तमनार की जनसुनवाई पर सवाल, जल-जंगल-ज़मीन बचाने की गुहार सीधे दिल्ली और रायपुर तक

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़।
तमनार क्षेत्र में प्रस्तावित जनसुनवाई को लेकर उठता विरोध अब प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि संवेदनाओं को झकझोरने वाला रूप ले चुका है। प्रेस रिपोर्टर क्लब के प्रदेश संरक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता श्याम गुप्ता ने इस बार अपनी पीड़ा और आक्रोश को शब्दों के साथ-साथ अपने खून में पिरोकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखा है। उनका यह कदम केवल विरोध नहीं, बल्कि उस क्षेत्र की कराह है, जहां जल, जंगल और जमीन पर औद्योगिक दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
श्याम गुप्ता ने पत्र के माध्यम से आगाह किया है कि आदिवासी बहुल तमनार और आसपास का पूरा रायगढ़ जिला औद्योगिक प्रदूषण की गंभीर मार झेल रहा है। कोयला खदानों और अन्य उद्योगों के विस्तार ने नदियों का पानी जहरीला, हवा को सांस लेने लायक नहीं छोड़ा और खेती योग्य जमीन को बंजर बनने की कगार पर ला दिया है। ऐसे में जनसुनवाई, जो जनता की आवाज़ का मंच होनी चाहिए थी, वह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।

उन्होंने साफ शब्दों में लिखा है कि तमनार के आदिवासी समाज के लिए जल, जंगल और जमीन केवल संसाधन नहीं, बल्कि जीवन और पहचान का आधार हैं। लेकिन फर्जी जनसुनवाई, नियमों की अनदेखी और प्रशासनिक उदासीनता ने इन आधारों को कमजोर कर दिया है। गांवों में बढ़ती सांस की बीमारियां, त्वचा रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं इस औद्योगिक प्रदूषण की भयावह तस्वीर पेश कर रही हैं। इसका असर सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है—वन्यजीव, मवेशी और पक्षी भी असमय मौत का शिकार हो रहे हैं।
श्याम गुप्ता का कहना है कि यदि ऐसे हालात में जनसुनवाई कराई जाती है, तो वह जनता की सहमति नहीं, बल्कि मजबूरी का दस्तावेज होगी। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से सीधे हस्तक्षेप की मांग करते हुए तमनार की जनसुनवाई को जनता हित में निरस्त करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की है।

अपने पत्र में उन्होंने चेताया है कि आज अगर पर्यावरण और आदिवासी अधिकारों की अनदेखी की गई, तो आने वाली पीढ़ियां इसकी भारी कीमत चुकाएंगी। खून से लिखा यह पत्र केवल एक व्यक्ति का विरोध नहीं, बल्कि उस इलाके की सामूहिक पीड़ा और भविष्य की चिंता का प्रतीक बनकर सामने आया है।
समाचार सहयोगी श्याम रेंशी गुप्ता