जर्जर सड़कों के खिलाफ त्रस्त ग्रामीण की अंतिम पुकार: वरिष्ठ ओबीसी नेता चैतूराम साहू मौन आमरण अनशन पर

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के कोयलांचल क्षेत्र में सड़कों की हालत पर ग्रामीणों का धैर्य आखिरकार जवाब दे गया। वर्षों से प्रशासनिक आश्वासन और ज्ञापन देने के बाद भी बुनियादी सड़क मरम्मत का काम अटका पड़ा है। ऐसे में ओबीसी महासभा के संभाग उपाध्यक्ष एवं जनपद पंचायत सदस्य चैतूराम साहू ने सोमवार दोपहर ‘मरते दम तक’ मौन आमरण अनशन शुरू कर प्रशासनिक संवेदनहीनता के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंका। ग्रामीणों की विकट स्थिति और टूटी उम्मीदें कोयला परिवहन और भारी वाहनों के यात्र ने छाल क्षेत्र से लेकर ऐडु पुल, छाल-घरघोड़ा चौक, थानापारा, धूल चौक, नवापारा तक की सड़कों को खंडहर में तब्दील कर दिया है। रोजाना इन रास्तों से स्कूल जाते बच्चों को गंभीर असुविधा झेलनी पड़ती है। गड्ढों और कीचड़ से ग्रामीणों की आवाजाही नरकयात्रा बन चुकी है, ऊपर से बरसात में गड्ढों में जलभराव जानलेवा हादसों का सबब बन जाता है। ट्रकों की भरमार से जाम, धूल व प्रदूषण, बीमार ग्रामीण—यह रोजमर्रा की नियति बन गई है।आश्वासन से न्याय नहीं—कार्रवाई चाहिए चैतूराम साहू ने बताया कि 12 जुलाई को स्वयं तहसीलदार ने लिखित वादा किया था: “वर्षा समाप्ति के साथ ही सड़क निर्माण व गड्ढों की मरम्मत आरंभ होगी।” किंतु हालात जस के तस हैं—ना सड़कों की मरम्मत, ना निर्माण की शुरुआत। बार-बार ज्ञापन, आंदोलन, धरना—सब बेअसर। प्रशासनिक तंत्र का निष्क्रिय रवैया ग्रामीणों की निरंतर पीड़ा का कारण बन गया है।अनुकरणीय प्रतिरोध—सामाजिक समर्थन साहू ने घोषणा की है कि सड़क दुरुस्त होने तक उनका मौन आमरण अनशन जारी रहेगा। उनके इस दृढ़ संकल्प को ओबीसी महासभा के जिला प्रवक्ता श्रीमंत राव मेश्राम, जनपद सदस्य संतराम खुंटे, जिला अध्यक्ष नंदलाल चंद्रा, श्याम राठिया (सरपंच), भगतराम राठिया (सरपंच, बोजिया) सहित अनेक जनप्रतिनिधियों और सैकड़ों ग्रामीणों का समर्थन मिल रहा है। आंदोलन का जमीनी जनसमर्थन दिन-प्रतिदिन और भी व्यापक हो रहा है। प्रशासनिक जवाबदेही की घड़ी यह अनशन केवल सड़क की मांग नहीं, बल्कि प्रशासन की संवेदनशीलता और ईमानदारी की परीक्षा भी है। ग्रामीणों की बुनियादी आवश्यकता की अवहेलना पर यदि अब भी तंत्र नहीं जागा तो आक्रोश का ज्वार जन-आंदोलन का रूप भी ले सकता है। वरिष्ठ समाजसेवीयों और पत्रकारों का मानना है, यह लड़ाई केवल सड़क की नहीं, बल्कि ग्रामीण गरिमा और बुनियादी अधिकारों के बहाली की जंग है।