एनटीपीसी तलाईपल्ली कोल माइंस में संविदाकर्मियों का रोष बढ़ा — भत्तों, अनुबंध अवधि और समानता की मांग पर बोले– ‘अब या तो निर्णय लें, या हड़ताल झेलें’

एडिटर जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम | रायगढ़
एनटीपीसी कोल माइंस प्रोजेक्ट, तलाईपल्ली में कार्यरत सैकड़ों संविदाकर्मियों ने एक बार फिर अपने अधिकारों की मांग को लेकर प्रबंधन के खिलाफ आवाज बुलंद की है। श्रमिकों ने परियोजना प्रमुख को एक स्मरण पत्र सौंपते हुए चेतावनी दी थी कि यदि उनकी मांगों पर तीन दिनों के भीतर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को बाध्य होंगे इसके बाद आज से वे हड़ताल पर चले गए।

संविदाकर्मियों ने अपने पत्र में बताया रहा कि उन्होंने पहले भी दिनांक 15 अक्टूबर 2025 को इसी संबंध में एक ज्ञापन सौंपा था, लेकिन सात दिनों का समय बीत जाने के बाद भी न तो कोई जवाब मिला, न ही किसी प्रकार की कार्रवाई की गई। श्रमिकों ने इस लापरवाही को Contract Labour (Regulation & Abolition) Act, 1970 की धारा 21 का उल्लंघन बताया है, जिसके अंतर्गत नियोजक को मजदूरों के हितों की रक्षा और समय पर सूचना देना आवश्यक है।

श्रमिकों की प्रमुख मांगें
पत्र में श्रमिकों ने तीन मुख्य मांगें उठाई हैं—
1. भत्तों में समानता: संविदाकर्मियों को भी एनटीपीसी के स्थायी कर्मचारियों की तरह HRA, Communication Allowance और Conveyance Allowance का लाभ दिया जाए।
2. कॉन्ट्रैक्ट एकीकरण: वर्तमान में एनटीपीसी रायकेरा परिसर में कई ठेका कंपनियाँ (जैसे एम/एस प्रहलाद मोहराना, सूर्यतेजा एवं ए.के. यादव) कार्यरत हैं। श्रमिकों का कहना है कि इन कंपनियों को एकीकृत कर “One Site – One Contract” की नीति लागू की जाए, जिससे कार्य प्रणाली में पारदर्शिता और समानता स्थापित हो।
3. अनुबंध अवधि बढ़ाई जाए: मैनपावर एवं मेंटेनेंस कार्यों के लिए हर साल नया कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है, जिससे श्रमिकों में अस्थिरता और असुरक्षा बनी रहती है। श्रमिकों ने मांग की है कि इन कॉन्ट्रैक्ट्स की अवधि एक वर्ष से बढ़ाकर तीन वर्ष की जाए, ताकि ठेकेदार और श्रमिक—दोनों को दीर्घकालिक स्थायित्व मिल सके।
“चांद कलेक्शन” का उदाहरण देकर दी दलील
संविदाकर्मियों ने अपने आवेदन में यह भी उल्लेख किया है कि एनटीपीसी से जुड़ी संस्था चांद कलेक्शन में कार्यरत संविदाकर्मियों को उक्त भत्ते पहले से ही दिए जा रहे हैं। ऐसे में अन्य ठेका कंपनियों के श्रमिकों को इस लाभ से वंचित रखना न केवल अन्यायपूर्ण है बल्कि समान कार्य हेतु समान वेतन के सिद्धांत के भी विरुद्ध है।
अब हुआ हड़ताल का आगाज – “अब या तो निर्णय लें, या विरोध झेलें”
श्रमिक प्रतिनिधियों ने कहा है कि यदि जल्द ही प्रबंधन द्वारा कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया, तो वे Factories Act, 1948 की धारा 111-A (Workers’ Right to Representation) के तहत अपने अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन करने को विवश होंगे।
उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि अनिश्चितकालीन हड़ताल की नौबत है, तो उसकी जिम्मेदारी पूरी तरह से एनटीपीसी प्रशासन की है, क्योंकि श्रमिकों ने संवाद और पत्राचार के माध्यम से सभी संवैधानिक रास्ते पहले ही अपनाए हैं।

प्रशासनिक चुप्पी पर सवाल
एनटीपीसी तलाईपल्ली जैसे बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट में संविदाकर्मियों की आवाज लगातार उठ रही है, मगर प्रशासनिक स्तर पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। श्रमिकों का कहना है कि परियोजना की सफलता उन्हीं के श्रम पर टिकी है, ऐसे में उनके हितों की अनदेखी “औद्योगिक शांति” को भंग कर सकती है।
अब देखना यह होगा कि एनटीपीसी प्रबंधन मजदूरों की मांगों पर कब और कितना गंभीरता से विचार करता है, या फिर आने वाले दिनों में तलाईपल्ली की धरती मजदूर हड़ताल के नारों से गूंज उठेगी।
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संपादक: अमरदीप चौहान
(विशेष रिपोर्ट – श्रमिक अधिकार एवं औद्योगिक नीति)