जल, जंगल, जमीन बचाओ आंदोलन: तमनार, रायगढ़ में अवैध जंगल कटाई के खिलाफ ग्रामीणों का अनिश्चितकालीन धरना

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक में स्थित मुड़ागांव और आसपास के गांवों में अवैध जंगल कटाई के खिलाफ स्थानीय आदिवासी और ग्रामीण समुदाय ने एक बार फिर अपनी आवाज बुलंद की है। यह क्षेत्र कोयला खनन परियोजनाओं के लिए जंगलों की कटाई का गढ़ बन चुका है, जिसके खिलाफ ग्रामीण वर्षों से संघर्षरत हैं। 28 जून 2025 को मुड़ागांव में जंगल की अवैध कटाई को रोकने के लिए सैकड़ों ग्रामीण एकजुट होकर जंगल क्षेत्र में पहुंचे, लेकिन पुलिस बल ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इसके बावजूद, ग्रामीणों ने हार नहीं मानी और भारी बारिश के बीच सड़क पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए। यह आंदोलन जल, जंगल, और जमीन के संरक्षण के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आंदोलन का पृष्ठभूमि
तमनार ब्लॉक के मुड़ागांव, सरईटोला, नागरामुड़ा, और आसपास के 14 गांवों में महाराष्ट्र जनरेशन कंपनी (महाजेनको) और जिंदल पावर लिमिटेड जैसी कंपनियों द्वारा कोयला खनन के लिए जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई की जा रही है। स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि यह कटाई बिना ग्राम सभा की सहमति और उचित प्रशासनिक प्रक्रिया के हो रही है, जो कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) और पेसा कानून का उल्लंघन है।
ग्रामीणों का कहना है कि ये जंगल उनके जीवन का आधार हैं। जंगल न केवल उनकी आजीविका (जैसे, वन उपज, लकड़ी, और औषधीय पौधे) का स्रोत हैं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का भी हिस्सा हैं। जंगलों की कटाई से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है, जिससे वन्यजीवों का आवास खतरे में है और जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा है। इसके अलावा, कोयला खनन से उनकी जमीनें छिन रही हैं, जिससे वे बेघर होने और अपनी आजीविका खोने के कगार पर हैं।

28 जून 2025 की घटना
28 जून 2025 को मुड़ागांव में ग्रामीणों ने महाजेनको द्वारा की जा रही अवैध जंगल कटाई को रोकने के लिए जंगल क्षेत्र की ओर कूच किया। इस दौरान भारी पुलिस बल तैनात किया गया था, जिसने ग्रामीणों को रोकने की कोशिश की। पुलिस के इस रवैये से नाराज ग्रामीणों ने सड़क पर ही अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। भारी बारिश के बावजूद, महिलाएं, बच्चे, और बुजुर्ग सभी इस धरने में डटकर शामिल हुए। ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि वे अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे और पुलिस की गिरफ्तारी से डरने वाले नहीं हैं।
इस आंदोलन में स्थानीय विधायक विद्यावती सिदार सहित कई लोग शामिल थे, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया। इसके बावजूद, ग्रामीणों का हौसला कम नहीं हुआ। उन्होंने नारे लगाए, जैसे “जल, जंगल, जमीन हमारा, नहीं चलेगा राज तुम्हारा” और “जंगल बचाओ, आदिवासी बचाओ।” यह धरना छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) और आदिवासी कांग्रेस कमेटी जैसे संगठनों के समर्थन से और मजबूत हुआ।
ग्रामीणों की मांगें
ग्रामीणों ने अपनी मांगों को लेकर स्पष्ट रुख अपनाया है:
1. अवैध जंगल कटाई पर तत्काल रोक: अडानी (महाजेनको) द्वारा की जा रही कटाई को अवैध बताते हुए ग्रामीणों ने इसे तुरंत बंद करने की मांग की है।
2. ग्राम सभा की सहमति का पालन: वन अधिकार अधिनियम और पेसा कानून के तहत बिना ग्राम सभा की सहमति के कोई भी खनन गतिविधि नहीं होनी चाहिए।
3. प्रशासन और कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई:ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन और कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि कंपनियां प्रशासनिक मिलीभगत से अवैध कटाई कर रही हैं।
4. पर्यावरण और आजीविका की सुरक्षा:जंगलों के संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीणों की आजीविका और सांस्कृतिक पहचान को बचाने की मांग।

आंदोलन का समर्थन
इस आंदोलन को कई संगठनों और नेताओं का समर्थन प्राप्त है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि पूरे प्रदेश में ग्राम सभाओं की सहमति के बिना या फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खनन कंपनियों को वन स्वीकृतियां दी जा रही हैं। आदिवासी कांग्रेस कमेटी ने भी इस आंदोलन को समर्थन देते हुए केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।
सोशल मीडिया पर भी इस आंदोलन को व्यापक समर्थन मिल रहा है। कई लोगों ने इसे लोकतंत्र पर सवाल उठाने वाला कदम बताया है। एक पोस्ट में कहा गया, “आज जंगल रो रहे हैं, आदिवासी गिरफ्तार हो रहे हैं, और लोकतंत्र शर्मिंदा है।”
सरकार और प्रशासन की भूमिका
ग्रामीणों और आंदोलनकारियों ने राज्य सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सरकार उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए जंगलों और आदिवासियों की जमीन को नष्ट कर रही है। इसके अलावा, यह भी आरोप है कि सरकार ने “एक पेड़ मां के नाम” जैसे पर्यावरण संरक्षण के दावों के बावजूद जंगल कटाई को बढ़ावा दिया है।
भविष्य की दिशा
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं और जंगल कटाई बंद नहीं की गई, तो आंदोलन और उग्र रूप लेगा। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और अन्य संगठनों ने भी इस संघर्ष को और व्यापक करने की योजना बनाई है। ग्रामीणों का कहना है कि वे अपने जल, जंगल, और जमीन को बचाने के लिए अंत तक लड़ेंगे।
तमनार के मुड़ागांव में चल रहा जल, जंगल, जमीन बचाओ आंदोलन न केवल स्थानीय आदिवासियों की आजीविका और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का प्रतीक है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी अधिकारों के लिए एक बड़े संघर्ष का हिस्सा भी है। भारी बारिश और पुलिस के दबाव के बावजूद ग्रामीणों का डटकर मुकाबला करना उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति को दर्शाता है। यह आंदोलन न केवल रायगढ़, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ और देश में जल, जंगल, जमीन के संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

यह आंदोलन अभी भी जारी है, और ग्रामीणों ने इसे तब तक चलाने का संकल्प लिया है जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।