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मुड़ागांव में जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए आंदोलन: एक विस्तृत अवलोकन..

सम्पादक जर्नलिस्ट अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम 1 जुलाई 2025 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार ब्लॉक के अंतर्गत मुड़ागांव, सराईटोला, और आसपास के गांवों में जल, जंगल, और जमीन को बचाने के लिए आदिवासी समुदाय और ग्रामीणों का आंदोलन जोर पकड़ रहा है। यह आंदोलन मुख्य रूप से महाराष्ट्र पावर जनरेशन कंपनी (महाजनको) और अडानी समूह जैसी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा कोयला खनन के लिए जंगलों की अवैध कटाई और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहा है। यह आंदोलन आदिवासी समुदाय की आजीविका, पर्यावरण संरक्षण, और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण संघर्ष बन गया है।

मुड़ागांव और आसपास के क्षेत्र कोयला खनन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र हैं, जहां कॉर्पोरेट कंपनियां बड़े पैमाने पर खनन परियोजनाएं चला रही हैं। हाल के महीनों में, विशेष रूप से जून 2025 से, ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि महाजनको और अडानी समूह द्वारा बिना ग्राम सभा की अनुमति और पर्यावरणीय मंजूरी के हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं। यह कटाई न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि आदिवासी समुदायों की आजीविका को भी खतरे में डाल रही है, जो जंगल और जमीन पर निर्भर हैं।

27 जून 2025 को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज ने मुड़ागांव का दौरा किया और ग्रामीणों के साथ मुलाकात कर उनकी शिकायतें सुनीं। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य की विष्णुदेव सरकार कॉर्पोरेट हितों के लिए जंगलों की अवैध कटाई को बढ़ावा दे रही है, बिना ग्राम सभा की सहमति या पंचायत की अनुमति के। इसके अलावा, ग्रामीणों ने यह भी बताया कि प्रशासन और कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।

आंदोलनकारी यह मांग कर रहे हैं कि:
1. जंगल की अवैध कटाई पर तत्काल रोक लगाई जाए।
2. ग्राम सभा और पंचायतों को बिना सूचित किए भूमि अधिग्रहण और खनन कार्य बंद किए जाएं।
3. पर्यावरण और वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभावों की गहन जांच हो।
4. आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों, विशेष रूप से पंचायती राज अधिनियम (पेसा) और वन अधिकार अधिनियम 2006, का सम्मान किया जाए।

मुड़ागांव और सराईटोला के ग्रामीण, जिसमें महिलाएं, बच्चे, और बुजुर्ग शामिल हैं, जंगलों में एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे हैं। वे पेड़ों से चिपककर एक साथ धरना देकर अपनी जमीन और जंगल की रक्षा का संकल्प ले रहे हैं। अप्रैल 2025 में शुरू हुआ यह आंदोलन अब तक कई दिनों तक चला, और 1 जुलाई 2025 तक यह और उग्र रूप ले चुका है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने एक ज्ञापन सौंपा रहा, जिसमें जंगल कटाई और कॉर्पोरेट कंपनियों की मनमानी पर रोक लगाने की मांग की गई। इसके अलावा, आदिवासी संगठन जैसे ट्राइबल आर्मी ने भी इस मुद्दे को उठाया और सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।


जल, जंगल, और जमीन आदिवासी समुदायों की संस्कृति, आजीविका, और अस्मिता का आधार हैं। झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, जहां आदिवासी आबादी अधिक है, ये संसाधन उनके जीवन का अभिन्न अंग हैं। संविधान की पांचवीं अनुसूची और वन अधिकार अधिनियम 2006 आदिवासियों को इन संसाधनों पर अधिकार प्रदान करते हैं, लेकिन कॉर्पोरेट हितों और सरकारी नीतियों के कारण इन अधिकारों का अक्सर उल्लंघन होता है।

मुड़ागांव के आंदोलन में ग्रामीणों का कहना है कि जंगल उनके लिए केवल संसाधन नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का हिस्सा हैं। पेड़ों की कटाई से न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि वन्यजीवों और स्थानीय पारिस्थितिकी पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।


आंदोलनकारियों का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार इस मामले में पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। दावा किया गया रहा कि सरकार ने 5000 से अधिक पुलिस बल तैनात किए हैं ताकि जंगल कटाई को सुचारू रूप से चलाया जा सके। इसके जवाब में, विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इसे “कॉर्पोरेट परस्ती” का उदाहरण बताया है और सरकार पर आदिवासी अधिकारों के दमन का आरोप लगाया है।


जंगल कटाई और कोयला खनन से न केवल पर्यावरण को खतरा है, बल्कि हजारों आदिवासी परिवारों की आजीविका भी दांव पर है। जंगल से प्राप्त होने वाले संसाधन जैसे महुआ, चार, डोरी और अन्य वन उत्पाद आदिवासियों के लिए आय का प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, खनन गतिविधियों से जल स्रोतों का प्रदूषण और वन्यजीवों का विस्थापन भी एक गंभीर चिंता का विषय है।

मुड़ागांव का आंदोलन जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए आदिवासी समुदायों के लंबे इतिहास का हिस्सा है। भारत में बिरसा मुंडा, सिद्धो-कान्हो, और जतरा भगत जैसे आदिवासी नेताओं ने ब्रिटिश शासन और शोषणकारी व्यवस्थाओं के खिलाफ इसी तरह के आंदोलन चलाए थे। पत्थलगड़ी आंदोलन और हूल क्रांति जैसे ऐतिहासिक आंदोलनों ने भी आदिवासियों के अधिकारों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई रही।

मुड़ागांव में चल रहा आंदोलन केवल स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह आदिवासी अधिकारों, पर्यावरण संरक्षण, और कॉर्पोरेट लालच के खिलाफ एक व्यापक संघर्ष का प्रतीक है। ग्रामीणों का यह संकल्प कि वे अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, यह दर्शाता है कि जल, जंगल, और जमीन उनके लिए जीवन का आधार हैं। इस आंदोलन को देश भर से समर्थन मिल रहा है, और यह उम्मीद की जाती है कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेंगे।

बहरहाल आंदोलन के भविष्य और इसके परिणामों पर नजर रखना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह न केवल मुड़ागांव, बल्कि पूरे देश में आदिवासी समुदायों और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक मिसाल बन सकता है।

Amar Chouhan

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