तमनार में फिर सुलगी आंदोलन की चिंगारी: कंपनी-सरकार गठजोड़ पर ग्रामीणों का तंज, “जंगल काटो, बॉन्ड भरवाओ, मुनाफा कमाओ!”

सम्पादक अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ (छत्तीसगढ़): तमनार क्षेत्र में एक बार फिर आंदोलन की आग भड़कने को तैयार है। ग्रामीणों का गुस्सा सातवें आसमान पर है, और इस बार निशाने पर है जिंदल कंपनी और प्रशासन का वो “पवित्र गठजोड़” जो ग्रामसभा की सहमति को ठेंगा दिखाकर जंगल काटने की अनुमति दे रहा है। ग्रामीणों ने 27 मई से अनिश्चितकालीन आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया है, और उनका कहना है, “जंगल हमारा, जमीन हमारी, फिर फैसला क्यों तुम्हारा?”
“पेड़ काटो, प्रदूषण बढ़ाओ, ग्रामीणों को सताओ”
नागरामुड़ा और मुड़ागांव में जिंदल कंपनी ने बिना ग्रामसभा की मंजूरी के पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। ग्रामीणों का आरोप है कि पांचवीं अनुसूची के नियमों को ताक पर रखकर कोयला खदान के लिए जंगल साफ किए जा रहे हैं। एक स्थानीय आदिवासी ने तंज कसते हुए कहा, “कंपनी को मुनाफा चाहिए, सरकार को वोट, और हमें? हमें कोल डस्ट और बीमारी!” प्रदूषण, खराब सड़कें, बेरोजगारी और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव—तमनार के गांवों में जीवन बद से बदतर हो चुका है।
“बॉन्ड भरवाओ, ग्रीन बेल्ट भूल जाओ”
ग्रामीणों पर दबाव बनाने के लिए प्रशासन ने नया हथकंडा अपनाया है—इस्तगासा दाखिल कर बॉन्ड भरवाना। एक ग्रामीण ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा, “जंगल काटने की सजा हमें, और मुनाफा कंपनी को? ये कैसा इंसाफ है!” एनजीटी के आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए न तो ग्रीन बेल्ट विकसित किया गया, न ही कोल डस्ट से बचाव के लिए कोई कदम उठाया गया। मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाओं का वादा भी जुमला बनकर रह गया।
“जमीन गई, रोजगार नहीं आया”
जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई, उनके परिवार आज भी रोजगार के लिए भटक रहे हैं। एक प्रभावित किसान ने चुटकी लेते हुए कहा, “कंपनी ने हमारी जमीन तो ले ली, लेकिन रोजगार? वो तो शायद उनके मुनाफे के खजाने में ही दब गया!” आदिवासी आबादी, जो जंगलों पर निर्भर है, अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ग्रामीणों का कहना है कि घने जंगलों को बचाने के लिए अंडरग्राउंड माइंस खोली जानी चाहिए, लेकिन “कॉस्ट कटिंग” के नाम पर ओपन कास्ट माइंस को हरी झंडी दी जा रही है।
“फ्लाईएश का धुआं, और कंपनी का मकान!”
फ्लाईएश परिवहन से बढ़ते प्रदूषण ने ग्रामीणों का जीना मुहाल कर दिया है। एक बुजुर्ग ने तंज कसते हुए कहा, “कंपनी का मुनाफा आसमान छू रहा है, और हमारा सांस लेना मुश्किल हो रहा है।” ग्रामीणों ने जंगल कटाई के आदेश को तत्काल रद्द करने और प्रदूषण पर रोक लगाने की मांग की है।
“27 मई से नाकेबंदी, अबकी बार आर-पार”
ग्रामीणों ने साफ कर दिया है कि 27 मई से शुरू होने वाली आर्थिक नाकेबंदी तब तक जारी रहेगी, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। एक युवा आंदोलनकारी ने कहा, “जंगल हमारी मां है, और मां को बचाने के लिए हम किसी भी हद तक जाएंगे। कंपनी और सरकार को अब जवाब देना होगा!”
तमनार की इस जंग में ग्रामीणों का गुस्सा एक बात साफ करता है—जंगल, जमीन और जनता के हक के लिए ये लड़ाई अब और तेज होगी। क्या कंपनी और सरकार इस “गठजोड़” से बाज आएंगे, या फिर तमनार की धरती एक बार फिर आंदोलन की आग में झुलसेगी? समय बताएगा।