संरक्षित वन क्षेत्र में अवैध कटाई का गंभीर आरोप: ग्रामीणों ने की सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग

सम्पादक अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम तमनार, रायगढ़ (छत्तीसगढ़), 1 अप्रैल 2025: जिला रायगढ़ के तमनार तहसील अंतर्गत ग्राम मुडागांव में वन संरक्षण कानून के उल्लंघन का एक गंभीर मामला प्रकाश में आया है। ग्राम सभा ने संरक्षित वन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध वृक्ष कटाई का आरोप लगाते हुए अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), वनमंडल अधिकारी और महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको) के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। ग्रामवासियों ने इस घटना को न केवल कानून का उल्लंघन बताया है, बल्कि इसे आदिवासी समुदाय के अधिकारों पर हमला करार देते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

क्या है पूरा मामला?
ग्रामीणों के अनुसार, संरक्षित वन भूमि और राजस्व भूमि में किसी भी तरह की वृक्ष कटाई के लिए ग्राम सभा की सहमति भी अनिवार्य है। यह नियम वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत स्पष्ट रूप से निर्धारित है, जो जंगल और वन संसाधनों पर स्थानीय समुदायों, विशेषकर आदिवासियों, को प्रबंधन और संरक्षण का अधिकार देता है। इसके बावजूद, वन विभाग और महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड ने ग्राम सभा की अनुमति के बिना संरक्षित वन क्षेत्र में हजारों फलदार वृक्षों की कटाई कर दी।

ग्रामीणों ने अपने आरोपों में बताया कि:
घरघोड़ा एसडीएम द्वारा जारी आदेशों के आधार पर वृक्ष कटाई की अनुमति दी गई। इन आदेशों की वैधता पर ग्राम सभा ने सवाल उठाए हैं, क्योंकि इसमें स्थानीय समुदाय की सहमति को शामिल नहीं किया गया।
27 मार्च 2025 को ग्राम पंचायत मुडागांव को एक औपचारिक आदेश जारी कर वन विभाग की वृक्ष कटाई में सहयोग करने के लिए कहा गया। ग्राम सभा का दावा है कि यह आदेश एकतरफा था और इसमें उनकी राय को नजरअंदाज किया गया।
28 मार्च 2025 को वन विभाग ने संरक्षित वन कक्ष क्रमांक 740 और 741 में बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई शुरू कर दी। इस क्षेत्र में सैकड़ों पुराने और मूल्यवान वृक्ष हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं।
ग्राम सभा के प्रतिनिधियों का कहना है कि यह कटाई न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि यह उस सामुदायिक वन संसाधन को भी नष्ट कर रही है, जिसे वन अधिकार कानून के तहत संरक्षित किया गया था। यह भूमि 29.642 हेक्टेयर में फैली हुई है और इसकी वैधानिक पुष्टि कलेक्टर, वनमंडल अधिकारी और आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों द्वारा पहले ही की जा चुकी है।
ग्राम सभा का पक्ष और कानूनी आधार
ग्राम सभा ने इस कार्रवाई को वन अधिकार अधिनियम, 2006 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 का खुला उल्लंघन करार दिया है। अधिनियम के तहत, संरक्षित वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य पारंपरिक वनवासी समुदायों को अपने संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। ग्राम सभा का कहना है कि इस क्षेत्र में वृक्ष कटाई के लिए उनकी सहमति न लेना न केवल अवैध है, बल्कि यह उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन भी है।
आंदोलन कर रहे जनपद के एक सदस्य ने कहा, “यह जंगल हमारी पहचान और आजीविका का आधार है। बिना हमारी मर्जी के इसे नष्ट करना हमारे साथ अन्याय है। हमारी जमीन और जंगल पर हमारा हक है, और इसे कोई छीन नहीं सकता।”
ग्राम सभा की मांगें
ग्राम सभा ने इस घटना को “अवैध और असंवैधानिक” बताते हुए निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
आपराधिक मामला दर्ज करना: दोषी अधिकारियों और महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड के पदाधिकारियों के खिलाफ तत्काल आपराधिक मामला दर्ज किया जाए।
गिरफ्तारी: जिम्मेदार अधिकारियों और कंपनी के प्रतिनिधियों को गिरफ्तार कर न्यायिक प्रक्रिया शुरू की जाए।
नुकसान की भरपाई: कटाई से हुए पर्यावरणीय और सामुदायिक नुकसान की भरपाई के लिए उचित मुआवजा दिया जाए।
कार्रवाई की जांच: वन विभाग और स्थानीय प्रशासन के इस फैसले की स्वतंत्र जांच कराई जाए।
प्रशासन और वन विभाग पर उठे सवाल
इस मामले ने स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामवासियों का आरोप है कि वन विभाग ने महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर यह कटाई किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए की है, जिसकी जानकारी ग्राम सभा को नहीं दी गई। कुछ लोगों का मानना है कि यह कटाई संभवतः खनिज उतखन्न या औद्योगिक परियोजना से जुड़ी हो सकती है, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।
आगे की राह
ग्राम सभा ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं, तो वे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे और इस मामले को उच्च न्यायालय तक ले जाएंगे। इस घटना ने एक बार फिर वन संरक्षण, आदिवासी अधिकारों और औद्योगिक विकास के बीच टकराव को उजागर किया है। पुलिस ने शिकायत दर्ज कर ली है और जांच शुरू करने का आश्वासन दिया है।
यह मामला छत्तीसगढ़ में वन संरक्षण और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को लेकर एक बड़ी बहस को जन्म दे सकता है। आने वाले दिनों में इसकी प्रगति पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।

