
ग्रामीणों का आरोप : बैंक में आए दिन अपमान, तनाव और उलझन
तमनार ग्रामीण क्षेत्र के कई खातेदारों ने बताया कि यह अकेला मामला नहीं है—
बैंक में
अनावश्यक रोक-टोक,
फोन पर बात करते कर्मचारियों की लापरवाही,
काम के समय नेट सूर्फीँग करने वाले स्टाफ,
और ग्राहकों के प्रति अपमानजनक व्यवहार
लगातार बढ़ रहा है।
किसान, श्रमिक, मजदूर और बुजुर्गों को रोज बैंक में घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता है,
लेकिन स्टाफ की ओर से “सर्वर डाउन”, “सिस्टम बंद है”, “नेट नहीं चल रहा”, “कल आना” जैसे बहाने आम हो गए हैं।
एक महिला खातेदार ने बताया—
“हम सुबह से लाइन में रहते हैं, लेकिन अंदर घुसने पर बोल देते हैं—आज प्रिंटिंग नहीं होगी। ये बैंक है या मजाक?”
शिकायतों की तैयारी, कार्रवाई की माँग तेज
ग्रामीणों ने बैंक प्रबंधन और उच्च अधिकारियों को चेतावनी दी है कि यदि ग्राहक सेवा में सुधार नहीं हुआ,
तो वे
लिखित शिकायत,
सोशल मीडिया कैंपेन,
और बैंकिंग ओम्बड्समैन
तक जाने के लिए तैयार हैं।
उनकी मांगें स्पष्ट हैं—
असहयोगी कर्मचारियों पर कार्रवाई,
शाखा में ग्राहक सेवा में सुधार,
ग्रामीणों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार,
और बैंकिंग कार्यों की पारदर्शी प्रक्रिया।
ग्रामवासियों ने कहा—
“सरकारी बैंक जनता के टैक्स (पैसे) से चलता है, निजी बाप की दुकान नहीं है।”
SBI तमनार ग्रामीण शाखा में सुधार की सख्त जरूरत**
यह घटना बताती है कि तमनार ग्रामीण शाखा में ग्राहक सेवा का स्तर बेहद खराब हो चुका है।
अधिकारियों पर जिम्मेदारी है कि—
नियमों की सही जानकारी स्टाफ तक पहुँचाएं,
ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा करें,
और बैंक को ‘तुगलकी फरमानों’ से मुक्त कर ग्रामीणों के भरोसे को दोबारा बहाल करें।
तमनार की जनता उम्मीद कर रही है कि बैंक प्रबंधन अब जागेगा—
वरना SBI की साख ग्रामीणों के बीच और भी गिरती चली जाएगी।