फर्जी ST प्रमाणपत्र घोटाला: प्रतापपुर की BJP विधायक शकुंतला पर संकट! आदिवासी नेता का विस्फोटक आरोप, जांच समिति गठित, FIR और जेल की आहट

फ्रीलांस एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायपुर/प्रतापपुर (विशेष खबर)। छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बार फिर आरक्षण और जाति प्रमाणपत्रों का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। प्रतापपुर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (BJP) की नवनिर्वाचित विधायक शकुंतला सिंह पोर्ते पर फर्जी अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाणपत्र के आधार पर चुनाव लड़ने का गंभीर आरोप लगा है। यह आरोप कोई साधारण विपक्षी नेता नहीं, बल्कि प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी चेहरा और पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने公开 सभा में लगाया है। टेकाम के इस बयान ने न केवल आदिवासी समाज में उबाल ला दिया है, बल्कि BJP की उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। अब सवाल यह है कि क्या विधायक की कुर्सी बच पाएगी या फर्जी दस्तावेजों का यह मामला उन्हें जेल की राह दिखाएगा?
मूल निवासी उत्तर प्रदेश की, ST कोटा छत्तीसगढ़ में? टेकाम का सीधा हमला
डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, जो खुद सरगुजा क्षेत्र के दिग्गज आदिवासी नेता हैं और कांग्रेस के कद्दावर पूर्व मंत्री रहे हैं, ने वाड्रफनगर में आयोजित एक विशाल आदिवासी सभा में खुलकर विधायक पोर्ते पर निशाना साधा। टेकाम ने कहा, “शकुंतला सिंह पोर्ते मूल रूप से उत्तर प्रदेश की निवासी हैं। प्रथम दृष्टया उनका जाति प्रमाणपत्र फर्जी लगता है। छत्तीसगढ़ में ST आरक्षण का लाभ लेने के लिए मूल निवास अनिवार्य है, लेकिन यहां तो पति की वंशावली के आधार पर दस्तावेज बनाए गए प्रतीत होते हैं। यह आदिवासी समाज का घोर अपमान है और संवैधानिक अधिकारों का हनन।”
टेकाम के इस दावे ने सभा में मौजूद सैकड़ों आदिवासी प्रतिनिधियों को आक्रोशित कर दिया। सूत्रों के अनुसार, विधायक पोर्ते का जन्म और प्रारंभिक जीवन उत्तर प्रदेश में बीता है, जबकि उनका विवाह छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में हुआ। कानूनी विशेषज्ञों का मत है कि ST प्रमाणपत्र के लिए मूल राज्य का निवास प्रमाणित होना जरूरी है। पति की जाति या वंशावली से ST लाभ नहीं लिया जा सकता। यदि यह साबित हो गया, तो न केवल चुनाव अमान्य होगा, बल्कि धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े और आरक्षण दुरुपयोग के तहत IPC की धाराओं के अलावा SC/ST एक्ट के प्रावधान भी लागू हो सकते हैं।

आदिवासी समाज का फूटा गुस्सा: ‘खोजबीन समिति’ का गठन, FIR की तैयारी
सभा में आदिवासी समाज ने तत्काल प्रतिक्रिया दी। निर्णय लिया गया कि एक स्वतंत्र ‘खोजबीन समिति’ गठित की जाएगी, जिसमें सरगुजा, बलरामपुर और प्रतापपुर के प्रमुख आदिवासी नेता शामिल होंगे। यह समिति विधायक के जाति प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाणपत्र, मूल निवास प्रमाण, स्कूल रिकॉर्ड्स, विवाह दस्तावेज और अन्य संबंधित कागजातों की गहन जांच करेगी। समिति की रिपोर्ट जिला कलेक्टर, अनुसूचित जनजाति आयोग और राज्य चुनाव आयोग को सौंपी जाएगी।

समाज के नेताओं ने चेतावनी दी, “यदि प्रमाणपत्र फर्जी साबित हुआ, तो हम स्वयं FIR दर्ज कराएंगे। विधायक पद को अमान्य घोषित कराने के लिए हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ेंगे। यह सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज की अस्मिता का सवाल है।” वाड्रफनगर से शुरू हुआ यह आंदोलन अब प्रतापपुर, बलरामपुर, अंबिकापुर और रायपुर तक फैल चुका है। सोशल मीडिया पर #FakeSTCertificate और #ShakuntalaPorteFraud जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं, जहां आदिवासी युवा खुलकर विरोध जता रहे हैं।
ST आयोग की सख्ती: ‘संविधान का अपमान, त्वरित कार्रवाई जरूरी’
मामले ने तब और तूल पकड़ा जब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानू प्रताप सिंह ने इसे “अत्यंत गंभीर” करार दिया। सिंह ने कहा, “किसी जनप्रतिनिधि द्वारा फर्जी दस्तावेजों पर चुनाव जीतना न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि आदिवासी समाज और भारतीय संविधान का अपमान है। हम स्वत: संज्ञान ले रहे हैं और राज्य सरकार से जांच रिपोर्ट मांगेंगे। दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।” आयोग की इस सक्रियता से प्रशासन पर दबाव बढ़ गया है। सूत्र बता रहे हैं कि आयोग जल्द ही नोटिस जारी कर सकता है।
विपक्ष का तीखा प्रहार: BJP की स्क्रीनिंग पर सवाल
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को लपक लिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा, “BJP को उम्मीदवार की पृष्ठभूमि की जानकारी नहीं थी? यदि थी, तो फर्जी दस्तावेजों वाली उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया? यह आरक्षण व्यवस्था की लूट है।” पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी ट्वीट कर हमला बोला, “आदिवासी अधिकारों की रक्षा का दावा करने वाली BJP खुद फर्जी ST उम्मीदवार थोप रही है। जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई हो।”
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मामला BJP के लिए बड़ा झटका है। सरगुजा संभाग में आदिवासी वोटबैंक निर्णायक है, और यदि समाज नाराज हुआ तो आगामी लोकसभा और स्थानीय चुनावों में नुकसान हो सकता है।
प्रशासन की भूमिका पर संशय: राजनीतिक दबाव या निष्पक्ष जांच?
अब सबसे बड़ा सवाल प्रशासन की कार्रवाई का है। जिला प्रशासन ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। क्या SDM स्तर पर दस्तावेजों की जांच होगी? क्या पुलिस FIR दर्ज करेगी? या फिर सत्ता के दबाव में मामला दबा दिया जाएगा? आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि 15 दिनों में जांच नहीं हुई, तो वे रायपुर में धरना-प्रदर्शन करेंगे।
कानूनी नजरिया: क्या हो सकती है सजा?
– चुनाव अमान्यता: सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों (जैसे 2013 का लिली थॉमस केस) में फर्जी दस्तावेज पर चुनाव रद्द होता है।
– FIR और जेल: IPC 420 (धोखाधड़ी), 467 (फर्जी दस्तावेज बनाना), 468 (फर्जीवाड़े के लिए उपयोग) के तहत 7 साल तक की सजा।
– आरक्षण दुरुपयोग: SC/ST एक्ट के तहत अतिरिक्त कार्रवाई।
– अयोग्यता: 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक।
छत्तीसगढ़ राजनीति में नया भूचाल?
यह मामला अब स्थानीय विवाद से ऊपर उठकर राज्यव्यापी मुद्दा बन चुका है। आदिवासी समाज की एकजुटता, ST आयोग की सख्ती और विपक्ष का हमला – सब मिलाकर BJP विधायक शकुंतला पोर्ते पर संकट के बादल गहरा रहे हैं। आने वाले दिन बताएंगे कि फर्जी दस्तावेजों की यह ‘आग’ विधायक की कुर्सी जला देगी या राजनीतिक समझौते में ठंडी पड़ जाएगी। फिलहाल, सरगुजा से रायपुर तक हलचल है और नजरें प्रशासन पर टिकी हैं।
मीडिया द्वारा विधायक पोर्ते से संपर्क करने पर कोई जवाब नहीं मिला‼️
समाचार सहयोगी मानिकचंद (सरपंच) की रिपोर्ट