Latest News

तमनार के गारें गांव में 16वें कोयला सत्याग्रह का संकल्प: जल-जंगल-जमीन की रक्षा और पेसा कानून की मांग, गांधीवादी अहिंसा की मिसाल

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 4 अक्टूबर 2025: छत्तीसगढ़ के कोयला प्रभावित इलाकों में पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को नई ताकत मिली है। रायगढ़ जिले के तमनार तहसील के ग्राम पंचायत गारें में शुक्रवार को आयोजित 16वें कोयला सत्याग्रह ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सामुदायिक एकजुटता और अहिंसक प्रतिरोध ही प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय समुदायों के हक को मजबूत करने का सबसे प्रभावी हथियार है। यह सत्याग्रह, जो अब 18 वर्षों से अधिक समय से जारी है, गांधी जयंती के अवसर पर शुरू हुआ था, लेकिन इस बार 3 अक्टूबर को गारें गांव में इसके समापन ने क्षेत्रीय आंदोलन को नई दिशा दी। हजारों ग्रामीण महिलाओं, पुरुषों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए ग्राम सभा को सशक्त बनाने तथा पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज) कानून के कड़ाई से पालन की मांग को लेकर एकजुट होकर संकल्प लिया।



यह आयोजन तमनार के कोयला खनन प्रभावित क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां सेंट्रल कोल लिमिटेड (सीईसीएल) और अन्य निजी कंपनियों के खनन कार्यों ने स्थानीय समुदायों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है। 2008 में खमरिया और आसपास के गांवों में हुई हिंसक घटनाओं के बाद स्थानीय संगठन ‘जन चेतना’ ने अहिंसक रास्ता अपनाने का फैसला किया था। तब से यह कोयला सत्याग्रह, महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह की तर्ज पर, हर साल आयोजित हो रहा है—प्रतीकात्मक रूप से ग्रामीण अपने क्षेत्र से कोयला खोदकर सत्याग्रह स्थल पर लाते हैं, जिसकी नीलामी कर ग्राम सभा को मजबूत करने के लिए धन जुटाया जाता है। इस वर्ष 16वें संस्करण में तमनार, पेलमा, लैलूंगा, धर्मजयगढ़ और घरघोड़ा तहसीलों के करीब 50 से अधिक गांवों से लोग जुड़े, जो पिछले वर्षों के आंकड़ों (जैसे 2024 में पेलमा में 30 गांवों की भागीदारी) से भी अधिक है।



सत्याग्रह की शुरुआत गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री के चित्रों पर माल्यार्पण से हुई। कार्यक्रम में वक्ता विद्यावती सिदार, ने कहा, “हमारी जमीन के नीचे जो कोयला है, वह हमारा है। पेसा कानून ग्राम सभा को प्राकृतिक संसाधनों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है, लेकिन खनन कंपनियां और प्रशासन इसे ठेंगा दिखा रहे हैं। आज हम संकल्प लेते हैं कि ग्राम सभा के हर निर्णय को लागू कराने के लिए अहिंसक संघर्ष जारी रखेंगे।” उनके अलावा बंशी पटेल ने खनन से उपजी बेरोजगारी और स्वास्थ्य समस्याओं पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि तमनार ब्लॉक में खनन के कारण भूजल स्तर 100 फीट से अधिक नीचे चला गया है, जिससे किसानों की फसलें सूख रही हैं। गारे के हरिहर प्रसाद पटेल ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा, “यह सत्याग्रह सिर्फ कोयला खोदने का नहीं, बल्कि हमारे अधिकारों को खोदकर बाहर लाने का माध्यम है। हम जन कोयला कानून का विरोध करेंगे और सामुदायिक हिस्सेदारी सुनिश्चित करेंगे।”



आंदोलन में शामिल अन्य प्रमुख चेहरे थे— राजेश त्रिपाठी, राजेश मरकाम, बाबूलाल सिदार, रविशंकर सिदार, सरपंच गारें सविता राठिया, चक्रधर राठिया (पेलमा), कन्हई पटेल, महेश पटेल, हलधर निषाद और सविता रथ। इनमें से कई ग्रामीण महिलाएं, जो खनन के कारण परिवार की आजीविका खो चुकी हैं, सबसे आगे थीं। सविता राठिया ने बताया, “हमारे जंगल कट रहे हैं, नदियां सूख रही हैं, लेकिन हमें कोई मुआवजा या हिस्सेदारी नहीं मिल रही। पेसा कानून के तहत ग्राम सभा को वीटो पावर है, लेकिन यह कागजों तक सीमित है। आज हमने फैसला लिया कि हर गांव में जागरूकता अभियान चलाएंगे।” सत्याग्रह के दौरान केलो नदी के किनारे प्रतीकात्मक खनन किया गया, जहां ग्रामीणों ने तगाड़ी (छोटी टोकरी) भरकर कोयला जुटाया। अनुमानित रूप से डेढ़ क्विंटल कोयला एकत्र हुआ, जिसकी नीलामी ग्राम पंचायत कोष में जमा कर दी गई। यह प्रक्रिया न केवल आर्थिक रूप से सशक्तिकरण का प्रतीक है, बल्कि ग्राम सभा के निर्णयों को व्यावहारिक रूप देने का उदाहरण भी।



यह सत्याग्रह राष्ट्रीय स्तर पर भी गूंज रहा है। पिछले वर्षों में झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से प्रतिनिधि जुड़े थे, और इस बार भी पर्यावरणविदों की उपस्थिति रही। विशेषज्ञों का मानना है कि कोयला सत्याग्रह ने न केवल स्थानीय मुद्दों को उजागर किया है, बल्कि पेसा कानून की कमजोरियों पर भी बहस छेड़ी है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों में भी ग्राम सभा की सहमति को अनिवार्य बताया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका पालन नगण्य है। तमनार क्षेत्र में सीईएल और अडानी जैसी कंपनियों के खनन से 2024 तक ही 5,000 से अधिक परिवार विस्थापित हो चुके हैं, और हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र खतरे में है।

सत्याग्रह के समापन पर लिया गया संकल्प स्पष्ट था: जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए ग्राम सभा को मजबूत करना, पेसा कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना, और गांधीवादी अहिंसा के माध्यम से सामाजिक आंदोलन को विस्तार देना। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि मांगें पूरी न हुईं, तो अगले चरण में राष्ट्रीय स्तर पर धरना और पैदल यात्राएं होंगी। यह आंदोलन न केवल छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों की आवाज है, बल्कि पूरे देश में जलवायु न्याय और सामुदायिक अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। प्रशासन की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन स्थानीय लोग उम्मीद कर रहे हैं कि यह संकल्प दिल्ली तक पहुंचेगा।

Amar Chouhan

AmarKhabar.com एक हिन्दी न्यूज़ पोर्टल है, इस पोर्टल पर राजनैतिक, मनोरंजन, खेल-कूद, देश विदेश, एवं लोकल खबरों को प्रकाशित किया जाता है। छत्तीसगढ़ सहित आस पास की खबरों को पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़ पोर्टल पर प्रतिदिन विजिट करें।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button