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छत्तीसगढ़ में फिर बदलेगी शराब नीति: सरकार ठेका पद्धति पर लौटने की तैयारी में, कलेक्टरों और फील्ड अफसरों से मांगे गए सुझाव

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 10 नवंबर।

छत्तीसगढ़ सरकार एक बार फिर राज्य की शराब नीति में बड़े बदलाव की तैयारी में है। 2017 से लागू सरकारी संचालन प्रणाली अब खत्म की जा सकती है। सूत्रों के अनुसार, आबकारी विभाग ने ठेका पद्धति लागू करने का प्रारंभिक मसौदा तैयार कर लिया है, जिसके तहत आगामी वित्तीय वर्ष से शराब दुकानों का संचालन फिर से निजी ठेकेदारों के हाथों में सौंपा जा सकता है।


शराब घोटाले के बाद सरकार सख्त

हाल ही में उजागर हुए लगभग 32,000 करोड़ रुपए के शराब घोटाले ने न केवल विभाग की साख पर सवाल खड़े किए, बल्कि सरकार की विश्वसनीयता को भी गहरा झटका पहुंचाया है। इस घोटाले में मंत्री, बड़े कारोबारी, वरिष्ठ अधिकारी और विभागीय कर्मचारी तक कानूनी कार्रवाई के घेरे में आ चुके हैं।
राज्य सरकार अब इस पूरे मॉडल की समीक्षा कर रही है और माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के इस चक्र को तोड़ने के लिए निजी ठेकेदारी प्रणाली को फिर से बहाल करने का निर्णय लिया जा सकता है।


कलेक्टरों और फील्ड स्टाफ से ली जा रही राय

सूत्रों के अनुसार, आबकारी विभाग ने सभी जिलों के कलेक्टरों से विस्तृत अभिमत मांगा है। साथ ही, विभाग के मैदानी अमले — यानी आबकारी उपनिरीक्षकों, निरीक्षकों और स्टोर प्रबंधकों से भी राय ली जा रही है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि नई नीति में पारदर्शिता और नियंत्रण पर विशेष बल दिया जाएगा ताकि राजस्व बढ़ाने के साथ भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके।


वर्तमान व्यवस्था में कई खामियां उजागर

वर्तमान में राज्य की सभी सरकारी शराब दुकानें छत्तीसगढ़ स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CSMCL) के माध्यम से संचालित की जा रही हैं।
हालांकि विभाग के पास संचालन की जिम्मेदारी है, लेकिन दुकानें चलाने वाला अधिकांश स्टाफ प्लेसमेंट एजेंसियों से अनुबंधित कर्मियों का है। इससे न केवल पारदर्शिता पर असर पड़ा, बल्कि राजस्व लक्ष्य भी लगातार प्रभावित हुआ।

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार —

> “विभाग की भूमिका सिर्फ नियंत्रण और निगरानी तक सीमित रहनी चाहिए। दुकान संचालन निजी हाथों में रहेगा तो जवाबदेही और प्रतिस्पर्धा दोनों बढ़ेंगी।”




राजस्व लक्ष्य अधूरा, सरकार चिंतित

वित्त विभाग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि चालू वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार अपने आबकारी राजस्व लक्ष्य से 15% पीछे चल रही है।
शराब दुकानों से अपेक्षित आय में कमी आने से सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ा है। ऐसे में नई नीति को राजस्व बढ़ाने के साथ पारदर्शिता सुनिश्चित करने का उपाय माना जा रहा है।


ठेका पद्धति क्यों मानी जा रही है बेहतर

1. भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी — क्योंकि संचालन निजी ठेकेदारों के माध्यम से होगा, विभाग केवल निगरानी करेगा।


2. सरकारी खर्च घटेगा — वर्तमान में हजारों अनुबंध कर्मियों का भुगतान सरकारी खजाने से होता है।


3. राजस्व संग्रह बढ़ेगा — ठेकेदारों को प्रतिस्पर्धात्मक बोली से चुना जाएगा, जिससे राजस्व में वृद्धि होगी।


4. जवाबदेही तय होगी — घोटालों की स्थिति में जिम्मेदारी निजी इकाई की होगी, न कि सरकारी अफसरों की।




2017 में बदली थी व्यवस्था

वर्ष 2017 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने निर्णय लिया था कि राज्य में शराब की बिक्री अब सरकार स्वयं करेगी।
उस समय यह फैसला अवैध शराब और टैक्स चोरी पर नियंत्रण के उद्देश्य से लिया गया था।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हुई अनियमितताओं, परिवहन घोटालों और फर्जी बिलिंग ने इस मॉडल की कमियों को उजागर कर दिया।


कैबिनेट में जाएगी नई नीति

विभागीय सूत्रों के मुताबिक, नई आबकारी नीति का मसौदा तैयार कर मंत्रिमंडल की अगली बैठक में पेश किया जाएगा।
मंजूरी मिलने के बाद अगले वित्तीय वर्ष से राज्य में शराब दुकानों का संचालन निजी ठेकेदारों के हाथों में देने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।


विशेषज्ञों की राय

राज्य के आर्थिक विश्लेषक डॉ. शैलेंद्र शर्मा का कहना है —

> “सरकार को अब नियंत्रण और नीति-निर्धारण की भूमिका में रहना चाहिए। संचालन और बिक्री का काम निजी क्षेत्र को सौंपने से भ्रष्टाचार की जड़ें कमजोर होंगी और राजस्व स्थिर रहेगा।”




जनता की मिश्रित प्रतिक्रिया

जहाँ एक ओर व्यवसायी वर्ग और उद्योग संगठन इस कदम का स्वागत कर रहे हैं, वहीं सामाजिक संगठनों ने आशंका जताई है कि ठेका प्रणाली से शराब की बिक्री और खपत में वृद्धि हो सकती है।
समाजसेवी संगठनों का कहना है कि सरकार को शराबबंदी और नियंत्रण की दिशा में भी समानांतर नीति तैयार करनी चाहिए

समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान की रिपोर्ट

Amar Chouhan

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