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बोलने पर एफआईआर, सोचने पर साज़िश, और चुप रहने पर गुलामी…!

*अब लोकतंत्र नहीं, “डर का राज” है  …*

* सत्ता को अब आइना नहीं, चरणवंदन चाहिए।
* सवाल पूछो तो देशद्रोही, चुप रहो तो “अच्छा नागरिगक”?
* यह लोकतंत्र है या तमाशा?

*भारत* के संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी दी थी, लेकिन आज यह आज़ादी सत्ता के तलवे चाटने तक सीमित कर दी गई है। अब सरकार से सवाल पूछना अपराध है, और जवाब मांगना राजद्रोह। जो बोलेगा, जेल जाएगा। जो लिखेगा, एफआईआर पाएगा। जो चुप रहेगा, उसकी गर्दन अगली है। ये लोकतंत्र नहीं, ये राजनीतिक आतंक है!

*“डर के खिलाफ लिखना ही अब क्रांति है”*
सरकार अब लोकतंत्र की नहीं, चापलूसी की भूखी है। उसे ‘जय-जय’ चाहिए, ‘क्यों’ सुनना बर्दाश्त नहीं। पत्रकार यदि निष्पक्ष है, तो देशद्रोही है। कलाकार अगर सवाल उठाता है, तो अपराधी है। कवि अगर लिखता है—तो राष्ट्रविरोधी है।
अब तो सत्ता काग़ज़ पर बनी एक कार्टून से भी काँप जाती है। सोचिए, कितना खोखला हो चुका है यह तंत्र।

*एफआईआर : अब यह कानून नहीं, सत्ता का हथियार है*
एफआईआर अब न्याय का नहीं, बदले का औजार बन चुकी है। यह सत्तालोलुप व्यवस्था द्वारा जनता को डराने का लाइसेंस है। सरकार खुद को “जनता की प्रतिनिधि” कहती है, लेकिन जब जनता बोले—तो उसी पर मुकदमा? ये लोकतंत्र नहीं, फासीवाद का डिजिटल संस्करण है।

*“सरकार से सवाल? चलो, जेल चलो!”*
जो देश कभी “सत्यमेव जयते” की बात करता था, आज वहां सत्य बोलना जुर्म बन गया है। नेता गलती कर सकते हैं, झूठ बोल सकते हैं, घोटाले कर सकते हैं लेकिन नागरिक सवाल नहीं पूछ सकता! क्या यही “अमृतकाल” है? या यह अभिव्यक्ति का मृतकाल है?

*चापलूसों के लिए स्वर्ग, सवाल करने वालों के लिए नरक :*
मीडिया का एक बड़ा हिस्सा पहले ही सत्ता की गोदी में बैठ चुका है। अब सोशल मीडिया, स्वतंत्र पत्रकार और आम जनता सभी को कानूनी हथियारों से कुचला जा रहा है। जो न बिके, उसे झुकाया जा रहा है। जो न झुके, उसे मिटाने की कोशिश हो रही है।

*अब चुप रहना अपराध है, और बोलना क्रांति…!*
* अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमारे बच्चों के पास कोई आवाज़ नहीं बचेगी।
* अगर आज हम डर गए, तो आने वाली पीढ़ियाँ सिर्फ़ गुलामी सीखेंगी।
* अब वक्त है ललकारने का – सत्ता से, सिस्टम से, डर से और चुप्पी से।

*ये मत पूछो कि “मैं अकेला क्या कर सकता हूँ?”*
*पूछो कि “मैं चुप रहकर कितना अन्याय देख सकता हूँ?”*

* यह वक्त है कलम को हथियार बनाने का।
* यह वक्त है सड़कों को अदालत बनाने का।
* यह वक्त है सवालों को शस्त्र बनाने का।

क्योंकि अगर अब भी नहीं बोले, तो अगली एफआईआर तुम्हारे नाम की होगी।

Amar Chouhan

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