जंगल बचेगा तो जीवन बचेगा: डंगबीरा में सामुदायिक वन प्रबंधन पर मंथन, चार पंचायतों के 200 ग्रामीण हुए सहभागी

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम घरघोड़ा (रायगढ़)।
जंगल सिर्फ पेड़-पौधों का समूह नहीं, बल्कि आदिवासी जीवन की रीढ़ है—इसी मूल भावना के साथ 18 दिसंबर 2025 को घरघोड़ा विकासखंड के डंगबीरा गांव में सामुदायिक वन प्रबंधन को लेकर एक महत्वपूर्ण चर्चा व जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में चार पंचायतों से आए करीब 200 ग्रामीणों ने सक्रिय सहभागिता दर्ज कराई।
इस अवसर पर सविता रथ ने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए विस्तार से बताया कि जंगल को कैसे सुरक्षित, संरक्षित और पुनर्जीवित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जंगल की रक्षा किसी एक व्यक्ति या संस्था की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे गांव की सामूहिक जिम्मेदारी है। इसके लिए सबसे पहले गांव स्तर पर वन प्रबंधन समिति का गठन आवश्यक है, ताकि जंगल से जुड़े हर निर्णय सामूहिक सहमति से लिए जा सकें।
सविता रथ ने बताया कि वन प्रबंधन को प्रभावी बनाने के लिए समिति का खाता खोलना, सील बनवाना और नियमों को लिखित रूप में लागू करना जरूरी है। गांव में ठेंगा पाली जैसी पारंपरिक व्यवस्था को सख्ती से लागू कर जंगल की निगरानी की जा सकती है। इसके साथ ही यह भी तय किया जाना चाहिए कि किस क्षेत्र में कौन-से पौधे लगाए जाएंगे, कहां मवेशियों—गाय, बैल, बकरी—को चराने की अनुमति होगी और किन क्षेत्रों को पूरी तरह सुरक्षित रखा जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि जंगल से मिलने वाले संसाधनों—जैसे तेंदूपत्ता, जलाऊ लकड़ी, कांदा, कुशा, जड़ी-बूटी, भाजी, पाला और अन्य वनोपज—के संग्रह के लिए भी स्पष्ट नियम होने चाहिए, ताकि जैव विविधता को नुकसान न पहुंचे। जंगल में कहीं भी आग लगने की स्थिति में तत्काल उसे बुझाने की सामूहिक जिम्मेदारी तय करने पर भी उन्होंने जोर दिया।
कार्यक्रम के दौरान यह बात बार-बार सामने आई कि जंगल हमारे जीवन को आसान बनाता है—खाना, पानी, दवा से लेकर आजीविका तक का मुख्य आधार जंगल ही है। यदि जंगल सुरक्षित रहेगा, तभी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित रह पाएगा।
इस कार्यक्रम में आदिवासी समता मंच से राजेश रंजन, पुष्पा सिंह और सविता रथ, जन चेतना मंच से जुड़े प्रतिनिधियों के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता नित्या राठिया, भोजमति राठिया, प्रहलाद राठिया, नरेंद्र राठिया और नील कुमारी राठिया विशेष रूप से उपस्थित रहे।
ग्रामीणों ने कार्यक्रम के अंत में सामूहिक रूप से यह संकल्प लिया कि वे अपने जंगल की रक्षा के लिए संगठित होकर काम करेंगे और पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक समझ को जोड़ते हुए वन संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे।
समाचार सहयोगी अक्षय नायक