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जर्जर सड़क और उद्योगों की लापरवाही: ग्राम पंचायत लाखा में आक्रोश, दी आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी

छत्तीसगढ़ के ग्राम पंचायत लाखा के अंतर्गत चिराईपानी से गेरवानी तक की कच्ची सड़क की जर्जर स्थिति ने ग्रामीणों का जीना मुहाल कर दिया है। इस सड़क पर स्थानीय उद्योगों द्वारा भारी वाहनों का बेतरतीब आवागमन न केवल सड़क को और खराब कर रहा है, बल्कि ग्रामीणों और स्कूली बच्चों के लिए गंभीर समस्याएँ पैदा कर रहा है। इस मुद्दे को लेकर पंचायत भवन में आयोजित एक आवश्यक बैठक में ग्राम पंचायत ने उद्योगों के प्रतिनिधियों को सड़क मरम्मत के लिए तीन दिन का अल्टीमेटम दिया है, अन्यथा आर्थिक नाकेबंदी की चेतावनी दी गई है।



जर्जर सड़क: ग्रामीणों की परेशानी का सबब
चिराईपानी से गेरवानी तक की यह तीन किलोमीटर की कच्ची सड़क, जो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी है, अब पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। सड़क पर जगह-जगह बड़े-बड़े गड्ढे, उबड़-खाबड़ रास्ते और कीचड़युक्त दलदल ने ग्रामीणों का आवागमन दूभर कर दिया है। स्कूली बच्चे, विशेष रूप से चिराईपानी के, स्कूल जाने में भारी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। कई बच्चे समय पर स्कूल नहीं पहुँच पाते, जिससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। यह विडंबना ही है कि एक ओर सरकार शाला प्रवेश उत्सव मना रही है, वहीं दूसरी ओर शिक्षा के लिए उत्सुक बच्चे जर्जर सड़क के कारण परेशान हैं।

सड़क की बदहाली का प्रमुख कारण है स्थानीय उद्योगों द्वारा भारी वाहनों का बेलगाम आवागमन। सुनील इस्पात एंड पॉवर लिमिटेड, वजरान प्रा. लिमिटेड, महालक्ष्मी कास्टिंग, श्री ओम रुपेश, श्री रीयल वायर, श्यामज्योति प्रा. लिमिटेड, राधे गोविंद केमिकल्स, आदि शक्ति सोप इंडस्ट्रीज और सालासर स्टील एंड पॉवर लिमिटेड जैसे उद्योगों के ट्रक और ट्रेलर इस सड़क पर दिन-रात दौड़ते हैं। इन भारी वाहनों की लंबी कतारें और बार-बार लगने वाला जाम ग्रामीणों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। ग्रामीणों को अपने घर पहुँचने में घंटों लग जाते हैं, जिससे उनका रोजमर्रा का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

उद्योगों की लापरवाही और ग्राम पंचायत की अनदेखी
बताया जा रहा है कि यह सड़क प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनी है, जिसके लिए उद्योगों को भारी वाहनों के आवागमन के लिए ग्राम पंचायत से एन.ओ.सी. (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) लेना अनिवार्य है। लेकिन इन उद्योगों ने बिना किसी अनुमति के इस सड़क का उपयोग शुरू कर दिया, जिससे इसकी स्थिति और खराब हो गई। ग्रामीणों का आरोप है कि ये उद्योग केवल अपने मुनाफे पर ध्यान देते हैं और सड़क की जर्जर स्थिति से उन्हें कोई सरोकार नहीं है।

पिछले साल चिराईपानी में आयोजित जन-चौपाल में ग्रामीणों ने पक्की सड़क की माँग उठाई थी। उस समय उद्योग प्रतिनिधियों ने सड़क निर्माण और अपने भारी वाहनों के लिए पार्किंग व्यवस्था सुनिश्चित करने का वादा किया था। लेकिन यह वादा केवल कागजी साबित हुआ और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। ग्रामीणों का कहना है कि उद्योगों की इस लापरवाही ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।

पंचायत का कड़ा रुख: तीन दिन में सुधार या नाकेबंदी
पंचायत भवन में आयोजित बैठक में ग्राम पंचायत ने उद्योगों के प्रतिनिधियों को दो टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि तीन दिन के भीतर सड़क की मरम्मत शुरू की जाए, अन्यथा सड़क को अवरुद्ध कर आर्थिक नाकेबंदी की जाएगी। इस चेतावनी पर उद्योग प्रतिनिधियों ने सहमति जताई है, लेकिन ग्रामीणों का विश्वास अब इन वादों पर से उठ चुका है।

मुनाफे की होड़ में ग्रामीणों की अनदेखी
सुनील इस्पात, सालासर स्टील, वजरान प्रा. लिमिटेड जैसे उद्योग इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लाभ कमा रहे हैं, लेकिन स्थानीय समुदाय के लिए उनकी जिम्मेदारी न के बराबर है। इन उद्योगों की भारी मशीनरी और ट्रकों ने न केवल सड़क को नष्ट किया, बल्कि ग्रामीणों के जीवन को भी संकट में डाल दिया है। स्कूल जाने वाले बच्चों, बुजुर्गों और मरीजों को इस सड़क पर चलना जोखिम भरा हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि ये उद्योग केवल अपने मुनाफे की चिंता करते हैं और सामाजिक उत्तरदायित्व को पूरी तरह नजरअंदाज करते हैं।


अब सवाल यह है कि क्या उद्योग प्रबंधन ग्राम पंचायत के अल्टीमेटम पर अमल करेगा और सड़क मरम्मत का काम शुरू करेगा? या फिर यह मामला केवल वादों तक सीमित रह जाएगा? यदि उद्योग अपनी जिम्मेदारी से मुकरते हैं, तो ग्राम पंचायत द्वारा आर्थिक नाकेबंदी जैसे कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। यह स्थिति न केवल उद्योगों और ग्रामीणों के बीच तनाव को बढ़ाएगी, बल्कि क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकती है।

चिराईपानी से गेरवानी तक की जर्जर सड़क की स्थिति और उद्योगों की लापरवाही ग्रामीणों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है। यह समय है कि उद्योग अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझें और सड़क निर्माण में सक्रिय योगदान दें। साथ ही, सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि वे उद्योगों पर कड़ी निगरानी रखें और ग्राम पंचायत की सहमति के बिना किसी भी गतिविधि की अनुमति न दें। ग्रामीणों की सुविधा और बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता देना न केवल सामाजिक न्याय की दृष्टि से जरूरी है, बल्कि यह टिकाऊ विकास का भी आधार है। आने वाला समय ही बताएगा कि इस समस्या का समाधान कैसे निकलता है।

Amar Chouhan

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