मैनपाट में बक्साइट खनन पर विस्फोटक विरोध: जनसुनवाई में उखड़ा पंडाल, ग्रामीणों ने कहा—“पहाड़ नहीं बिकने देंगे”

फ्रीलांस एडिटर अमरदीप चौहान/अमरखबर.कॉम अम्बिकापुर। पर्यटन की वादियों में बसे शांत पहाड़ी मैनपाट ने रविवार को अभूतपूर्व जनआक्रोश देखा। कंडराजा और उरगा क्षेत्र में प्रस्तावित बक्साइट खदान विस्तार के विरोध में ग्रामीण इतने उग्र हो गए कि नर्मदापुर मिनी स्टेडियम में चल रही प्रशासनिक जनसुनवाई को पंडाल समेत उखाड़कर रोक दिया। भारी पुलिस बल और विस्तृत प्रशासनिक तैयारी भी भीड़ के गुस्से के आगे बिखर गई।
पर्यावरणीय क्षरण को लेकर जनता का फूटा गुस्सा
जनसुनवाई का उद्देश्य खदान विस्तार पर प्रभावित ग्रामीणों की राय लेना था, पर कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही असंतोष की लहर उमड़ पड़ी। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पिछले वर्षों में संचालित बक्साइट खदानों ने मैनपाट की मिट्टी, जल और वन संपदा को गहरी चोट पहुँचाई है।
उन्होंने बताया—
खेतों की उर्वरता लगातार घट रही है,
प्राकृतिक जलस्रोत सूख रहे हैं,
भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है,
और वनों में कमी के चलते वन्यजीवों का निवास क्षेत्र सिमट रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना था कि खदान विस्तार उनके अस्तित्व पर हमला है। “मैनपाट की मिट्टी हमारे लिए धरोहर है, मुनाफे के लिए इसे नष्ट नहीं होने देंगे,” ग्रामीणों ने मंच से कहा।
“ग्रामीणों को शराब पिलाकर राय बदलने की कोशिश” — रतनी नाग का आरोप
विरोध का नेतृत्व कर रहीं जिला पंचायत सदस्य रतनी नाग ने जनसुनवाई के संचालन को ही कटघरे में खड़ा कर दिया।
उन्होंने आरोप लगाया कि—
> “कंपनी और कुछ प्रशासनिक कर्मचारी जनसुनवाई से पहले ग्रामीणों को शराब पिलाकर उनकी राय प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।”
रतनी नाग ने कहा कि यह पूरा आयोजन “औपचारिकता और छल” में बदल चुका है, जिसका उद्देश्य लोगों की सहमति को मजबूरी बनाना है।
‘छत्तीसगढ़ का शिमला’ खतरे में, पर्यटन और वन्यजीवों पर भी संकट
मैनपाट अपनी हरियाली, ठंडी हवाओं और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।
ग्रामीणों ने चेताया कि—
खदान विस्तार से पहाड़ खोखले होंगे,
पर्यावरणीय क्षरण बढ़ेगा,
और पर्यटन उद्योग, जिस पर हजारों लोगों की आजीविका आधारित है, बड़ी क्षति झेलेगा।
इसके अलावा यह क्षेत्र हाथियों का प्रमुख विचरण क्षेत्र है। खनन बढ़ने से हाथियों के परंपरागत मार्ग बाधित होंगे, जिससे मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने का खतरा है।
आक्रोशित भीड़ ने उखाड़ा पंडाल, जनसुनवाई रद्द
जैसे ही विरोध बढ़ा, भीड़ पंडाल की ओर बढ़ी और कुछ ही मिनटों में उसे उखाड़ फेंका। पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन ग्रामीणों ने जनसुनवाई को पूरी तरह ठप कर दिया।
घटनास्थल पर तनाव का माहौल बन गया, जिसके बाद प्रशासन को कार्यक्रम तत्काल रोकना पड़ा।
ग्रामीणों की कड़ी चेतावनी—“जरूरत पड़ी तो बड़ा आंदोलन करेंगे”
विरोध करने वाले प्रतिनिधियों ने साफ कहा कि यदि प्रशासन खदान विस्तार की प्रक्रिया आगे बढ़ाएगा तो वे बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़ेंगे।
“मैनपाट हमारी संस्कृति, रोजी-रोटी और पहचान है—हम इसे किसी भी कीमत पर बचाएंगे,” ग्रामीणों ने एलान किया।
उधर प्रशासन ने कहा है कि वह घटना और वातावरण पर पुनर्विचार कर आगे की रणनीति निर्धारित करेगा। लेकिन फिलहाल मैनपाट की वादियाँ खनन बनाम पर्यावरण की लड़ाई में जल रही हैं।
डेस्क रिपोर्ट