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चक्रधर समारोह कार्यक्रम: सांस्कृतिक गरिमा पर राजपरिवार की छाया!!

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़ का चक्रधर समारोह, जो कभी कला और संस्कृति का प्रतीक हुआ करता था, आज मंच, माला, माइक और मनी का साधन बनकर रह गया है। हर साल राजपरिवार की बेजा दखलअंदाजी और माफियाई व्यवस्थाओं के चलते इस समारोह की गरिमा तार-तार हो रही है। रियासतकालीन दौर में रायगढ़ के शासक चक्रधर सिंह की जन्मतिथि गणेश चतुर्थी के अवसर पर शुरू हुआ यह उत्सव, आज सांस्कृतिक आयोजन कम, सत्ता और स्वार्थ का अखाड़ा ज्यादा बन गया है।

रियासतकाल में गणेश चतुर्थी के उत्सव के रूप में शुरू हुआ चक्रधर समारोह 1984 में चक्रधर ललित कला केंद्र की स्थापना के साथ औपचारिक रूप ले चुका था। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौर में उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत अकादमी दो दिन का सरकारी आयोजन करती थी, जिसमें कलाकारों का चयन और मंच संचालन अकादमी के मार्गदर्शन में होता था। इसके बाद बाकी आठ दिन का गणेश मेला चक्रधर ललित कला केंद्र के संस्थापक जगदीश मेहर (प्रख्यात वायलिन वादक और गायक) और संस्कृतिकर्मी गणेश कछवाहा के नेतृत्व में जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित होता था। इस दौरान चंदा उगाही की परंपरा शुरू हुई, और मंच-माइक पर गणेश कछवाहा का कब्जा रहता था। लेकिन धीरे-धीरे शहर का एक नया तबका उभरा, जो इस आयोजन पर अपना वर्चस्व चाहता था।

2001 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद चक्रधर समारोह पूरी तरह सरकारी आयोजन बन गया, जिसे संस्कृति विभाग और जिला प्रशासन संयुक्त रूप से संचालित करने लगे। इस दौर में नए चेहरों जैसे देवेश शर्मा (भजन गायक), तन्मय दासगुप्ता (गिटार वादक) और अंबिका वर्मा (सेवानिवृत्त प्रोफेसर) की एंट्री हुई। समारोह टाउन हॉल से निकलकर रामलीला मैदान पहुंच गया, और संस्थापक सदस्यों जगदीश मेहर और गणेश कछवाहा को हाशिए पर धकेल दिया गया। मंच संचालन में अंबिका वर्मा और कलाकार चयन में देवेश शर्मा ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। हालांकि, राजपरिवार के प्रतिनिधि कुंवर भानु प्रताप सिंह, देवेंद्र प्रताप सिंह, उर्वशी देवी और उनके सेवक नटवर सिंघानिया की पैठ हर साल बरकरार रही।

2003 के बाद समारोह का पूर्ण सरकारीकरण हुआ, और औद्योगिक संस्थानों से मोटा फंड जुटाने की परंपरा शुरू हुई। टेंट, लाइट, माइक और खान-पान व्यवस्था में माफियाई अंदाज हावी हो गया। कुश्ती और कबड्डी जैसे खेलों को शामिल करने के साथ कुछ लोग हर साल जुगाड़ के जरिए अपना हिस्सा पक्का करने लगे। संगीत, नृत्य, लोकगीत, काव्यपाठ, मुशायरा, कव्वाली और रंगमंच जैसी विधाएं पहले समारोह का हिस्सा थीं, लेकिन हाल के वर्षों में रंगमंच को शामिल करने में आयोजन समिति की उदासीनता साफ दिखाई देती है।

कलाकारों के चयन में राजपरिवार के देवेंद्र प्रताप सिंह की दखल बरकरार है। रायगढ़ घराने के कथक कलाकार सुनील वैष्णव, बासंती वैष्णव और अन्य हर साल अलग-अलग नामों से अपने कार्यक्रम जुड़वाने में सफल रहते हैं। इस साल बासंती वैष्णव आयोजन समिति के रवैये से इतनी नाराज थीं कि उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की बात कही, हालांकि बाद में मामला सुलझ गया।

इस बार चक्रधर समारोह की तैयारी में पहली आम बैठक तक नहीं हुई, जिसमें स्थानीय कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों से सुझाव लिए जाते थे। देवेंद्र प्रताप सिंह ने राज्यसभा सांसद की हैसियत से सारा नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया। उनकी बहन उर्वशी देवी और नटवर सिंघानिया भी आयोजन की सभी समितियों में शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस बार कलाकारों के चयन में राजेश डेनियल गुरूजी की पसंद हावी रही।

पहले दिन कवि कुमार विश्वास के काव्यपाठ को लेकर जनता में असंतोष देखा गया। वहीं, रायगढ़ के लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी गायक नितिन दुबे का कार्यक्रम तय होने के बाद उनकी फीस आधी करने के कारण रद्द हो गया। नितिन ने साफ कहा, “या तो पूरी राशि, या फिर आधी में कार्यक्रम नहीं।” आयोजन समिति का यह रवैया किसी भी कलाकार के साथ उचित नहीं कहा जा सकता। बजट कटौती की जरूरत हो तो टेंट और खान-पान व्यवस्था, जो वर्षों से एक ही कारोबारी को दी जाती रही है, उसमें बदलाव करना चाहिए।

रायगढ़ में 15 करोड़ की लागत से बना सांस्कृतिक भवन रखरखाव के अभाव में खंडहर बनता जा रहा है। चक्रधर समारोह जैसे आयोजन के लिए यह भवन आदर्श स्थल हो सकता है, जो राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों की प्रस्तुतियों के लिए सुसज्जित हो सकता है। लेकिन हर साल रामलीला मैदान में टेंट माफिया की लॉबी सक्रिय हो जाती है, क्योंकि वहां टेंट, साउंड और खान-पान का बजट करोड़ों में पहुंचता है। रामलीला मैदान के सुधार के लिए डीएमएफ से 35 लाख रुपये खर्च किए गए, और स्थानीय विधायक व मंत्री ओपी चौधरी ने खेल सुविधाओं के लिए भी राशि स्वीकृत की। फिर भी, समारोह के बाद मैदान महीनों तक खेल के लिए अनुपयोगी रहता है।

2019 में तत्कालीन विधायक प्रकाश नायक के कार्यकाल में खिलाड़ियों ने विकास पांडेय के नेतृत्व में रामलीला मैदान में आयोजन का विरोध किया था, लेकिन टेंट माफिया के दबाव में यह विरोध दब गया। उसी साल पत्रकारों ने आयोजकों के रवैये के खिलाफ प्रदर्शन किया और तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गाड़ी रोककर विरोध जताया।

चक्रधर समारोह के 40 साल के सफर में विवादों का साया रहा है। कला और संस्कृति के सरकारी संस्थानों जैसे कथक केंद्र, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय या संस्कृति विभाग से समय पर पत्राचार कर राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों को प्रायोजित किया जा सकता है, जिससे बजट संतुलित रहेगा। लेकिन पूंजी और सत्ता का खेल इसकी इजाजत नहीं देता।

स्थानीय विधायक और मंत्री ओपी चौधरी से अपेक्षा है कि वे समारोह के लिए एक स्थायी ढांचा तैयार करें, जो हर साल लागू हो। साथ ही, 10 दिन के आयोजन को घटाकर 5 दिन किया जाए, ताकि प्रशासन जनसरोकार के कार्यों में बाधा न आए। सांस्कृतिक भवन का उपयोग और टेंट माफिया पर लगाम लगाकर ही इस समारोह की खोई गरिमा लौटाई जा सकती है। अगर सुधार नहीं हुआ, तो चक्रधर समारोह का भविष्य और भी विवादों में उलझता जाएगा।

Amar Chouhan

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