जल–जंगल–जमीन की जंग: तमनार–छाल–घरघोड़ा में बढ़ते औद्योगिक दबाव के बीच धरमजयगढ़ में किसान आंदोलन की आहट

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम धरमजयगढ़, रायगढ़।
छत्तीसगढ़ के उत्तरी अंचल—तमनार, छाल, घरघोड़ा, धर्मजयगढ़ और खरसिया क्षेत्र—इन दिनों उद्योग, खदान और ऊर्जा परियोजनाओं के निरंतर विस्तार के कारण उफान पर हैं। एक तरफ विकास का दावा, तो दूसरी ओर जल–जंगल–जमीन पर निर्भर आदिवासी व ग्रामीणों का असंतोष… इसी खींचतान के बीच मंगलवार को धरमजयगढ़ में ग्रामीणों ने पेसा कानून के उल्लंघन पर प्रशासन को कड़ी चेतावनी देते हुए जोरदार प्रदर्शन किया।
धरमजयगढ़ में पेसा की पुकार: ग्रामीणों का खनन पर महाजुटान, प्रशासन को दी अंतिम चेतावनी
दुर्गापुर, शाहपुर, धरमजयगढ़, तराईमार, बायसी और कॉलोनी क्षेत्रों के सैकड़ों ग्रामीण एसडीएम कार्यालय पहुंचे, जहां उन्होंने बिना ग्रामसभा की अनुमति चल रहे सर्वेक्षण को असंवैधानिक बताते हुए तत्काल रोक की मांग की।
ग्रामसभा की अनुमति के बिना कोई सर्वे नहीं — ग्रामीणों की दो टूक
ग्रामीणों ने स्पष्ट कहा कि पेसा अधिनियम की धारा 4(के) ग्रामसभा को भूमि, जल, वन और प्राकृतिक संपदाओं पर पूर्ण अधिकार देती है।
इसके बावजूद, खनन कंपनियों और सर्वे एजेंसियों द्वारा बिना अनुमति खेतों व जंगलों में घुसकर सर्वेक्षण किया जा रहा है, जो न सिर्फ अवैध है बल्कि संविधान के मूल भाव के खिलाफ भी है।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि—
“6 नवंबर 2025 को सर्वे रोकने आवेदन दिया गया था, लेकिन प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। अगर सर्वे तुरंत नहीं रोका गया तो किसान महाआंदोलन शुरू होगा। पूरी जिम्मेदारी शासन–प्रशासन की होगी।”
1610 हेक्टेयर कोल ब्लॉक पर टकराव तेज: पेसा अधिकारों की लड़ाई में ग्रामीणों की हुंकार
कर्नाटक पावर का 1610 हेक्टेयर ब्लॉक—सबसे ज्यादा विरोध
कर्नाटक पावर लिमिटेड के नाम प्रस्तावित 1610 हेक्टेयर कोल ब्लॉक इस पूरे विवाद का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है।
यह वही क्षेत्र है जिसे पहले डीबी पावर और बाल्को (BALCO) को आवंटित किया गया था, पर ग्रामीण विरोध और कानूनी विवादों के कारण दोनों कंपनियों को पीछे हटना पड़ा।

धरमजयगढ़ में कर्नाटक पावर परियोजना के खिलाफ सैकड़ों ग्रामीणों का मार्च
2014 में कोल स्कैम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन आवंटनों को रद्द कर दिया था।
इसके बाद नीलामी प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन हर बार ग्रामीणों ने एक स्वर में विरोध दर्ज कराया।
दस्तावेजों की आपत्ति सूचियाँ भोपाल, दिल्ली और उच्च न्यायालयों तक पहुँचाई गईं।
ग्रामीणों का कहना है कि कई कंपनियाँ पहले भी आईं और अपने प्रस्ताव वापस ले गईं, क्योंकि स्थानीय जनता जमीन देने के लिए तैयार नहीं है। कालांतर में जो कंपनियाँ आईं, वे भारी संघर्ष और असफल जनसुनवाइयों के कारण लौट गईं।
तमनार–छाल–घरघोड़ा बेल्ट पहले से दबाव में
पूरे क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में—
ताप विद्युत संयंत्र
कोल माइंस
औद्योगिक कॉरिडोर
और भारी ट्रांसपोर्ट व लॉजिस्टिक दबाव
लगातार बढ़ता जा रहा है।
लोगों का कहना है कि खेती, नदी-नालों, चरागाह, वन कला-सम्पदा, और पारंपरिक जीवन पर इसका सीधा नकारात्मक असर पड़ रहा है।
पेसा कानून की अनदेखी नहीं चलेगी: दुर्गापुर–शाहपुर क्षेत्र में सर्वे रोकने की मांग तेज
धरमजयगढ़, घरघोड़ा और तमनार को लोग अब “औद्योगिक दबाव का त्रिकोण” कहने लगे हैं।
प्रशासन ने ग्रामीणों की आपत्ति दर्ज की, एसडीएम ने दिए निर्देश
प्रदर्शन के दौरान एसडीएम और सहायक भू-अर्जन अधिकारी ने ग्रामीणों की शिकायतें सुनीं और संबंधित एजेंसियों को निर्देश देने की बात कही।
हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि अब वे सिर्फ लिखित आदेश चाहते हैं, मौखिक आश्वासनों पर उनका भरोसा नहीं रहा।
आंदोलन की आहट — “हमारे गांव में हमारा राज”
धरमजयगढ़ में पिछले महीनों से चल रहे जनसंगठन, जनजागरण और पेसा जागरूकता अभियानों ने अब ठोस रूप लेना शुरू कर दिया है।
ग्रामीणों में नाराजगी का स्तर इतना बढ़ गया है कि अब वे सड़क पर उतरने को तैयार हैं।
एक ग्रामीण नेता ने कहा—
“हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन गांव खत्म करके विकास नहीं चाहिए। यह जल–जंगल–जमीन की लड़ाई है, जिसमें समझौता नहीं होगा।”
धरमजयगढ़ और आसपास के क्षेत्रों में खनन और औद्योगिक परियोजनाओं का विस्तार सिर्फ एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि अस्तित्व और आत्मसम्मान का सवाल बन चुका है।
पेसा कानून की अनदेखी और ग्रामसभा की अवमानना से तनाव बढ़ रहा है, और यदि समय रहते प्रशासन ने स्पष्ट कार्रवाई नहीं की, तो यह आंदोलन पूरे क्षेत्र में भड़क सकता है।
समाचार सहयोगी हरीश चौहान की रिपोर्ट