घरघोड़ा में मेला सीजन की लापरवाह रफ्तार ने फिर ली करवट, दो बाइकों की आमने-सामने टक्कर में पांच युवा गंभीर

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, 4 दिसंबर। जिले में सड़क दुर्घटनाओं पर रोक लगाने प्रशासन की तमाम कोशिशें एक बार फिर नाकाफी साबित हुईं। जागरूकता अभियानों से लेकर चालानी कार्रवाई तक—सब कुछ जारी है, लेकिन सड़क हादसों की भयावह श्रृंखला थमने का नाम नहीं ले रही। बुधवार की शाम घरघोड़ा थाना क्षेत्र में एक और भीषण दुर्घटना ने हालात की गंभीरता उजागर कर दी, जब भेंगारी के पास दो मोटरसाइकिलें आमने-सामने टकरा गईं। हादसे में पांच युवकों को गंभीर चोटें आईं।
कैसे हुआ हादसा?
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दुर्घटना शाम करीब 7 बजे हुई। तेज रफ्तार और लापरवाही से चलाई जा रही दो बाइकों की जोरदार भिड़ंत इतनी जबरदस्त थी कि दोनों वाहन मौके पर ही क्षतिग्रस्त हो गए। टक्कर की आवाज सुनकर आसपास के ग्रामीण दौड़ पड़े और घायलों को संभाला।
घायलों की सूची
1. मोहित राम राठिया (20 वर्ष), पिता—हलधर राठिया, डंगनीनारा
2. महेंद्र राठिया (18 वर्ष), पिता—स्व. रामकुमार राठिया, नवापारा
3. रवि यादव (19 वर्ष), पिता—सहनी यादव, डंगनीनारा
4. श्याम लाल (16 वर्ष), पिता—प्रकाश धनवार, नवापारा
5. डमरुधर (18 वर्ष), पिता—श्याम लाल राठिया, नवापारा
अस्पताल में हड़कंप, दो की हालत गंभीर
ग्रामीणों की सूचना पर घायलों के परिजन तुरंत मौके पर पहुंचे और सभी को घरघोड़ा अस्पताल ले जाया गया। यहां बीएमओ डॉ. एस.आर. पैंकरा और उनकी टीम ने तुरंत इलाज शुरू किया।
मोहित राम और महेंद्र राठिया की हालत चिंताजनक बताई जा रही है, जिसके चलते डॉक्टरों ने उन्हें बेहतर उपचार के लिए जिला अस्पताल रायगढ़ रेफर कर दिया।
मेला सीजन में हादसे क्यों बढ़ रहे हैं?
इन दिनों क्षेत्र में लक्ष्मी पूजा का मेला गांव-गांव आयोजित हो रहा है। कल कंचनपुर, आज बरमुड़ा—लगातार मेलों की वजह से रात में आवागमन बढ़ जाता है।
ऐसे अवसरों पर कुछ युवा नशे, ओवर स्पीड और ओवर सीटिंग जैसे जोखिम भरे रवैये अपनाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि मेला परिसर और उसके आस-पास छपरी युवा बाइकर तेज रफ्तार में वाहनों का करतब दिखाते देखे जाते हैं।

आज बरमुड़ा में खेला (विशेष आयोजन) होने की संभावना भी है, जिसके कारण सड़क पर भीड़ और बाइकर्स की आवाजाही ज्यादा होने का अनुमान है।
जिम्मेदारी किसकी? पुलिस, प्रशासन या ग्रामीण समाज की?
हर साल मेला सीजन में होने वाले हादसों की पुनरावृत्ति अब सोचने पर मजबूर करती है।
क्या स्थानीय पुलिस को मेले के दिनों में अतिरिक्त पेट्रोलिंग नहीं करनी चाहिए?
क्या गांव के बुजुर्ग और सामाजिक संगठन युवाओं को रोकने के लिए पहल नहीं कर सकते?
क्या अभिभावकों को अपने बच्चों पर नियंत्रण नहीं रखना चाहिए?
जरूरत है सामूहिक प्रयास की—क्योंकि एक पल की लापरवाही किसी परिवार को जिंदगी भर का दर्द दे जाती है।
समाचार सहयोगी सिकंदर चौहान