भूस्वामी की जमीन पर जेपीएल द्वारा तानाशाह तरीके से जबरन कब्जे का मामला !!

वन पट्टा हेतु स्वीकृत भूमि पर बिना अनुमति काट दिए गए पेड़
भूमिपुत्र आदिवासियों की गुहार,कहाँ है सरकार ⁉️
वन भूमि पत्रक स्वीकृत जमीन पर मिट्टी और डस्ट डाल रही कम्पनी!!
अमरदीप चौहान/अमरखबर:रायगढ़ जिले का तमनार ब्लॉक सिर्फ कागजो में पाँचवी अनुसूची क्षेत्र घोषित है और यहां के भूमिपुत्र आदिवासियों के उत्थान और संवर्धन के लिए लाखों कागजी घोड़े दौड़ाए जाते हैं पर जमीनी हकीकत इससे कहीं अलग नजर आती है । ताजा मामला तमनार से लगे ग्राम गारे का है जहां के स्थानीय भूमिपुत्रों द्वारा काबिज वन भूमि पर जबरन जेपीएल कम्पनी द्वारा कब्जा किया जा रहा है जिसकी शिकायत अब कलेक्टर एवं एसडीएम सहित उच्च अधिकारियों को की गई है बावजूद इसके कम्पनी की दादागिरी पर अंकुश लगाने कोई प्रशासकीय पहल होती नजर नही आ रही है।
काटे दर्जन भर पेड़,मिट्टी पाट कर कब्जे की कोशिश
आवेदक जगरसाय ,बलसाय एवं धनसाय सिदार द्वारा जिले के अधिकारियों को दिए आवेदन में बताया गया है कि उनका परिवार लगभग तीन पीढ़ियों से गारे की सीमा में स्थित वन भूमि पर फसल उगाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं और 300 से अधिक वृक्ष लगाकर उसे संरक्षित करने में भी इस आदिवासी परिवार की अहम भूमिका रही है परंतु इस परिवार से बिना अनुमति लिए जेपीएल द्वारा इनकी वन भूमि से 250 पेड़ काट डाले । जब आवेदकों को कम्पनी द्वारा पेड़ काटने की जानकारी हुई तो उन्होंने कम्पनी और स्थानीय प्रशासन के पास गुहार लगानी शुरू की जो आज पर्यंत जारी है..
भूमिपुत्रों को मिलेगा न्याय या चलेगा पूंजीवादी जोर!!
इस मामले में आवेदक आदिवासी परिवार द्वारा वन भूमि अधिकार पत्र के लिए आवेदन भी किया था जिसे 2016 में ग्राम सभा एवं तत्कालीन अधिकारी द्वारा सत्यापित भी किया गया था पर प्रशासकीय ढिलाई एवं जागरूकता की कमी से वन अधिकार पत्र इन्हें आज तक नही मिला और इनका सत्यापित आवेदन प्रक्रियाधीन है ऐसे में यह आदिवासी परिवार अपने वाजिब हक के लिए पूंजीवाद से संघर्ष तिस पर प्रशासन के असहानुभूतिपूर्ण रवैये से कैसे अपने हिस्से का न्याय प्राप्त कर पायेगा ये भी देखने वाली बात होगी । उच्च अधिकारियों को गुहार लगाने के बावजूद अब तक इस परिवार के हाथ खाली है ना इन्हें मुआवजे की उम्मीद दिख रही ना ही जेपीएल की तानाशाही कम हो रही है ऊपर से जीवन यापन का जरिया भूमि छीन जाने से भूखों मरने की नौबत आ सकती है ऐसे में अपने भविष्य को लेकर चिंतित एक आदिवासी परिवार आदिवासी राज्य और आदिवासी मुख्यमंत्री के शासन में भी दर दर भटकने मजबूर है!!