रायगढ़ में 23 एकड़ सरकारी जमीन घोटाला: नवदुर्गा फ्यूल पावर लिमिटेड को खाली करने का आदेश, उद्योगों पर किसानों की जमीन हड़पने का भी आरोप

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम रायगढ़, छत्तीसगढ़ में एक बड़े जमीन घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें रायगढ़-घरघोड़ा मार्ग पर स्थित नवदुर्गा फ्यूल पावर लिमिटेड को 23 एकड़ सरकारी कोटवारी जमीन अवैध रूप से कब्जाने का दोषी पाया गया है। राजस्व विभाग ने कंपनी को 15 दिनों का अल्टीमेटम देते हुए इस जमीन को खाली करने का आदेश जारी किया है। साथ ही, क्षेत्र में उद्योगों द्वारा किसानों की निजी जमीनों पर कब्जे की बढ़ती शिकायतों ने प्रशासन और सरकार के लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर दी है।
घोटाले का खुलासा: कोटवारी जमीन पर 20 साल का अवैध कब्जा
आवेदिका सुलोचनी चौहान, जो ग्राम सराईपाली की कोटवार हैं, ने शिकायत दर्ज की थी कि नवदुर्गा फ्यूल पावर लिमिटेड ने खसरा नंबर 395-2 (रकबा 0.955 हेक्टेयर) की कोटवारी जमीन पर 20 साल से अवैध कब्जा किया हुआ है। यह जमीन उनके परिवार को गुजर-बसर के लिए शासन द्वारा दी गई थी। जांच में पाया गया कि कंपनी ने 20 मई 2005 को सुलोचनी के स्वर्गीय पति बसंत लाल चौहानके साथ एक सहमति पत्र बनाया था, जिसमें कंपनी को जमीन का कब्जा देने और बदले में अन्य जमीन (खसरा नंबर 617-1, 617-2, 612-1, कुल रकबा 1.037 हेक्टेयर) व एक लाख रुपये देने की बात थी।
हालांकि, यह सहमति पत्र गैर-कानूनी पाया गया, क्योंकि कोटवारी जमीन पर कोटवार का स्वामित्व नहीं होता और इसे बेचने या हस्तांतरित करने का अधिकार केवल कलेक्टर के पास होता है। कंपनी द्वारा दी गई जमीन मौके पर खाली पाई गई, और तबादला प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई। सुलोचनी ने बताया कि इस कब्जे के कारण वे 21 साल से खेती नहीं कर पाईं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। एक विधवा और दो बच्चों की मां के रूप में उनकी आजीविका प्रभावित हुई। उन्होंने 80 लाख रुपये मुआवजे और जमीन वापस करने की मांग की थी।
राजस्व विभाग ने जांच के बाद कंपनी के कब्जे की पुष्टि की और 15 दिनों के भीतर जमीन खाली करने का नोटिस जारी किया।
उद्योगों द्वारा किसानों की जमीन पर कब्जे की बढ़ती शिकायतें
यह मामला केवल सरकारी जमीन तक सीमित नहीं है। रायगढ़ जिले में उद्योगों द्वारा किसानों की निजी जमीनों पर कब्जे की शिकायतें भी लगातार सामने आ रही हैं। स्थानीय किसानों का आरोप है कि बड़े औद्योगिक घराने और पावर प्लांट्स कम मुआवजा देकर या दबाव बनाकर उनकी उपजाऊ जमीनें हड़प रहे हैं। कई मामलों में, किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिलता, और उनकी आजीविका छिन रही है।
– कम मुआवजा और धोखाधड़ी: किसानों का कहना है कि कंपनियां जमीन के बाजार मूल्य से कई गुना कम कीमत पर अधिग्रहण करती हैं। कुछ मामलों में, कागजी हेरफेर कर जमीन को गैर-कृषि दिखाया जाता है, जिससे मुआवजा कम हो जाता है।
– दबाव और धमकी: कई किसानों ने बताया कि उन्हें जमीन बेचने के लिए धमकाया जाता है, और प्रशासन की मिलीभगत के कारण उनकी शिकायतें अनसुनी रहती हैं।
– आर्थिक शोषण: औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की जमीनें ले ली जाती हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को नौकरियां या अन्य लाभ नहीं मिलते।
राजस्व विभाग और प्रशासन की भूमिका पर सवाल
नवदुर्गा फ्यूल पावर लिमिटेड मामले में राजस्व विभाग की कार्रवाई स्वागत योग्य है, लेकिन 20 साल तक अवैध कब्जे का पता न चलना प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है। इसी तरह, गारे पेलमा कोल ब्लॉक मुआवजा घोटाले में भी राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत सामने आई थी, जहां कागजी हेरफेर से करोड़ों रुपये का गबन हुआ।
किसानों और स्थानीय नेताओं का कहना है कि राजस्व विभाग में पारदर्शिता की कमी और अधिकारियों की जवाबदेही तय न होने से ऐसे घोटाले बढ़ रहे हैं। रायगढ़ में सरस्वती राइस मिल मामले में भी व्यावसायिक जमीन को कृषि भूमि दिखाकर कम कीमत पर बेचने का खेल उजागर हुआ था, जिससे शासन को लाखों का नुकसान हुआ।
समाधान के लिए सुझाव
1. सख्त निगरानी और पारदर्शिता: राजस्व विभाग में डिजिटल रिकॉर्ड और नियमित ऑडिट लागू हों। जमीन हस्तांतरण और मुआवजे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए
2. किसानों के लिए सुरक्षा: निजी जमीन अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पुनर्वास नीति लागू हो। किसानों को कानूनी सहायता दी जाए।
3. कठोर कार्रवाई: अवैध कब्जे और घोटालों में शामिल अधिकारियों और कंपनियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हों। नवदुर्गा मामले में कंपनी के खिलाफ मुआवजा वसूली और कानूनी कार्रवाई हो।
4. स्थानीय भागीदारी: ग्राम पंचायतों और किसान संगठनों को जमीन संबंधी फैसलों में शामिल किया जाए।
5. जागरूकता अभियान: किसानों को उनके अधिकारों और कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में जागरूक किया जाए।
नवदुर्गा फ्यूल पावर लिमिटेड द्वारा 23 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा और किसानों की निजी जमीनों पर उद्योगों का अतिक्रमण रायगढ़ में जमीन घोटालों की गंभीर समस्या को उजागर करता है। राजस्व विभाग का त्वरित आदेश एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसे स्थायी समाधान के लिए सख्त नीतियों और जवाबदेही के साथ लागू करना होगा। किसानों की आजीविका और सरकारी जमीन की सुरक्षा के लिए प्रशासन को तत्काल और प्रभावी कदम उठाने चाहिए, ताकि औद्योगिक विकास के नाम पर शोषण बंद हो और न्याय सुनिश्चित हो।