आरटीआई के तहत संतोषप्रद जानकारी न मिलने पर दर्ज कराई जा सकती है आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत FIR…
सूचना का अधिकार अधिनियम में प्रदत अधिकारों के बारे में बताया है कि यदि आवेदक द्वारा आरटीआई फाइल करने के बाद जनसूचना अधिकारी द्वारा आवेदक को जानकारी समय सीमा पर न प्रदत की जाए या कोई जानकारी प्रदत ही न की जाए या फिर आधी अधूरी व भ्रामक जानकारी प्रदत की जाए या ऐसी जानकारी दी जाए कि जानकारी झूठी और गलत हो तो आवेदक द्वारा आरटीआई एक्ट के प्रयोजनार्थ भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के तहत भी कार्रवाई की मांग की जा सकती हैं।
आपको बता दें कि जानकारी न देने और गलत भ्रामक जानकारी देने में आरटीआई कानून का उल्लंघन करने के लिए लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय अधिकारी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई जा सकती हैं। लोक सूचना अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं देना आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 7(2) व 7(8) का उल्लंघन है।
जिसमे अलग-अलग मामलों में विभिन्न धाराओं के तहत अपराध दर्ज करवाया जा सकता है।
जाने विस्तार से:
1) जन सूचना अधिकारी द्वारा कोई जवाब नहीं देना आरटीआई एक्ट का उल्लंघन है जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए और 167 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।
2) जन सूचना अधिकारी द्वारा झूठी जानकारी देने पर, अगर प्रमाण आवेदक के पास मौजूद है, तो उस स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए, 167, 420, 468 और 471 के तहत पीआईओ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।
3) प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय नहीं किये जाने की स्थिति में भारतीय दंड संहिता की धारा 166 ए, 188 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।
4) प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय करने के बाद भी सूचनाएं नहीं देने की स्थिति में पीआईओ पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।
5) जन सूचना अधिकारी अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा आवेदक को धमकाने की स्थिति में आईपीसी की धारा 294, 506 के तहत एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान है।
6) जन सूचना अधिकारी द्वारा शुल्क लेकर भी सूचना नहीं देने की स्थिति में आईपीसी की धारा 406 और 420 के तहत एफआईआर दर्ज किये जाने का प्रावधान लागू होता है।