डिजिटल ‘डिजिटल अरेस्ट’ का जाल: फर्जी सीबीआई अफसर ने 72 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक को फँसाकर 23.28 लाख ठगा — पुलिस गवाह-लेन-देन और सायबर ट्रेसिंग में जुटी

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़
रायगढ़ के पुसौर थाना क्षेत्र में रहने वाले 72 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक गरुण सिंह पटेल के साथ एक सुनियोजित डिजिटल ठगी का ऐसा मामला सामने आया है, जो न केवल बढ़ते साइबर फ्रॉड के खतरों की तस्दीक करता है, बल्कि बताता है कि किस तरह सरकारी संस्थाओं का नाम लेकर बुजुर्गों को भावनात्मक और कानूनी डर दिखाकर शिकार बनाया जा रहा है। शिकायत के अनुसार आरोपियों ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताकर 10 अक्टूबर से 29 अक्टूबर, 2025 की अवधि में 12 किस्तों में कुल ₹23,28,770 विभिन्न खातों में जमा करवा दिए।
घटना का सिलसिला — फ़ोन से डराकर खाते ट्रांसफ़र कराए गए
पीड़ित ने पुलिस को दी गई शिकायत में बताया कि 10 अक्टूबर को एक अज्ञात नंबर से कॉल आई, जिसमें कॉलर ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताकर कहा कि मुंबई में उनके नाम से कोई संदिग्ध बैंक खाता खोला गया है और जांच चल रही है। कॉलर ने यह एहतियातन बताने की चाल चली कि अगर वह सहयोग नहीं करेंगे तो उन्हें गिरफ्तार तक किया जा सकता है।
कॉल के दौरान पीड़ित को भरोसा दिलाने और दबाव बनाए रखने के लिए व्हाट्सएप कॉल व चैट के माध्यम से सरकारी कागजात और संदेश दिखाए गए — संदेशों में कथित तौर पर सरकार/सीबीआई के दस्तावेज भेजे गए और मनी-लॉन्ड्रिंग के आरोपों की बातें कर डराया-धमकाया गया।
डर और दबाव के चलते पीड़ित ने 10 अक्टूबर से 29 अक्टूबर के बीच UPI, Paytm और RTGS के माध्यम से अलग-अलग खातों में कुल 12 भागों में यह रकम भेज दी। 30 अक्टूबर को पीड़ित ने अपने पुत्र सुदर्शन सिंह पटेल को पूरी बात बताई और उसके बाद साइबर सेल के समक्ष शिकायत दर्ज करवाई गई।
पुलिस कार्रवाई और कानूनी प्रविष्टियाँ
पुसौर पुलिस ने पीड़ित की शिकायत के आधार पर अज्ञात नंबर धारक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली है। एफआईआर में जिन धाराओं का उल्लेख है उनमें आईटी एक्ट की प्रावधान एवं स्थानीय आपराधिक धाराएँ शामिल हैं — रिपोर्ट के अनुसार इस मामले को साइबर अपराध मानकर आगे की जांच में लिया गया है। पीड़ित ने बताया कि व्हाट्सएप के माध्यम से अब भी उनसे पांच लाख रुपये के जुर्माने का संदेश भेजकर दबाव बनाया जा रहा है, जो ठगों की मनोवैज्ञानिक रणनीति का अंग माना जा सकता है।
जाल के प्रमुख लक्षण — कैसे फ़ँसाया गया
मामले का संक्षेप बताता है कि ठगों ने निम्न रणनीतियाँ अपनाईं:
सरकारी संस्था (सीबीआई) का नाम लेकर वैधता का भ्रम पैदा करना।
कॉल और व्हाट्सएप पर “दस्तावेज़” भेजकर विश्वसनीयता दिखाना।
“जांच सहयोग” का बहाना देकर पैसे को अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करवाना ताकि लेन-देन का पता लगना मुश्किल हो।
“डिजिटल अरेस्ट” या “मनी-लॉन्ड्रिंग” जैसी कड़ी शब्दावली से मानसिक दबाव बनाना ताकि पीड़ित बिना परख के निर्देश मान लें।
ये तमाम संकेतात्मक तौर पर उन मोडस ऑपरेन्डी (modus operandi) से मेल खाते हैं जिनमें साइबर गिरोह बुजुर्ग नागरिकों को निशाना बनाते हैं — तकनीक का इस्तेमाल, भरोसा जीतना, और भय का सहारा लेकर धन निकाला जाना।
जांच में क्या-क्या हो सकता है — पुलिस के अगले कदम (आशय)
(निम्न बातें केस के दस्तावेज़ों और जांच के दायरे के संदर्भ में अपेक्षित क्रियाएँ हैं; नियमानुसार इन्हें पुलिस/साइबर सेल को अंजाम देना होगा)
जिन खातों और मोबाइल नंबरों में पैसे भेजे गए हैं, उनका बैंकिंग-फॉरेंसिक और KYC ट्रेस कराया जाएगा ताकि रकम के आगे के प्रवाह का पता चले।
व्हाट्सएप चैट, कॉल-लॉग और भेजे गए डॉक्युमेंट्स का डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण कर संदिग्धों के नेटवर्क और संभव लोकेशन का अनुमान लगाया जाएगा।
भुगतान राउट पर लगे इंटर-बैंक ट्रांज़ैक्शन का विवरण मांगकर (RTGS/NEFT/UPI पैथ) रिसीवर-खातों तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी।
स्थानीय/क्षेत्रीय बैंकों से सहयोग माँगा जाएगा ताकि फ्रॉड अकाउंट्स फ्रीज कराए जा सकें और रिकवरी की संभावनाएँ तलाशीं जा सकें।
पीड़ितों से पुलिस-सुझाव और सावधानियाँ (रिडर-एडवाइज़री)
1. कोई भी सरकारी अधिकारी कभी भी कॉल पर आपसे बैंक-पैसे ट्रांसफर करवाने या पैसे “जमा करने” को नहीं कहता — तुरंत संदेह करें।
2. अनजान नंबर पर कॉल आने पर नंबर सेव न करें; कॉल का स्क्रीनशॉट और चैट का बैक-अप रखें।
3. ऐसे कॉल/संदेश आने पर तुरंत अपने बैंक को सूचित करें और किसी भी ट्रांज़ैक्शन से पहले नजदीकी बैंक शाखा या बैंक कस्टमर केयर से पुष्टि कर लें।
4. परिवार के किसी भरोसेमंद सदस्य या स्थानीय पुलिस/साइबर सेल से संपर्क कर लें — निर्णय लेने में समय लेना सुरक्षा देता है।
5. यदि धन ट्रांसफर हो चुका है, तो तुरंत संबंधित बैंक शाखा को ब्लॉक/स्टॉप-पेमेंट और पुलिस में FIR दर्ज करने के साथ बैंक डॉक्यूमेंट्स (UTR, ट्रांज़ैक्शन आईडी) दें।
व्यापक संदर्भ — यही नहीं, यह बढ़ता पैटर्न है
देश के कई हिस्सों में बुजुर्ग नागरिकों को “डिजिटल अरेस्ट” या “सीबीआई/पीएमओ/जीएसटी” आदि के नाम पर डराकर पैसे वसूलने वाली घटनाएँ बढ़ रही हैं — स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में भी इस तरह के दर्जनों मामले नियमित रूप से सामने आते रहे हैं। रायगढ़ का यह मामला उन बिरले किनारों पर बैठकर किए गए अपराधों की याद दिलाता है जहाँ भावनात्मक भय और तकनीक का संयोजन भारी नुकसान करा देता है।
गरुण सिंह पटेल की शिकायत से स्पष्ट है कि ठगों ने अच्छी तरह निर्मित मनोवैज्ञानिक दबाव और डिजिटल दस्तावेज़ों से विश्वसनीयता बनाकर शिकार बनाया। अब जिम्मेदारी है पुलिस साइबर सेल की कि तेज़ी से बैंक-रूट और डिजिटल फ़ोट्रेंसिक के ज़रिये रकम की पटरियों तक पहुँच बनाकर दोषियों को कड़ी सज़ा और संपत्ति रिकवरी सुनिश्चित करे — ताकि भविष्य में ऐसे मामलों का ग्राफ नीचे जाए और बुज़ुर्ग नागरिक सुरक्षित महसूस कर सकें।
डेस्क रिपोर्ट